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कौन बनेगा अगर-मालवा सीट का 'किंग', उपचुनाव की सरगर्मी के बीच टिकट की जुगाड़ में नेता

दिवंगत विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन से रिक्त हुई आगर मालवा सीट पर विधानसभा उपचुनाव होना है. ऐसे में उपचुनाव की तैयारी को लेकर पार्टी हाईकमान के साथ ही स्थानीय स्तर पर टिकट की आस लगाए बैठे नेताओं ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. पढ़िए पूरी खबर...

Leaders engaged in candidature in by election for Agar Vidhan Sabha seat
उपचुनाव की सरगर्मी हुई तेज

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Published : Jun 20, 2020, 2:14 AM IST

आगर-मालवा।प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा उपचुनाव के लिए सरगर्मी हो गई है, जिन सीटो पर उपचुनाव होने हैं उन पर दोनो ही पार्टियों के नेता टिकट की जुगाड़ में जुटे हुए हैं. विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन से रिक्त हुई आगर मालवा विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. ऐसे में उपचुनाव की तैयारी को लेकर पार्टी हाईकमान के साथ ही स्थानीय स्तर पर टिकट की आस लगाए बैठे नेताओ ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. कांग्रेस से यहां एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष विपिन वानखेड़े का टिकट लगभग तय है, फिर भी कुछ अन्य स्थानीय नेता टिकट के लिए अपने आकाओं के आगे-पीछे घूम रहे हैं. वही भाजपा में भी टिकट के लिए लंबी कतार है, लेकिन भाजपा से पूर्व विधायक रेखा रत्नाकर और पूर्व विधायक गोपाल परमार के साथ ही कुछ स्थानीय व बाहरी नेता टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

उपचुनाव की सरगर्मी हुई तेज

ये है दावेदारों की स्थिती
बीजेपी के दावेदारों की बात करें तो रेखा रत्नाकर 2003 में विधायक रही हैं, उन्होंने सिर्फ एक बार चुनाव लड़ा है. क्षेत्र की दबंग महिला नेता होने के अलावा ये अपने पूर्व कार्यकाल में कई विकास कार्यों को लेकर चर्चा में रही हैं. साथ ही भाजपा को चुनाव में हमेशा वोटों की बढ़त दिलाने वाली बड़ोद तहसील में बड़ी संख्या में इनके समर्थक हैं. इनके भाई अनिल फिरोजिया वर्तमान में उज्जैन से सांसद हैं. वहीं पिता भूरेलाल फिरोजिया जनसंघ से विधायक रह चुके हैं. दूसरी तरफ गोपाल परमार की बात की जाए तो वह 1993 में विधानसभा और 2014 में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर विधायक रहे. ये मेघवाल समाज के दबंग भाजपा नेता हैं. 1993 के बाद लगातार पार्टी की सेवा करते रहे. इसलिए 2014 में पार्टी ने लंबे अंतराल के बाद फिर से विश्वास जताकर चुनाव के मैदान में उतारा था. वहीं कांग्रेस से विपिन वानखेड़े का तेजी से सामने आया है. जो एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष हैं और उनका प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेताओं से सीधा संपर्क है.इन्होंने 2018 में बीजेपी के गढ़ में काफी हद तक सेंध लगाई, लेकिन महज 2490 वोटों से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था.

टिकट की जुगाड़ में जुटे नेता

आगर-मालवा सीट पर पिछले 30 वर्षो में रहे विधायक

  • 1990 में भाजपा के नारायण सिंह केसरी 18610 वोट से जीते
  • 1993 में भाजपा के गोपाल परमार 3631 वोट से जीते
  • 1998 में कांग्रेस के रामलाल मालवीय 15817 वोट से जीते
  • 2003 में भाजपा की रेखा रत्नाकर 24858 वोट से जीतीं
  • 2008 में भाजपा के लाल जी राम मालवीय 16734 वोट से जीते
  • 2013 में भाजपा के मनोहर ऊंटवाल 28859 वोट से जीते
  • 2014 के विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के गोपाल परमार 27702 वोट से जीते
  • 2018 में भाजपा के मनोहर ऊंटवाल 2490 वोट से जीते
    टिकट की आस में बीजेपी नेता


    ऐसा है जातिगत गणित
    मध्य प्रदेश की आगर मालवा विधानसभा क्रमांक 166 अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इसे भाजपा के लिए भी सुरक्षित माना जाता है. इस विधानसभा क्षेत्र में दो तहसील आगर और बड़ोद हैं. मतदाताओं की बात करें तो इस विधानसभा में कुल 2 लाख 17 हजार 369 मतदाता हैं. इनमें एक लाख 2 हजार 9 पुरुष मतदाता तथा 1 लाख 5 हजार 355 महिला मतदाता हैं. साथ ही 5 मतदाता तृतीय लिंग से आते हैं. जहां विधानसभा के लिए होने वाले उपचुनाव में भाजपा की ओर से पूर्व विधायक रेखा रत्नाकर तथा पूर्व विधायक गोपाल परमार प्रबल दावेदार हैं तो वहीं कांग्रेस से पूर्व प्रत्याशी और एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष विपिन वानखेड़े की मजबूत दावेदारी मानी जा रही है.

2490 से जीते थे ऊंटवाल
पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम की बात करें तो यहां से भाजपा के मनोहर ऊंटवाल ने कांग्रेस उम्मीदवार विपिन वानखेड़े को करीब 2490 वोटों से शिकस्त दी थी, जिसका वोट प्रतिशत 82.97% रहा था. पिछले चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो यह विधानसभा भाजपा का गढ़ रही है. मौजूदा राजनीतिक उठापटक का क्षेत्र पर ज्यादा प्रभाव नहीं रहा, क्योंकि यह सीट मनोहर ऊंटवाल के निधन के चलते रिक्त हुई है.

जिले में होता है परंपरागत मतदान
यह कृषि प्रधान जिला है, यहां ज्यादातर परंपरागत मतदान होता है. भाजपा का पलड़ा ज्यादातर भारी रहता है. यहां शहरी क्षेत्र सिर्फ जिला मुख्यालय यानी आगर है. बाकी ग्रामीण क्षेत्रों जैसे बड़ोंद, कानड़, तनोडिया, पिपलोन परंपरागत मतदान ज्यादा होता है. ऐसा कम ही हुआ है कि लोगों ने लिंक से हटकर वोट किया हो. नए वोटर के मामले में कुछ कह नहीं सकते कि उन पर कमलनाथ की 15 माह की सरकार ने कितना प्रभाव डाला होगा. जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर मालवीय, मेघवाल, सोंधिया राजपूत, बंजारा समाज के लोग ज्यादा हैं. हालांकि जातिगत समीकरण चुनाव पर प्रभाव नहीं डालते, पिछले चुनाव में जीते उम्मीदवार को देखें तो पता चलता है कि इनकी जाति के ज्यादा मतदाता नहीं होने के बावजूद भी अच्छे वोटों से जीत हासिल की.

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