'पावई वाली माता' की महिमा: जिनके आगे डकैत भी रहते थे नतमस्तक
कोरोना संक्रमण का कहर अपने चरम पर है. ऐसे में पावई वाली माता के मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी काफी कमी आई है. आइए इस खास खबर के माध्यम से जानते हैं, माता के उन चमत्कारों को जो श्रद्धालुओं के जहन में आज भी मौजूद हैं.
पावई वाली माता
भिंड। जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर पावई वाली माता मंदिर का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में प्रतिहार राजाओं ने करावाया था. पावई माता को भक्त देवी करौली की छोटी बहन के रूप में पूजते हैं. मान्यता है कि माता कैला देवी के दर्शन के बाद अगर पावई वाली माता रानी के दर्शन ना किए जाएं तो श्रद्धालुओं की यात्रा अधूरी मानी जाती है.
पावई गांव में बने विशाल परिसर में माता की मूर्ति कुएं में विराजमान है, जिसके दर्शन के लिए नवरात्रि के समय यहां भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. वहीं, नवमी और दशहरे के दिन यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन भी यहां पर विशेष इंतजाम करता है, जिससे भक्तों को किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े. नवरात्र के नौ दिन यहां पर हजारों की संख्या में भक्त सिर पर जवारे रखकर और नेजा लेकर दूर-दूर से माता रानी के दरबार में चढ़ाने के लिए आते हैं.
हर मनोकामना पूरी करती हैं पावई वाली माता
पावई वाली माता का स्वरूप बेहद शांत और शीतल है. मंदिर के महंत कहते हैं की माता को जो भी जिस स्वरूप में देखता है वे उसे वैसी ही नजर आती हैं. किसी को वे शीतला लगती हैं तो कोई उन्हें पद्मा देवी कहता है. एक और मान्यता है की पावई वाली माता से जो भी सच्चे मन से मनोकामना करता है उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है. माता के दर्शन को पहुंची एक श्रद्धालु ने बताया की उनकी शादी के बाद से 10 साल तक कोई बच्चा नही हुआ, हार के उन्होंने माता के दरबार में अर्जी लगायी, जिसके बाद माता की कृपा से उन्हें बेटे के रूप में संतान की प्राप्ति हुई, वे कहती है कि मां की महिमा अपरम्पार है.
जब भक्त ने काटकर चढ़ा दी थी अपनी जीभ
एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि जब लोगों की मन्नत पूरी होती है तो वे घंटा चढ़ाते हैं, या श्रद्धा अनुसार जो चाहे भेंट चढ़ाकर माता को धन्यवाद अर्पित करते हैं. उन्होंने गांव के ही एक श्यामदस नाम के शख्स का जिक्र करते हुए बताया कि सालों पहले नवमी के दिन की बात है. गांव में रहने वाले श्यामदास की कोई मनोकामना पूरी हो गयी थी, मंदिर पर हवन पूजन चल रहा था. अचानक वह आया और अपनी जीभ काट कर चढ़ा दी कुछ देर अफरातफरी मची, लेकिन थोड़ी देर बाद वह माता का जयकारा लगाते हुए उठकर अपने घर चला गया. आज भी उसे बोलने में परेशानी होती. यह मां का आशीर्वाद है, जो जीभ काटने के बाद भी वह बोल पा रहा है.
आज भी मौजूद हैं वक्त के निशां
इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है, मुगलकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर में हमला कर तोड़ दिया था. इस घटना को यहां मौजूद खंडित प्रतिमाएं बयां करती हैं, जो औरंगजेब के हमले से तोड़ी गईं थी. आज भी कई प्रतिमाएं यहां मौजूद हैं और इतिहास का सबूत बनी है. जब चंबल क्षेत्र में डकैतों का बोलबाला था, तब नवरात्र के समय कई डाकू मां के दर्शन के लिए रात में आते थे. माता को घंटे की भेंट चढ़ाते थे. स्थानीय लोगों के अनुसार कई डकैत मां भगवती को अपने आराध्य मानते थे, जिनमें मोहर सिंह गुर्जर, निर्भय गुर्जर, मलखान, दया, रामबाबू गडरिया जैसे नामी डकैत इस मंदिर में दर्शन को आते थे.
आस्था पर कोरोना भारी
बीते साल से हाई कोरोना महामारी के संक्रमण से बचाव को देखते हुए मंदिर परिसर में सीमित श्रद्धालुओं को ही आवागमन की अनुमति है, जबकि गर्भग्रह के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं, संक्रमण के खतरे को देखते हुए यहां चढ़ाए जाने वाले हजारों घंटे भी उठाकर रख दिए गए हैं, जो पहले मंदिर परिसर में मौजूद पेड़ों पर लटके दिखाई देते थे. इस बार कोरोना काल में मेला भी स्थगित कर दिया गया है. इस बार कोरोना के चलते कोई भीड़ भी नही जुट रही. लोग अपने संसाधनों से यहां पहुंच रहे हैं और दर्शनों का लाभ ले रहे हैं.
Last Updated : Apr 17, 2021, 12:41 PM IST