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शहीद की पत्नी का एलान-ए-जंग:  वीरवधू की जमीन पर दबंगों ने किया कब्जा,  प्रशासन ने भी फेरी आंखें

भिंड की एक वीरांगना अफ़सरों की मनमानी का शिकार हो रही है. 1971 के भारत पाक युद्ध के शहीद रामलखन गोयल का परिवार आज अपनी ज़मीन पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. (bhind shaheed widow struggle)केन्द्र से लेकर सीएम तक ने इनकी मदद के आदेश दिए, (shaheed ramlakhan goyal widow demand) लेकिन प्रशासन उनके आदेश भी नहीं मान रहा.

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शहीद की पत्नी का एलान-ए-जंग

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Published : Dec 13, 2021, 4:50 PM IST

Updated : Dec 13, 2021, 7:14 PM IST

भिंड। भारत पाकिस्तान के बीच हुए चार युद्ध में से एक था 1971 में हुआ युद्ध. क़रीब 13 दिनों तक चले युद्ध के बाद 16 दिसंबर को पाकिस्तान की सेना ने सरेंडर कर दिया था. इस युद्ध में भारत के 12 हज़ार सैनिक घायल हुए थे. करीब 3 हज़ार वीर शहीद हो गए थे. (bhind shaheed widow struggle)इनमें भिंड ज़िले के शहीद सपूत रामलखन गोयल भी शामिल थे. आज उनका परिवार अपनी जमीन के लिए लड़ रहा है.

1971 के युद्ध में शहीद हुए थे रामलखन गोयल

अब प्रशासन से लड़ रहा है शहीद का परिवार

हाल ही में हेलिकॉप्टर क्रेश में शहीद हुए पेरा कमांडो जितेंद्र वर्मा को CM शिवराज ने अंतिम विदाई दी. उनके परिवार को सम्मान के रूप में 1 करोड़ की राशि, पत्नी को सरकारी नौकरी और तमाम सुविधाएँ देने की घोषणा की है, लेकिन 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भिंड के वीर सपूत शहीद रामलखन गोयल का परिवार आज जीवन यापन के लिए जद्दोजहद कर रहा है. शहीद की पत्नी ने बताया कि (shaheed ramlakhan goyal widow demand)उसके परिवार को सरकारी मदद तो दूर, निजी ज़मीन पर दबंगो ने क़ब्ज़ा कर रखा है. केन्द्र से लेकर राज्य सरकार भी इन्हें जमीन वापस दिलाने को कह चुके हैं. लेकिन प्रशासन इनकी नहीं सुन रहा है.

वीरांगना की जमीन पर दबंगों ने किया कब्जा, अब प्रशासन से लड़ रही जंग

1971 के युद्ध में शहीद हुए थे रामलखन गोयल

गार्ड्समेन राम लखन गोयल देश की रक्षा के लिए 1968 में भारतीय थल सेना का हिस्सा बने थे. तीन साल बाद जब 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो भिंड के 22 शहीद जवानों में उनका भी नाम था. वे अपने पीछे अपनी पत्नी लीला कुमारी और 6 महीने (martyr ramlakhan widow leela kumari bhind ) का बेटा छोड़ गए थे.

पार्थिव देह नहीं, सिर्फ़ टेलीग्राम आया था

शहीद की पत्नी लीला कुमारी ने बताया के उनके पति ने युद्ध से 3 साल पहले ही आर्मी ज्वॉइन की थी. वे 1971 की दिवाली मनाने छुट्टी पर घर आए थे. लेकिन दिवाली से एक रात पहले ही उन्हें सेना से बुलावा आया. वे त्योहार छोड़कर सीमा के लिए कूच कर गए. वो आख़िर बार था जब उन्हें देखा था. उसके बाद गांव में सिर्फ़ एक टेलीग्राम आया था. उस जमाने में परिवार में कोई पढ़ना लिखना नहीं जानता था. टेलीग्राम को स्कूल के मास्टर ने पढ़कर रामलखन गोयल की शहादत के बारे में बताया.

मदद के नाम पर मिले थे सिर्फ़ 2 हज़ार रुपए

शहीद की पत्नी लीला कुमारी ने बताया कि उनके जाने के बाद शासन से मदद के नाम पर 135 रुपए की पेंशन, शहीद कॉलोनी में एक मकान और सम्मान के नाम पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आकर 2 हज़ार रुपए दिए थे. उसके बाद से आज तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली. यहां कोई यह जानने की भी कोशिश नहीं करता कि परिवार किस हाल में है.

शहीद की पत्नी का एलान-ए-जंग: पति 1971 के युद्ध में हुए शहीद , वीरांगना की जमीन पर दबंगों ने किया कब्जा

अपनी ज़मीन के लिए लड़ रही वीरांगना

लीला कुमारी ने बताया कि सरकार की तरफ से उन्हें कोई जमीन नहीं मिली, लेकिन बबेड़ी गांव में उनकी जमीन पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है. सालों से वे अपनी ज़मीन पाने के लिए लड़ रही हैं. कुछ साल पहले मामला तहसीलदार कोर्ट में पहुंचा था. तहसीलदार ने भी हमारे पक्ष में फैसला दिया. हमनें ज़मीन का टेक्स भी भरा, लेकिन गांव के दबंगों ने कुछ समय बाद एसडीएम न्यायालय में फ़ैसले को चुनौती दी. पीड़ित लीला कुमारी का कहना है कि वहां SDM ने फ़ैसला क़ब्ज़ा करने वाले दबंगों के हक में दे दिया.

रक्षा मंत्रालय और CM की भी नहीं सुनते अधिकारी

वीरांगना लीला कुमारी ने हार नहीं मानी. उन्होंने दिल्ली रक्षा मंत्रालय में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मदद की अपील की .जिस पर रक्षा मंत्रालय द्वारा एसडीएम का फ़ैसला रोक कर वीर नारी की उनकी ज़मीन दिलाए जाने के आदेश दिए. भोपाल जाकर लीला कुमारी ने सीएम शिवराज से भी मुलाक़ात की. उन्होंने भी तत्काल मदद के लिए ज़िला प्रशासन को लिखा. लेकिन ज़िला प्रशासन ने प्रदेश के मुखिया के आदेश को भी नज़र अन्दाज़ कर दिया.

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मदद की जगह प्रताड़ित कर रहा प्रशासन

सिर्फ़ ज़मीन का मामला ही नही है. लीला कुमारी ने यह भी बताया कि कुछ सालों पहले वे जीवन यापन के लिए दिल्ली से अपने शहीद पति के नाम पर पेट्रोल पम्प भी स्वीकृत करवा कर लायी थीं. लेकिन ज़िला प्रशासन ने उसे भी नामंज़ूर कर दिया. उनका कहना है कि शहीद दिवस हो या 15 अगस्त या फिर 26 जनवरी. सम्मान के नाम पर उन्हें बुलाया जाता है, शाल श्रीफल दे कर इतिश्री कर ली जाती है. लेकिन उनकी बात या परेशानी सुनने को कोई तैयार नही होता.

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Last Updated : Dec 13, 2021, 7:14 PM IST

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