बड़वानी।गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी दो पहिए होते हैं, इनसे गृहस्थी कि गाड़ी चलती है. कोई एक पहिया कमजोर पड़ता है तो गृहस्थी की गाड़ी लड़खड़ा जाती है. लेकिन जज्बा और हिम्मत हो तो एक पहिए पर भी गाड़ी दौड़ सकती है. ऐसा ही कुछ बड़वानी जिले के छोटे से गांव पिपरी की महिला ने कर दिखाया है. पति की कम आमदनी को देखते हुए पत्नी ने सबला बनकर सिलाई शुरू की साथ ही अन्य महिलाओं को जोड़कर उन्हें भी आत्मनिर्भर बनकर खुद ही जिंदगी की गाड़ी अकेले खीचने का फैसला किया
ग्राम पिपरी निवासी वैशाली चौधरी के पति सेंचरी फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन नाम मात्र का वेतन मिलने के बाद फैक्ट्री बंद होने से वे बेरोजगार हो गए. जिसके बाद वैशाली ने अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की ठानी और ठीकरी के पास एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करने जाने लगी. साथी महिलाओं के साथ सुबह 6 बजे से शाम को 6 बजे तक महज 100 में हर-दिन काम करना. वहीं 20रुपए आने-जाने में खर्च हो जाते थे. यह बात वैशाली को नागवार गुजर रही थी, लेकिन फैक्ट्री में काम करते-करते वह सपने सजोने लगी. शुरुआत में तो फैक्ट्री के अधिकारी भी उसकी बातें सुनकर हंसते थे, लेकिन वैशाली ने तो कुछ और ही ठान रखा था. वैशाली ने अपनी सहयोगी महिलाओं को साथ लेकर करीब 2 महीने फैक्ट्री में काम सीखा और बैंक से लोन लेकर केवल 5 सिलाई मशीनों से किराए के रूम में सिलाई केंद्र की शुरुआत की. 5 महीने के अंदर ही दूसरी महिलाएं भी वैशाली की हिम्मत को देख जुड़ती गईं.
वर्तमान में पिपरी में एक बड़ा सिलाई उद्योग के खड़ा हो गया. 5 सिलाई मशीनों से शुरू हुआ यह केंद्र वर्तमान में 40 मशीनों व अन्य आधुनिक उपकरण जिनसे कपड़े सिलने में कंपनियों की तरफ फीनेसिंग आती है खरीद लिए. इस सिलाई केंद्रों पर करीब साढे तीन सौ महिलाएं रोजगार पा रही हैं. वैशाली ने यह मुकाम ऐसे ही हासिल नहीं किया बल्कि असफलताओं को भी अंगीकार करते हुए उनसे सबक लिया और आगे बढ़ती गई. आज गणेश सिलाई केंद्र जिले में किसी परिचय का मोहताज नहीं है. वहीं इंदौर व पीथमपुर जैसे बड़े शहरों में भी वैशाली के सिलाई केंद्र पर्स यह गए कपड़ों की भारी डिमांड है.
असफलताओं से सीखा मैनेजमेंट का गुरशुरुआत में वैशाली ने अपनी सहयोगी महिलाओं के साथ सिलाई केंद्र की शुरुआत तो कर दी किंतु सबसे बड़ा संकट था कि कपड़े सिलाई के लिए उन तक लोग कैसे पहुंचे. इसके लिए शुरुआत में उन्होंने इंदौर व पीथमपुर की कुछ कम्पनियों से बातचीत की. जहां कंपनी के लोग उनसे कपड़े सिलाई में फिनिशिंग के नाम पर बारगेनिंग करते थे और कई दाम से कम देते थे. इसी तरह एक होटल के लिए रुमाल बनाने का काम मिला. जहां काम देने वाले ने होटल संचालक से 50 पैसे में ऑर्डर लेकर वैशाली को 40 पैसे मैं काम सौंप दिया और 10 पैसे का मुनाफा प्रति रुमाल में निकाला. लेकिन वैशाली ने यहां मैनेजमेंट का गुर सीख लिया जिसमें उसने फिनिशिंग, स्पीड तथा प्रोडक्शन कैसा निकालते हैं. साथ ही यह भी यह सीख लिया कि 40 पैसे में भी किस तरह क्वालिटी तैयार की जाती है. हिम्मत के सहारे सपनो को लगे पंखशुरुआत में कई तरह की असफलताओं के बावजूद वैशाली व उसके सहयोगी महिलाओं ने तो आत्मनिर्भर बन आधुनिक महिला सशक्तिकरण की नींव बनने की ठान रखी थी. शुरुआत में गांव और आसपास के गरबा मंडलों में नृत्य करने वाले युवक-युवतियों की ड्रेस व क्षेत्र में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की वेशभूषा के आर्डर लिए. साथ ही आंगनबाड़ियों, सरकारी स्कूलों के आर्डर लेना शुरू किए. इसके बाद खुद का माल भी सप्लाई करना शुरू कर दिया. इधर सहयोगी महिलाओं ने जिले के हाट बाजारों में ठेला गाड़ी पर केंद्र से सिले हुए कपड़े बेचना शुरू कर दिए. जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और महज 3 से 4 साल में अपना अच्छा खासा मुकाम हासिल कर लिया. आज वैशाली के गणेश सिलाई केंद्र में कई अत्याधुनिक सिलाई मशीनें है. वहीं सैकड़ों महिलाएं रोजगार पा रही हैं.
कलेक्टर ने की वैशाली की मदद
अपने बढ़ते सिलाई केंद्र के व्यवसाय व ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने वाली वैशाली के सामने सिलाई उद्योग के लिए जगह की कमी पड़ने लगी. जिस पर उन्होंने जनसुनवाई में कलेक्टर से मदद की गुहार लगाई. तत्कालीन कलेक्टर ने वैशाली के साहस के किस्से तो सुन रखे थे, लेकिन ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ने का लाभ वैशाली को मिला और कलेक्टर ने ठीकरी के पुराने उप स्वास्थ्य केंद्र में उन्हें अपना सिलाई केंद्र चलाने की अनुमति दे दी.
तीन शिफ्ट में चलता है सिलाई केंद्र ,सैकड़ों महिलाओं को मिलता है काम
वैशाली अपने बढ़ते सिलाई केंद्र के व्यवसाय से गदगद होकर बताती हैं कि संघर्ष के बाद ही सफलता का स्वाद चखने को मिलता है. जिसके चलते आज उनके वहां सैकड़ों महिलाएं दिन-रात 3 शिफ्ट में काम करती हैं और 10 से 25000 महीना आसानी से कमा लेती हैं.
कोरोना महामारी के बीच आपदा को भी अवसर में बदला
वैशाली के साहस की गाथा यहीं खत्म नहीं होती उसने व उसकी सहयोगी महिलाओं ने कोरोना महामारी के बीच आपदा को अवसर में बदलते हुए ऐसे समय जब लोग घर से बाहर निकलने से डर रहे थे तब उन्होंने अपना सिलाई केंद्र खुला रखा. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मास्क व पीपीई किट का बनाकर पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग अन्य सरकारी विभागों को उपलब्ध कराई.
ग्रामीण आजीविका मिशन ने वैशाली के सपनो को साकार करने मदद की
ग्रामीण आजीविका मिशन कि विकासखंड प्रबंधक श्रद्धा शर्मा बताती हैं कि गरीब तबके की ग्रामीण महिलाओं को समूह के जरिए से मार्गदर्शन देकर उनकी आवश्यकता अनुसार और रुचि के अनुसार काम करने के लिए प्रेरित किया जाता है. महिलाओं को उद्योग के लिए ऋण उपलब्ध कराने के साथ-साथ बाजार की समझ व मार्केट का सर्वे कर आधुनिकता से परिचय कराना पड़ता है. वैशाली के काम करने के जुनून को आजीविका मिशन ने समझा और अन्य महिलाओं के समूह को जोड़ा जिसके चलते उनका सिलाई केंद्र आज बड़े उद्योग के रूप में स्थापित हो गया है.
जिले के ठीकरी विकासखंड के छोटे से गांव पिपरी की महिला ने अपने आत्मविश्वास के चलते खुद को आत्मनिर्भर किया. साथ ही सैकड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन उन्हें भी रोजगार के अवसर प्रदान किए. कभी चार से पांच मशीनों से शुरू हुआ सिलाई केंद्र आज एक बड़े उद्योग के रूप में स्थापित हो गया है. साथ ही इनके द्वारा तैयार किए गए कपड़ो की मांग बड़े शहरों में भी है. खुद का व्यवसाय शुरू कर महिला सशक्तिकरण का अलख जगाने वाली वैशाली चौधरी आज बड़वानी जिले ही नहीं आसपास के बड़े शहरों में परिचय की मोहताज नहीं है.