आगर मालवा। सिर पर खपरैल, टीन की छत और छप्पर की छांव. नीचे धूप से तपती जमीन और पानी के अभाव में सूखते कंठ जिंदगी की कठिनाइयों पर कड़ा प्रहार कर रहे हैं. अप्रैल माह में जब ये हाल है तो मई-जून में क्या होगा, ये तो सिर्फ ट्रेलर है पिक्चर अभी बाकी है. बूंद-बूंद को तरसते ग्रामीणों को प्यास बुझाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ रहा है. नहाना-धोना तो दूर प्यास बुझाने में ही इतनी मशक्कत करनी पड़ जाती है कि बाकी काम के लिए वक्त ही नहीं मिल पाता.
चिलचिलाती धूप, तपती धरती और पानी के अभाव में सूखती फसलें देख किसानों का कलेजा सूख रहा है. अभी से गर्मी का विकराल रूप देख सब भयभीत हैं. जिनके पास साधन है वो तो एक बार में ही पानी भर लाते हैं, लेकिन जिनके पास संसाधन नहीं है, उन्हें मीलों का सफर पैदल तय करना पड़ता है. बच्चों का पूरा दिन पानी ढोने में निकल जा रहा है, जिसके चलते स्कूल भी नहीं जा पाते हैं. पीएचई विभाग के दावे भी खोखले साबित हो रहे हैं. लिहाजा ग्रामीण मतदान का बहिष्कार करने का मन बना रहे हैं.