MP Seat Scan Chanderi: साड़ी की तरह ही अलग है चंदेरी की सियासत, इस बार विकास के मुद्दे पर होगा चुनावी मुक़ाबला
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले हर विधानसभा क्षेत्र का सियासी और स्थानीय समीकरण ETV Bharat आप तक पहुंचा रहा है. इसी क्रम में आज बात अशोकनगर की तीन में से एक विधानसभा चंदेरी की करेंगे. साथ ही जानेंगे यहां का क्या सियासी समीकरण है. एक नजर यहां के हालातों को लेकर Etv Bharat Seat Scan पर.
चंदेरी विधानसभा सीट
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Published : Aug 1, 2023, 7:45 PM IST
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Updated : Nov 15, 2023, 6:31 PM IST
अशोकनगर।अशोक नगर की चंदेरी विधानसभा क्षेत्र मध्यप्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक-33 आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में कांग्रेस का इस सीट पर दबदबा है. वैसे तो यहां अब तक तीन बार ही चुनाव हुए हैं, लेकिन दो बार लगातार बाजी सिर्फ कांग्रेस ने मारी है. आज भी यहां कांग्रेस का राज है, लेकिन जनता के मूड का भरोसा नहीं होता. यह सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाली सीट है. जो अब बीजेपी में हैं. ऐसे में जब 2023 का चुनाव होगा तो जनता किसे वोट देगी कहना मुश्किल है, लेकिन इस विधानसभा के स्थानीय मुद्दों से लेकर राजनीतिक समीकरण इस बार छकाने वाली उठापटक कर सकते हैं.
विधानसभा की खासियत: चंदेरी की हस्तकला और साड़ियां भारत ही नहीं विश्व प्रसिद है. कला के दम पर आत्मनिर्भरता और रोजगार में सक्षम है. ऐतिहासिक धरोहरों की भी इस क्षेत्र में भरमार है. चंदेरी में शासन से आधुनिक बुनकर पार्क की सौगात मिली.चंदेरी यानि मध्यप्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में (1.1.2023 के अनुसार) कुल 2 लाख 10 हजार 002 मतदाता हैं. जिनमें से पुरुष मतदाताओं की संख्या 99,460 और महिला मतदाता 89,283 हैं. साथ ही ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या 3 है. जो विधानसभा चुनाव में मतदान करेंगे.
चंदेरी विधानसभा का पोलिटिकल सिनेरियो: चंदेरी विधानसभा क्षेत्र पर लंबी राजनीति नहीं रही. यह मध्यप्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र साल 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्त्व में आया. इसी साल हुए विधानसभा के चुनाव में पहली बार यहां से विधायक का चुनाव किया गया था. अब तक सीट पर तीन बार चुनाव हुए हैं. पहला चुनाव तो बीजेपी के पास गया, लेकिन बीते 10 वर्षों से इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा है. पहली बार जब 2008 में चुनाव हुआ तो बीजेपी के प्रत्याशी राव राजकुमार सिंह ने कांग्रेस के गोपाल सिंह चौहान को हराया और विधानसभा पहुंचे, लेकिन अगले चुनाव 2013 में जब दोनों ही कैंडिडेट रिपीट हुए तो जनता ने इस बार कांग्रेस का साथ दिया. उसके बाद से लगातार दो बार से सीट कांग्रेस के कब्जे में है.
साल 2018 का चुनावी परिणाम:2018 में जहां कांगेस विधायक मैदान में थे, उस दौरान उनसे मुकाबला करने कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ईसागढ़ नगरपालिका अध्यक्ष भूपेन्द्र द्विवेदी को अपना उम्मीदवार बनाया था. लेकिन वे अपने लक्ष्य को पा ना सके. इस बार चुनाव सिर पर है कांग्रेस विधायक गोपाल सिंह चौहान (दिग्गी राजा) के अलावा महेंद्रपाल सिंह बुंदेला और विवेकांत भार्गव भी टिकट की रेस में शामिल हैं. लेकिन बीजेपी में प्रबल दावेदारों में पिछले प्रत्याशी भूपेन्द्र द्विवेदी, पूर्व विधायक जगन्नाथ सिंह रघुवंशी समेत पार्टी के कई नेता और वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं. जो चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं. लेकिन पार्टी के सामने और भी नेता दावेदारी पेश करेंगे.
जातिगत समीकरण:चंदेरी में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है. इनके साथ ही यादव, रघुवंशी, लोधी वोटर भी चुनाव की दिशा तय करते है, विधानसभा में अनुसूचित जनजाति वर्ग के 28 हजार वोटर, अनुसूचित जाति वर्ग के 26 हजार मतदाता, यादव समाज के 26 हजार मतदाता, 17 हजार मतदाता रघुवंशी समाज, 12-12 हजार लोधी, ब्राह्मण समाज और मुस्लिम समाज के वोटर, 8500 मतदाता कुशवाह, 6 हजार गुर्जर, 4 हजार रैकवार, 4 हजार राजपूत ठाकुर, 3500 मतदाता, जैन समाज सहित अन्य जाति वर्ग से जुड़े हुए हैं. इनके साथ साथ सोनी, कल्हार, पाल सहित लगभग अन्य जातियों के मतदाता भी इस क्षेत्र में हैं.
विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय मुद्दे:चंदेरी विधानसभा में चुनाव विकास और मूलभूत सुविधाओं के नाम पर ही लड़ा जाता है, लेकिन यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, और बिजली पानी के लिए आज भी लोग परेशान रहते है. बुनकरों की पहचान रखने वाले चंदेरी में साड़ी बुनकरों के जीवन स्तर में भी अब तक कोई सुधार नहीं हो पाया है. हैंडलूम के सहारे साड़ी बुनते-बुनते पूरी जिंदगी गुजारने वाले इन बुनकरों की जिंदगी नहीं बदली. चंदेरी में आधुनिक बुनकर पार्क की सौगात तो मिली लेकिन यहां के बुनकरों को साड़ी के बदले सिर्फ मजदूरी ही मिलती है. ज़्यादातर बुनकर साहूकारों के यहां मज़दूरी करने को मजबूर हैं. आज भी बुनियादी सुविधाओं का इस क्षेत्र में अभाव है. अच्छी उच्च शिक्षा के लिए विधानसभा में संसाधन ही नहीं हैं सड़क बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी नजर आती है.