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सुनिए अटल जी ने अपनी कविता में कैसे किया था वीर सावरकर का बखान - Atal Bihari Vajpayee poem on Veer Savarkar

वीर सावरकर को लेकर सियासी बयानबाजी के बीच पूर्व पीएम भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की सावरकर को लेकर बनाई गई एक कविता काफी चर्चा में है. एक कार्यक्रम के दौरान अटल जी ने इस कविता को पढ़ा था. इस कविता को आज भी काफी पसंद किया जाता है.

सुनिए अटल जी ने अपनी कविता में कैसे किया था वीर सावरकर का बखान
सुनिए अटल जी ने अपनी कविता में कैसे किया था वीर सावरकर का बखान

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Published : Oct 13, 2021, 6:01 PM IST

Updated : Oct 13, 2021, 6:10 PM IST

हैदराबाद। सावरकर को लेकर देश की सियासत फिर से गर्मा गई है. बीजेपी और कांग्रेस के नेता तरह-तरह की बयानबाजी कर रहे हैं. लेकिन कई सालों पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने एक कार्यक्रम के दौरान सावरकर को लेकर एक कविता पढ़ी थी. कविता को आज भी काफी पसंद किया जाता है.

यह थी अटल जी की कविता

सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग
सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व
सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य
सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार
सावरकर माने तिलमिलाहट, सावरकर माने तितिक्षा
सावरकर माने तीखापन, कैसा बहुरंगी व्यक्तित्व.

सुनिए अटल जी की पूरी कविता और उनके विचार....

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अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि कविता और भ्रांति तो साथ चल सकती है लेकिन कविता और क्रांति का साथ चलना बहुत मुश्किल है. कविता माने कल्पना, शब्दों के संसार का सृजन, ऊंची उड़ान, कभी-कभी ऊंची उड़ान पर धरातल से पांव उठ जाए और वास्तविक्ता से नाता टूट जाए तो कभी कोई शिकायत नहीं होगी. उसके आलोचक भी इस बात के लिए उसके टीका नहीं करेंगे. लेकिन सावरकर जी का कवि ऊंची से ऊंची उड़ान भरता था. सावरकर में ऊंचाई भी थी और गहराई भी थी.

Last Updated : Oct 13, 2021, 6:10 PM IST

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