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थैलेसीमिया से जूझ रहा दिव्यांश, 10 सालों में माता-पिता का सब कुछ बिका, अब सरकार से मदद की उम्मीद - थैलेसीमिया से जूझ रहा दिव्यांश

भिंड का दस साल का दिव्यांश (Divyansh) थैलेसीमिया (Thalassemia) से जूझ रहा है. दस सालों से दिव्यांश के इलाज में माता-पिता ने सबकुछ न्योछावर कर दिया. इलाज के दौरान गलत खून चढ़ जाने से दिव्यांश हेपेटाईटिस-सी (hepatitis C) भी हो गया, अब दिव्यांश के इलाज के लिए बोनमेरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है. दिव्यांश को बचाने के लिए अब परिवार ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

थैलेसीमिया से जूझ रहा दिव्यांश, 10 सालों में माता-पिता का सब कुछ बिका
थैलेसीमिया से जूझ रहा दिव्यांश, 10 सालों में माता-पिता का सब कुछ बिका

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Published : Sep 10, 2021, 7:00 PM IST

भिंड। 10 साल का दिव्यांश (Divyansh) थैलेसीमिया (Thalassemia) बीमारी से पीड़ित है. 10 लाख लोगों में एक को होने वाली इस दुर्लभ बीमारी के कारण भिंड के रहने वाले इस मासूम की जिंदगी परेशानियों में बीत रही है. थैलेसीमिया (Thalassemia) के इलाज के दौरान की कई अन्य तरह की परेशानियां आने के कारण अब मासूम की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है. बेटे के इलाज में लाखों रुपए लगाने के बाद भी अपने बेटे की ऐसी हालत देखकर एक पिता का हौसला भी जवाब देने लगा है.

आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं दिव्यांश के पिता

पैदा होने के 6 महीने बाद लगी थैलेसीमिया

भिंड जिले के गोरमी के रहने वाले देवेंद्र श्रीवास (Devendra Srivas) के घर जमकर खुशियां मनाई गई थी, जब बेटा पैदा हुआ था. उस बेटे का नाम दिव्यांश रखा गया. दिव्यांश जब 6 माह का हुआ तो परिवार को पता चला कि बेटे को थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी है. सामान्य भाषा में समझें, तो इस बीमारी में शरीर में प्राकृतिक रूप से खून नहीं बनाता है. मरीज को हर हफ्ते खून चढ़ाना पड़ता है. बच्चे के इलाज के लिए दिव्यांश के पिता देवेन्द्र गांव छोड़कर भिंड में किराए के मकान में रहते हैं.

आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं दिव्यांश के पिता

शुरुआती दौर में जब दिव्यांशु (Divyanshu) की हालत बिगड़ी तब उसके पिता देवेंद्र श्रीवास (Devendra Srivas) ने उसका इलाज पहले भिंड में कराया. शुरुआत में दिव्यांश के पिता ने अपने बच्चे का इलाज दिल्ली के कई बड़े अस्पतालों में करवाया. इलाज के चक्कर में जमीन, दुकान और घर के गहने तक बिक गए. जब पूंजी खत्म हो गई तो देवेन्द्र ने रिश्तेदारों से कर्ज लेकर बच्चे का इलाज शुरू कर दिया. अब आर्थिक स्थिति खराब हो जाने के बाद दिव्यांश के पिता भिंड जिला अस्पताल के इलाज पर निर्भर हैं.

बोनमेरो ट्रांसप्लांट से हो सकता है इलाज

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संक्रमित खून चढ़ने से बिगड़ी स्थिति

देवेंद्र ने बताया कि बीमारी का पता चलने के बाद भी सब ठीक था, महीने में एक बार ब्लड ट्रैन्फ्यूजन (Blood Tranfusion) होता था. बाकी दवाओं के जरिए जीवन कट रहा था, लेकिन कुछ साल पहले ब्लड ट्रैन्फ्यूजन (Blood Tranfusion) के दौरान मासूम दिव्यांश को संक्रमित खून चढ़ गया, जिसकी वजह से उसे हेपेटाईटिस-सी (hepatitis C) बन गया. तीन साल पहले अचानक उसके पेट में लिक्विड बनने लगा, स्थिति यह की अब हर दो से तीन दिन में दिव्यांश के पेट में 5 लीटर तक पानी बन जाता है. अगर समय पर इसे नही निकलवाया जाता है तो फेफड़ों में भी पानी जाने की संभावना रहती है. ऐसे में उसका जीवन अब संघर्ष बन गया है और माता पिता अपने मासूम बेटे को हर पल तड़पता देखने को मजबूर हैं.

कितनी गम्भीर है थैलेसीमिया बीमारी ?

थैलेसीमिया बीमारी दुर्लभ बीमारियों में से एक है, जिला स्वास्थ्य अधिकारी और ब्लड बैंक प्रभारी डॉक्टर देवेश शर्मा बताते हैं कि यह बीमारी 10 लाख लोगों में एक या दो बच्चों में होती है. थैलेसीमिया, खून से जुड़ी आनुवांशिक बीमारी है जिसमें शरीर खून में मौजूद हीमोग्लोबिन का पर्याप्त मात्रा में निर्माण नहीं कर पाता है, हीमोग्लोबिन एक तरह का प्रोटीन है जो लाल रक्त कोशिकाओं (RCB) का एक बेहद अहम हिस्सा है.

प्रशासन स्तर पर की जाएगी हरसंभव मदद

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जब शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है तो लाल रक्त कोशिकाएं सही तरीके से काम नहीं कर पाती हैं और बेहद कम समय के लिए जीवित रहती हैं. जिस कारण खून में स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है, जिसकी वजह शरीर की कोशिकाओं में भी काम मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचता है जिसकी वजह से कई तरह की परेशनियां होती है. मेडिकल टर्म की बात करें तो थैलेसीमिया की दो प्रकार है एक माइनर जिसमें इलाज और दवाओं के जरिए बच्चा स्वस्थ जीवन जी लेता है और दूसरा प्रकार है मेजर. यह गम्भीर है और इससे पीड़ित बच्चे को हर 3 से 4 हफ्तों में ब्लड ट्रैन्फ्यूजन करना पड़ता है. दिव्यांश भी थेलासीमिया मेजर से ग्रसित है.

बोनमेरो ट्रांसप्लांट से हो सकता है इलाज

यह एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज आसानी से उपलब्ध नही. यह लाइलाज तो नहीं है लेकिन छोटे शहरों में इलाज की उपलब्धता नही है. डॉ. देवेश शर्मा के मुताबिक थैलेसीमिया का एक मात्र इलाज बोनमेरो ट्रांसप्लांट है, लेकिन इसके काफी खर्च आएगा. क्यूंकि यह सुविधा दिल्ली- मुंबई जैसे बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों में मिलती है लेकिन परिवार की माली हालत इतनी नही की इस तरह का महंगा इलाज वर्तमान परिस्थितियों और दिव्यांश की हालत के अनुसार वहन कर सके.

सरकार से मदद की आस

अपनी माली हालत को लेकर देवेंद्र ने अपने बेटे के इलाज के लिए शासन से भी मदद की गुहार लगायी है. उन्हें जिला प्रशासन के सहयोग से जिला अस्पताल में निशुल्क रक्त और ब्लड ट्रैन्फ्यूजन की सुविधा मिल रही है लेकिन सही इलाज यानि बोनमेरो ट्रांसप्लांट के लिए उनके पास पैसे नहीं है, इसलिए प्रशासन से भी गुहार लगायी है कि वे आर्थिक मदद करें, जिससे दिल्ली में वह बच्चे को ठीक से इलाज दिला सकें और बोनमेरो ट्रांसप्लांट करवा सके.

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