भोपाल। मध्यप्रदेश में दिवंगत मुख्यमंत्रियों की मूर्तियां को मंत्रालय में लगाने की तैयारी पूरी हो चुकी है. नई एनेक्सी के दोनों भवनों के बीच प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्रियों की मूर्तियां लगाई जा रहीं हैं. इनका अनावरण जल्द ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करेंगे. बता दें कि शिवराज सरकार ने एक साल पहले पूर्व मुख्यमंत्रियों की मूर्तियां लगाने का ऐलान किया था. इस मूर्तियाों पर सरकार ने 1 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए हैं.
कौन-कौन सी धातु का हुआ इस्तेमाल:मूर्तियों को बनाने में 80 फीसदी कांसा, पांच-पांच फीसदी जिंक, लेड और टिन सहित अन्य धातु का उपयोग किया गया है. एक मूर्ति का वजन 60 से 80 किलोग्राम तक है. सरकार ने मूर्तियों को बनाने का काम मैसर्स कंसर्व भव-नई दिल्ली को दिया था. ये कंपनी प्रदेश के इंदौर के एयरपोर्ट में देवी अहिल्या बाई और शिवाजी की मूर्तियां बना चुकी है, मुंबई एयरपोर्ट पर शिवाजी की स्टेच्यू लगाई गई है.
परिवार की स्वीकृति के बाद तैयार हुई मूर्तियां: कंपनी के संचालक योगेश बंसल का कहना है कि ''पूर्व मुख्यमंत्रियों में हर किसी की करीब 10-12 अलग-अलग फोटो को लेकर मूर्तियां बनाई गई हैं, लेकिन विधानसभा के जरिए उपलब्ध कराई गई फोटो की धीम को विशेष तौर पर केंद्रित किया गया है. मूर्तियों को अंतिम रूप देने से पहले उनके परिवारों से अंतिम स्वीकृति लेकर तैयार की गई है. इन सभी मूर्तियां को बनाने में 1 करोड़ 3 लाख रुपए खर्च किए गए हैं. मूर्तिकारों ने इन्हें दिसम्बर 2022 में तैयार कर दिया था, जिन्हें लॉस्ट वेस्ट तकनीक से बनाया गया है.''
प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री:प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों मेंपं. रविशंकर शुक्ल, भगवंतराव मण्डलोई, कैलाशनाथ काटजू, पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र, गोविन्द नारायण सिंह, राजा नरेशचंद्र सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, प्रकाश चन्द्र सेठी, कैलाश जोशी, वीरेन्द्र कुमार सखलेचा, सुंदरलाल पटवा, अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, बाबूलाल गौर शामिल हैं.
कैसे सत्ता पाई, क्या इसका भी जिक्र होगा?:दिवंगत मुख्यमंत्रियों की स्टेच्यू लगाने जा रही सरकार स्टेच्यू के साथ उन नेताओं के बारे में भी जानकारी देगी. जिस पर सवाल यह है कि इन नेताओं ने पद कैसे पाया इसका जिक्र भी किया जाएगा. जैसे गोविंद नारायण सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के लिए दलबदल किया और विजयाराजे सिंधिया से सांठगांठ कर बहुमत से सत्ता में आए, द्वारका प्रसाद की सरकार गिरवा दी थी. वीरेंद्र सकलेचा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उनसे इस्तीफा लिया गया. राजनीति के संत कहे जाने वाले कैलाश जोशी भी पद का तनाव नहीं झेल पाए और 7 महीने में ही हटा दिए गए. सुंदरलाल पटवा की सरकार को भी नरसिम्हा राव ने इसलिए बर्खास्त किया था. उनपर दंगा रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाया गया.