भोपाल।बिहार चुनाव और उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. मध्यप्रदेश में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. जबकि महज 2 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और सत्ता पर काबिज हुई थी. हालांकि अपनों की बगावत के कारण कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और ऐसी स्थिति में पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं और कांग्रेस समर्थकों को मप्र में कांग्रेस के भविष्य को लेकर चिंता सता रही हैं.
एमपी में कांग्रेस की तीसरी हार
2003 में जब मप्र में कांग्रेस की सरकार गिरी तो उसके पहले 1993 से लगातार कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार सत्ता पर काबिज थी. 2003 में बिजली पानी और सड़क के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार बुरी तरह घिरी और उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को हराया. कांग्रेस 230 में से सिर्फ 38 सीट पर सिमट गई. 2008 में भी कांग्रेस की इसी तरह की पराजय हुई. हालांकि 2003 की अपेक्षा कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा. लेकिन 2013 में कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला करने के लिए जोरदार तैयारी कर रही थी. लेकिन केंद्र में कांग्रेस के खिलाफ बने वातावरण और मोदी लहर के कारण कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा.
15 साल बाद हुई थी वापसी,लेकिन अपनों की बगावत से गिरी सरकार
मध्यप्रदेश में लगातार तीसरी हार के बाद कांग्रेस निराशा के दौर में पहुंच गई थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस की कमान कमलनाथ को सौंपी गई, और उन्होंने मध्यप्रदेश कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को एक साथ लाकर 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कांग्रेस सत्ता के जादुई आंकड़े से महज 2 सीट पीछे रह गई. लेकिन निर्दलीय और अन्य के सहारे कांग्रेस ने सरकार बना ली थी. लेकिन सिंधिया खेमे सहित 22 विधायकों की बगावत के कारण कमलनाथ की सरकार महज 15 महीने में ही गिर गई. भाजपा ने कांग्रेस के चार विधायक तोड़ने का काम किया और जब 28 सीटों पर उपचुनाव हुए, तो उम्मीद के विपरीत कांग्रेस को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा और 28 सीटों में से कांग्रेस महज 9 सीटों पर सिमट गई गई. जबकि बीजेपी को 19 सीटें मिली. इन 19 सीटों के साथ बीजेपी 126 सीटों पर पहुंच गई और बहुमत के जादुई आंकड़े 116 से 10 सीटें ज्यादा हासिल करने में बीजेपी कामयाब रही.