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उपचुनाव में बीजेपी को सता रहा भितरघात का डर, ग्वालियर-चंबल में अपनों को मनाना बड़ी चुनौती - Gwalior Chambal Politics

प्रदेश में होने वाल उपचुनाव को लेकर बीजेपी पर भितरघात का खतरा मंडरा रहा है. लिहाजा पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सीनियर नेताओं को मनाने में जुटा हुआ है. वहीं बीजेपी की इस स्थिति पर कांग्रेस तंज कस रही है.

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बीजेपी कार्यालय

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Published : Jun 9, 2020, 8:12 PM IST

भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के बाद मध्यप्रदेश में ग्वालियर-चंबल संभाग की राजनीति पूरी तरह से बदल गई है. आलम ये है कि, ग्वालियर-चंबल संभाग के बीजेपी नेता और पिछले चुनाव में किस्मत अजमाने वाले नेता पशोपेश में हैं. उन्हें अपना सियासी भविष्य खतरे में नजर आ रहा है. जिसकी वजह से प्रदेश बीजेपी को ग्वालियर-चंबल संभाग में भितरघात का डर सता रहा है. यही वजह है कि, बीजेपी के वरिष्ठ नेता इन असंतुष्टों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं.

बीजेपी को सता रही है भीतरघात की चिंता

प्रदेश में जल्द ही 24 सीटों पर उपचुनाव होने वाला हैं. इनमें से ज्यादातर सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग और सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्रों की हैं. कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए सिंधिया समर्थक विधायकों को ही इन सीटों से टिकट मिलना लगभग तय माना जा रहा है. ऐसे में अगर सिंधिया समर्थक इन सीटों से चुनाव लड़ते हैं, तो बीजेपी के पुराने नेताओं का सियासी भविष्य खतरे में नजर आ रहा है. शायद यही वजह है कि, ग्वालियर-चंबल संभाग के बीजेपी नेता, सिंधिया समर्थकों की बीजेपी में एंट्री से खासे नाराज हैं.

भितरघात की स्थिति नहीं बने, इसलिए अब बीजेपी प्रदेश नेतृत्व ने ग्वालियर-चंबल संभाग के पुराने नेताओं को मनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. हाल ही में गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ग्वालियर चंबल के नेताओं से मुलाकात की. जयभान सिंह पवैया और अनूप मिश्रा ने भोपाल पहुंचकर प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मुलाकात की थी. हालांकि मुलाकात के दौरान क्या चर्चा हुई हैं, ये कह पाना तो मुश्किल होगा. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में जयभान सिंह पवैया ग्वालियर से बीजेपी प्रत्याशी थे. जिन्हें प्रद्युम्न सिंह तोमर ने हराया था. लेकिन अब तोमर भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और पवैया का चुनाव लड़ना मुश्किल दिखता है.

इसी तरह अनूप मिश्रा कांग्रेस के लाखन सिंह यादव से भीतरवार में हारे थे. अब बीजेपी के सामने चुनौती ये है कि, एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले नेताओं को एक ही पाले में कैसे रखा जाए. बीजेपी नेतृत्व अपने नेताओं को मनाने की भरपूर कोशिश कर रहा है, लेकिन ये कोशिशें कितनी सफल होंगी ये तो उपचुनाव के नतीजे ही बताएंगे.

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