भिंड।प्रदेश की शिवराज सरकार ने गेहूं की फसल समर्थन मूल्य पर खरीदना शुरू कर दिया है. जिसके लिए सभी जिलों के तमाम उपार्जन केंद्रों पर इसका काम भी शुरू हो गया है. सरकार का दावा है कि लॉकडाउन के दौर में भी रिकॉर्ड स्तर पर गेहूं खरीदी की जा रही है. इन दावों की पड़ताल करने ईटीवी भारत की टीम जामना रोड स्थित उपार्जन केंद्र पर पहुंची तो इन दावों की पोल खुल गई. उपार्जन केंद्र पर खरीदी बंद थी. किसान दूर-दराज से उपज लेकर सुबह-सुबह ही खरीदी केंद्र पर पहुंच गए, लेकिन मायूसी ही उनके हाथ आई. हम्मालों की हड़ताल की वजह से गेहूं की तुलाई बंद थी. जिससे किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ा.
गेहूं खरीदी केंद्र की हकीकत ईटीवी भारत ने जब मामले की पड़ताल की तो सामने आया कि हम्मालों की पिछले 20 दिनों की मजदूरी नहीं दी गई है. जिसकी वजह से उन्होंने हड़ताल कर दी और आगे काम करने से मना कर दिया. उपार्जन केंद्र पर वे सभी किसान पहुंच गए, जिन्हें खरीदी का मैसेज पहुंचा था.
दिनभर इंतजार करते रहे किसान
एक किसान ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि उसे 6 मई का मैसेज मिला था. जिसके बाद किराए का वाहन लेकर अपनी उपज खरीदी केंद्र पर लाया. लेकिन यहां हम्मालों और समिति प्रशासन के बीच चल रही रस्साकशी के बीच तुलाई ही नहीं हुई. ऐसे कई और किसान मौजूद थे. जिनकी यही कहानी थी. घंटो इंतजार के बाद भी फसल की खरीदी नहीं हो सकी. जिले में बनाए गए 42 उपार्जन केंद्रों में कई केंद्र आज भी बंद पड़े हैं. लेकिन अधिकारी सुध लेने को तैयार नहीं.
अधिकारी नहीं दे रहे ध्यान
इस बारे में जब ड्यूटी पर तैनात आईओ रणवीर सिंह भदौरिया ने बताया कि हम्मालों और ऑपरेटर को पेमेंट नहीं मिला है. जिसके चलते ठेकेदार ने तुलाई का काम बंद कर दिया है. वहीं ठेकेदार का कहना है कि करीब 17 से 18 ऐसे हम्माल हैं, जिनका पेमेंट नहीं मिला है. ऐसे में वो कैसे काम करेंगे. मंडी सचिव को इस बारे में जानकारी देने पर उन्होंने कहा कि जब तक पैसा आएगा नहीं तो मिलेगा कैसे.
किसान नेता संदीप बरुआ ने कहा कि जिला प्रशासन के प्रमुख की ये लापरवाही है. गरीब लोगों को भुगतान नहीं किया जा रहा है. अधिकारी आश्वासन दे रहे हैं और एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं. उन्होंने मामले में एसडीएम से भी बात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
भले ही प्रदेश की शिवराज सरकार किसानों के हितों के लाख दावे करती हो, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों का उदासीन रवैया के चलते शासन के वादे और जन-हितैषी योजनाओं पर पानी फिर रहा है. रोज कमा कर खाने वाले गरीब हम्माल अपनी मेहनत का पैसा चाहते हैं, जिससे उनके परिवार की गुजर बसर हो सके. वहीं किसान चाहते हैं कि जैसे-तैसे बारिश,ओला वृष्टि और लॉकडाउन की मार से जो कुछ बची हुई फसल है वो बिक जाए. लेकिन फिलहाल तो ना तो गरीबों को मजदूरी मिल रही और ना किसानों की उपज की तुलाई हो रही है.
गाइडलाइन का उल्लंघन
शासन ने सभी उपार्जन केंद्रों पर फसल खरीदी के दौरान किसानों की सुविधाएं और कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों का भी रहना अनिवार्य किया था. जिससे कि वहां पहुंचने वाले किसानों की जांच हो सके, लेकिन इस दौरान यहां सभी व्यवस्था नदारद मिलीं.