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डाकू ही नहीं, ऐतिहासिक धरोहरों से भी है जिले की पहचान, जानें किन वजहों से पिछड़ा रहा भिंड

मध्य प्रदेश का भिंड जिला पर्यटन संपदाओं से घिरा है. जोकि ऐतिहासिक धरोहरों और इतिहास को भी अपने आंचल में समेटे हुए है. लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी की वजह से यहां कभी पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला. हालांकि इन सभी पर्यटन संपदाओं के पिछड़ने और गुमनाम रहने के पीछे कई अहम कमियाँ रहीं, लेकिन अब प्रशासन का कहना है कि हम लगातार पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं, जल्द अटेर क्षेत्र में भव्य अटेर महोत्सव का आयोजन किया जाएगा.

Historical History of Bhind
भिंड का ऐतिहासिक इतिहास

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Published : May 15, 2022, 2:33 PM IST

भिंड। अंचल का भिंड जिला भिंडी ऋषि की तपोभूमि कहलाता है. यह वह क्षेत्र है, जिसका नाता और पहचान बागी और बीहड़ों से रही है. हालांकि इसके विपरीत भिंड ऐतिहासिक धरोहरों और इतिहास को भी अपने आंचल में समेटे हुए है. सदियों पुराने मंदिर, एतिहासिक किले और प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर भिंड आज भी विकास से कोसों दूर है. ETV भारत की इस खास रिपोर्ट के जरिए जानिए कि आखिर वो कौन से तथ्य हैं, जो सकारात्मक रूप से भिंड के लिए विकास में मील का पत्थर साबित हो सकते थे.

डाकू ही नहीं ऐतिहासिक धरोहर भी हैं भिंड की पहचान

भिंडी ऋषि के नाम पड़ा जिले का नाम: साल 1948 में जब मध्यभारत का गठन हुआ, उस समय बनाए गए 16 जिलों में भिंड भी शामिल था. हालांकि बाद में राज्यों के पुनर्गठन में यह साल 1956 में मध्यप्रदेश का हिस्सा बना. भिंड का इतिहास सदियों पुराना है, कहा जाता है कि भिंडी ऋषि के नाम पर इस क्षेत्र का नाम भिंड पड़ा था. इतिहास कहता है कि शुंग, मौर्य, नंद, कुषाण, गुप्त, हूण, गुर्जर, प्रतिहार, कछवाहा, सूर, मुगल आदि शासकों का भिंड में काफी समय तक शासन रहा. 18वीं शताब्दी में सिंधिया शासकों द्वारा अधिकार में किए जाने से पहले भिंड भदौरिया, चौहान राजपूतों का क्षेत्र था. जिसकी वजह से इतिहास पन्नों में भिंड को कई ऐतिहासिक धरोहर सौगात में मिली हैं.

देश के सुंदर किलों में शुमार है गोहद का किला:भिंड के गोहद में बना गोहद किला बेहद खूबसूरत किलों में शुमार है. इस किले का निर्माण 16वीं सदी में हुआ था. किला दो भागों में बना है, पहला पुराना किला और दूसरा नया महल. पुराने किले का निर्माण 1739 ई. में जाट राजा भीमसिंह ने करवाया था. वहीं नए महल का निर्माण जाट राजा छत्रपति सिंह द्वारा कराया गया था. किले पर अधिकांशतः जाट एवं भदावर राजाओं और फिर मराठों का अधिकार रहा है. वर्तमान में पुराना किला एवं नया महल मध्य प्रदेश सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन है.

देश के सुंदर किलों में शुमार है गोहद का किला

भदावर राजाओं ने कराया था अटेर किले का निर्माण: भिंड में एक नहीं बल्कि दो बेहद खूबसूरत और ऐतिहासिक दुर्ग हैं. गोहद किले के अलावा दूसरा किला अटेर के देवगिरी पर्वत पर बना है. यह देवगिरी दुर्ग, जिसे अटेर किले के नाम से भी जाना जाता है, दोनों ही किले जिले की शान हैं. देख-रेख के अभाव में आज दोनों ही दुर्ग खंडहर में तब्दील हो रहे हैं. अटेर किले का इतिहास भी सदियों पुराना है, मध्यप्रदेश के छोर पर बना भिंड का अटेर किला कभी अपनी शानों-शौकत के लिए मशहूर था. अटेर के किले का निर्माण भदौरिया राजा बदन सिंह ने 1664 ई. में शुरू करवाया था. भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले 'बधवार' कहा जाता था. गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित ये किला भिंड से करीब 35 किलोमीटर पश्चिम में है.

खंडहर में तब्दील होता महाभारत कालीन पर्वत पर बना देवगिरी दुर्ग: अटेर किला खुद में सैकड़ों किवदंतियां, कई सौ किस्से और न जाने कितने ही रहस्यों को छुपाए हुए आज भी आन बान से खड़ा है. महाभारत में जिस देवगिरी पहाड़ी का उल्लेख आता है, ये किला उसी पहाड़ी पर है. इसका मूल नाम देवगिरी दुर्ग है, आज यह किला मरम्मत और देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. अटेर किले में एक के बाद एक महल और कलात्मक चित्रों की श्रृंखला उपेक्षा के चलते अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं. बताया जाता है कि किले की प्राचीर से कभी भदावर वंश की विजय पताका फहराया करती थी. चंबल नदी से दो किलोमीटर दूर उत्तरी किनारे पर स्थित अटेर किले का इतिहास करीब 400 साल पुराना बताया जाता है. खजाने की चाह में लोगों ने अटेर दुर्ग के तलघर और दीवारों को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक अधिकारियों की लगातार अनदेखी और उपेक्षा के चलते किला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है.

भिंड में पर्यटन को बढ़ावा देने के हो रहे प्रयास

पांडरी में स्थित है विश्व का एक मात्र अष्टकोणीय शिवलिंग: भिंड में इन किलों के अलावा 11वीं सदी के प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर भी हैं. जिनमें 11वीं सदी का वनखंडेश्वर महादेव मंदिर, जिसका निर्माण खुद महाराजा पृथ्वीराज चौहान चौहान ने कराया था. इसके अलावा दंदरौआ धाम के नाम से प्रसिद्ध 800 साल पुराना डॉक्टर हनुमान का मंदिर प्रमुख है. इन दोनों ही मंदिरों में लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं, भिंड में 100 से अधिक शिव के मंदिर हैं. वहीं कुछ प्राचीन मंदिर ऐसे भी हैं, जो इतिहास के गुमनाम पन्नों में खो गए. भिंड का नाता महाभारत काल से जुड़ा रहा है, अटेर के देवगिरी पर्वत के अलावा एक प्राचीन शिव मंदिर भी भिंड में मौजूद है. इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना खुद पांडवों में से महाबली भीम ने की थी. यहां स्थापित शिवलिंग अपने आप में अनूठा और विश्व का एक मात्र ऐसा शिवलिंग है जो गोलाकार ना होकर अष्टकोणीय है. यह मंदिर मुख्यालय से 40 किलोमीटर उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे पांडरी गांव में स्थिति है, जोकि गुमनामी में खो चुका है.

एक शिवलिंग जिसे आज तक चावल से कोई ढ़क ना सका

एक शिवलिंग जिसे आज तक चावल से कोई ढ़क ना सका: कुछ ऐसा ही हाल बौरेश्वर धाम का है. जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूरी पर स्थिति प्राचीन भुवनेश्वर धाम क्षेत्र का बौरेश्वर धाम शिव मंदिर काफी प्रसिद्ध है. कहने को यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है., बावजूद इसके आज भी यहां देख-रेख की कमी है. प्रचार-प्रसार न होने से यह मंदिर श्रद्धालुओं से वंचित है. इस मंदिर को लेकर भी कई मान्यताएं हैं, जिनमें से एक मान्यता यह भी है कि मंदिर में बने शिवलिंग पर प्रसाद के साथ चावल चढ़ाया जाता है. लेकिन आज तक कोई चावलों से शिवलिंग को ढ़क नहीं सका. सैकड़ों साल पहले कई राजाओं ने उस मंदिर के शिवलिंग को सैकड़ों क्विंटल चावल से ढ़कने की कोशिश की. फिर भी शिवलिंग कभी पूरा नहीं ढ़क सका.

किसी को नहीं पता कितना पुराना है शिवलिंग: मंदिर के पुजारी कहते हैं कि उनकी कई पीढ़ियां बौरेश्वर महादेव की सेवा करती आयी हैं. लेकिन यह किसी को नहीं पता है कि यह मंदिर कितना पुराना है. इस मंदिर की मरम्मत की एक छाप मंदिर पर बनी हुई है, जिसे पुरातत्व विभाग के अनुसार 14वीं सदी में मरम्मत कार्य होना बताया गया है. पुजारी अनूप गोस्वामी का कहना है कि इस मंदिर में दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं.

पर्यटन को लगेंगे पंख आयोजित होगा अटेर महोत्सव

सुविधा और सुरक्षा का अभाव: इन सभी पर्यटन संपदाओं के पिछड़ने और गुमनाम रहने के पीछे कई अहम कमियाँ है, जिसने सबसे ज़रूरी है ट्रांसपोर्टेशन और सुरक्षा. चूँकि गोहद किले को छोड़ कर ज्यादातर पर्यटन स्थल ग्रामीण अंचलों में ऐसे स्थानों पर स्थित हैं, जहां सुगम पहुँच व्यवस्था नहीं है. अटेर क्षेत्र कहने को तो पूरी विधानसभा है, लेकिन आज भी यह हिस्सा जिले से कटा हुआ है. यहाँ के लिए यात्रियों और पर्यटकों को इक्का-दुक्का बसों का घंटों इंतजजार करना पड़ता है. साथ ही यह क्षेत्र एक कोने में बसा है, पुलिस सुरक्षा भी अटेर मुख्यालय के अलावा सिर्फ डायल 100 तक सीमित है. ऐसे में शाम के बाद पर्यटकों के लिए यह रास्ता सुरक्षित नहीं रह जाता है. हालाँकि अगर इन कमियों को दूर किया जाए, तो परिस्थियाँ में बदलाव लाया जा सकता है.

प्रचार प्रसार और बजट की कमी दुर्दशा का कारण: पर्यटन इकाई के सदस्य अशोक तोमर कहते हैं कि भिंड चहुंओर पर्यटन संपदाओं से घिरा है. लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी की वजह से यहां कभी पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला. न तो प्रशासन ने कभी पर्यटन को लेकर कोई विशेष प्रयास किए और न ही प्रचार-प्रसार किये. अशोक तोमर कहते हैं कि यहां शासन-प्रशासन में बैठे लोगों की मंशा ही नहीं है, कि क्षेत्र पर्यटन की ओर अग्रसर हो. उन्होंने बताया कि कार्य योजना तैयार होती है, लेकिन बजट नहीं मिलता. वहीं दूसरी बड़ी कमी है सुविधाएं, यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.

पर्यटन को लगेंगे पंख, आयोजित होगा अटेर महोत्सव:पर्यटन को बढ़ावा देने के सम्बंध में भिंड कलेक्टर ने बताया कि जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. जल्द ही जिले में अटेर महोत्सव भी आयोजित होने जा रहा है, जिसका व्यापक प्रचार प्रसार भी किया जाएगा. अभी तक प्रोग्राम पूरी तरह फाइनल नहीं हुआ, लेकिन इसने कई संस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ जिले का इतिहास और एतिहासिक धरोहरों की जानकारी भी सैलानियों और महोत्सव में शामिल होने वाले लोगों को दी जाएगी. आगामी समय में चमनलाल नदी पर अटेर घाट पर बन रहा पुल निर्माण भी पूरा हो जाएगा, जिसके बाद उत्तर प्रदेश से सीधा सड़क मार्ग यहाँ ट्रांसपोर्टेशन के साथ पर्यटकों को सुविधाएँ भी उपलब्ध हो जाएँगी.

पर्यटन को बढ़ावा देने के हो रहे प्रयास: जिला पर्यटन इकाई के सदस्य अशोक तोमर का कहना है कि, भिंड जिला पर्यटन संपदाओं से भरा पड़ा है, लेकिन प्रचार-प्रसार की कमी की वजह से आज भी उसे उस स्तर पर पहचान नहीं मिल सकी, जो मिल सकती है. यदि शासन पहल करे, तो इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार सम्भावनाएँ हैं. इसके लिए मीडिया को भी साथ आकर सहयोग करना चाहिए. वहीं कलेक्टर सतीश कुमार एस का कहना है कि हम लगातार पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं. इसी के चलते जल्द अटेर क्षेत्र में भव्य अटेर महोत्सव का भी आयोजन किया जा रहा है. जिसकी रूप रेखा तैयार है, आने वाले समय में भिंड जिला पर्यटन के क्षेत्र में भी गिना जाएगा.

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