भिंड। हमारा देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पर ईटीवी भारत भी आजादी से जुड़े किस्से और वीरों की गाथाएं आपके सामने ला रहा है. मध्य प्रदेश के छोटे से भिंड की भी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. फिर चाहे वह 1857 की क्रांति हो या क्विट इंडिया मूवमेंट. भिंड के सपूतों ने अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए कई बलिदान किए हैं. ऐसे ही रणबांकुरों से जुड़े किस्से और इतिहास को संजोया है भिंड के इतिहासकार और वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट देवेंद्र चौहान ने.
एडवोकेट देवेंद्र चौहान बताते हैं कि भारत की आजादी के लिए समय-समय पर कई आंदोलन हुए हैं और हर समय चंबल के वीरों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 1857 की क्रांति, लाला हरदयाल के नेतृत्व में गदर पार्टी का गठन, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, 1942 का क्विट इंडिया मूवमेंट, इन सभी में भिंड के वीरों ने अहम किरदार निभाया है.
1857 की क्रांति में भिंड के दौलत सिंह
देश की आजादी के लिए सबसे पहली चिंगारी 1857 में उठी थी. भिंड जिले के बौहारा गांव में जन्में दौलत सिंह कुशवाह भी इस आंदोलन का हिस्सा थे. उन्होंने आजादी के विद्रोह के लिए तय तारीख 31 मई को अपने साथी बरजोर सिंह के साथ मिलकर दबोह पर हमला कर दतिया रियासत की सेना को अपने अधीन कर लिया था. उस दौरान सेना में कई अंग्रेजी सैनिक भी थे. कब्जे के बाद दौलत सिंह ने आजादी की घोषणा भी कर दी थी. इसके बाद 2 जुलाई 1857 को दौलतसिंह ने बरजोर सिंह के साथ मिलकर कौंच कर भी आक्रमण किया और उसे अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कर लिया था. बाद में दौलत सिंह और बरजोर सिंह पर 2-2 हजार का इनाम घोषित हुआ और उनके पिता चिमनाजी पर भी 1 हजार का इनाम घोषित किया गया था.
गेंदालाल दीक्षित ने 40 जिलों में खड़ा किया था संगठन
इतिहासकार देवेंद्र चौहान बताते हैं कि यह बहुत कम लोग जानते हैं कि गेंदा लाल दीक्षित का जन्म भिंड जिले के परा गांव में हुआ था. यहां उनकी मूवमेंट रही उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाईयां लडी थी. वे मातृ वेदी सेना के सुप्रीम कमांडर थे. उन्होंने उस समय अंतरप्रांतीय 40 जिलों में अपना संगठन खड़ा किया था उनके साथ 2000 वर्दी धारी सैनिक थे और 500 घुड़सवार सैनिक और उनके असिस्टेंट कमांडर रामप्रसाद बसमिल थे. उन दोनों की अमरीका से आये क्रांतिकारी करतार सिंह और अन्य बड़े क्रांतिकारियों से निकटता थी. बाद में जिस तरह करतार सिंह पर लाहौर कॉन्सपिरेसी केस चला, उसी तर्ज पर गेंदालाल पर भी अंग्रेजों ने मैनपुरी कॉन्सपिरेसी केस चलाया था.
अपनों की गद्दारी से पहुंचे थे जेल