भोपाल। झाबुआ उपचुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी का नामांकन कराने पहुंचे मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विवादित बयान दिया था. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि 'अगर कांतिलाल भूरिया जीतेंगे तो यह पाकिस्तान की जीत होगी'. उनके बयान पर बवाल होते ही और कांग्रेस द्वारा एफआईआर दर्ज कराए जाने के बाद गोपाल भार्गव ने सफाई देकर कहा था कि, उनके बयान को तोड़- मरोड़ कर पेश किया गया है. लेकिन कांग्रेस ने अब इसे आदिवासी अस्मिता का सवाल बना लिया है.
गोपाल भार्गव के विवादित बयान पर कांग्रेस का पलटवार मध्यप्रदेश कांग्रेस का कहना है कि गोपाल भार्गव का यह बयान आदिवासी अस्मिता का अपमान है और उन्हें प्रदेशभर के आदिवासियों से माफी मांगनी चाहिए. नहीं तो आदिवासी पर सड़क पर उतर कर आंदोलन करेगा. हालांकि बयान पर हंगामा होते ही गोपाल भार्गव ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा था कि, उनके बयान को तोड़- मरोड़ कर पेश किया गया है. उनके कहने का मतलब यह था कि कांग्रेस की भाषा और पाकिस्तान की भाषा एक ही क्यों होती है. भारत में अगर कांग्रेस कुछ बोलती है, तो पाकिस्तान में उसका समर्थन किया जाता है और भारत के कांग्रेस नेताओं के बयानों को पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने बचाव के लिए उठाता है.
गोपाल भार्गव की सफाई के बाद भाजपा भी उनके बयान को लेकर यही तर्क दे रही है. भाजपा का भी कहना है पाकिस्तान और कांग्रेस की सोच एक जैसी है. इसलिए गोपाल भार्गव ने ऐसा बयान दिया था. इस मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि, भाजपा ही पूरी दुनिया में पाकिस्तान की भाषा समझ पाती है कि बिना बुलाए विमान का रास्ता मोड़ कर प्रधानमंत्री जी बिरयानी खाने पाकिस्तान चले जाते हैं. जब फंस जाते हैं, तो बयान को तोड़- मरोड़ कर पेश करने की बात कहने लगते हैं.
गुप्ता ने साथ ही कहा कि, भूरिया जी 40 साल से आदिवासी समाज और झाबुआ का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. स्पष्ट तौर पर बीजेपी की मंशा है कि, वहां के आदिवासी जमात को आदिवासी समुदाय को कलंकित किया है और पाकिस्तानी कहा है, जबकि इस देश में सबसे ज्यादा बलिदान आजादी की लड़ाई में आदिवासियों ने दिए हैं उनको आप पाकिस्तानी कह रहे हैं. साथ ही कहा कि, बड़े- बड़े आदिवासी नायकों ने देश के लिए कुर्बानियां दी हैं. उनकी कुर्बानियों को पाकिस्तानी कहकर अपमानित करने का जो षड्यंत्र भाजपा कर रही है. उसके लिए उन्हें समूचे मध्यप्रदेश के आदिवासी समाज से माफी मांगना चाहिए. यदि माफी नहीं मांगी तो आदिवासी समाज सड़कों पर आंदोलन करेगा.