सागर। बचपन से ही परिवार में मिले साहित्य के संस्कार और बुंदेली की मिठास.अपनापन और शब्दों की समृद्धता ने सागर की महिला प्रोफेसर के लिए ऐसी प्रेरणा दी कि उन्होंने 20 साल लगातार मेहनत करते हुए 50,000 से ज्यादा शब्दों का बुंदेली शब्दकोश तैयार कर दिया. सागर के आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज की हिंदी विभाग की प्रोफेसर डॉ. सरोज गुप्ता द्वारा तैयार किए गए बुंदेली शब्दकोश की खासियत ये है कि इसमें बुंदेलखंड के हर पहलू से जुड़े शब्द मिलेंगे. उन्होंने बुंदेलखंड के चप्पे-चप्पे को छानकर यहां के रहन सहन,खानपान,व्यवसाय, त्योहार, रीति रिवाज और जीवन के हर पहलू से जुड़े शब्दों को अपने कोश में शामिल करने की कोशिश की है. बुंदेली को भाषा का दर्जा दिलाए जाने के लिए ये काफी महत्वपूर्ण प्रयास है. प्रोफेसर डॉ. सरोज गुप्ता बुंदेली शब्दकोश के प्रकाशन के बाद अब बुंदेली विश्वकोश के प्रकाशन की तैयारी कर रही हैं. (sagar 50 thousand words penance of twenty years)
अब विश्व शब्दकोश की तैयारी कर रहीं डॉ. सरोज गुप्ता कौन हैं डॉ. सरोज गुप्ताः डॉ. सरोज गुप्ता सागर के पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष हैं. उन्होंने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी से हिंदी साहित्य में एमए और बीएड किया. फिर सागर में डॉ. भागीरथ प्रसाद मिश्र के निर्देशन में पीएचडी की और 1989 में गढ़ाकोटा शासकीय महाविद्यालय में हिंदी की असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में पदस्थ हुई. बचपन से ही परिवार में साहित्य के प्रति प्रेम के संस्कार मिले थे. उनके पिताजी प्रिंसिपल थे और बुंदेली के प्रति उनका अगाध प्रेम था. उनके घर बुंदेली पत्रिकाएं मामोलिया, ईसुरी और चौमासा आती थी. मामोलिया और ईसुरी के माध्यम से उन्होंने बुंदेली को समझा और लगा कि बुंदेली सिर्फ बोली नहीं,बल्कि एक समृद्ध भाषा है. कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के बाद उनकी सागर में पदस्थापना हुई और उन्होंने सबसे पहले बुंदेली के कवि और संस्कृत विषय पर एक छोटा सा प्रोजेक्ट तैयार किया. प्रोजेक्ट तैयार करते समय उन्हें बुंदेली शब्दकोश बनाने की प्रेरणा मिली. शब्दों के भंडार की जानकारी हुई और उनके मन में विचार आया कि बुंदेली शब्दकोश बनाने का काम करना चाहिए. (dr saroj gupta preparation for world dictionary)
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1996 से शुरू कर दिया था बुंदेली शब्दों का संकलनः डॉ. सरोज गुप्ता बताती है कि उन्होंने 1996 से बुंदेली के शब्दों का संकलन शुरू कर दिया था. लेकिन व्यवस्थित शुरुआत सन 2000 में की. साहित्यकार आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सागर आए और उनसे मैंने मार्गदर्शन मांगा कि बुंदेली शब्दों का संकलन कर मैं प्रकाशित कर सकती हूं. उन्होंने कहा कि शब्द किसी की बपौती नहीं होते हैं. आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं. बुंदेली समृद्ध भाषा है,आप संकलन करिए. इसके पहले टीकमगढ़ के कैलाश बिहारी द्विवेदी ईसुरी में बुंदेली शब्दकोश प्रकाशित करते थे. मैंने उन शब्दों का भी संकलन किया था. मैंने शब्दों का संकलन शुरू कर दिया था. मैंने अपने कॉलेज के प्रिंसिपल जेपीएन पांडे से अनुमति लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में बुंदेली विश्वकोश पर काम करने के लिए आवेदन किया. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा साहित्यकार नामवर सिंह ने मेरा इंटरव्यू लिया और उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दी और कहा कि आज से ही आप काम शुरू करो, रुकना नहीं, मैं अनौपचारिक स्वीकृति देता हूं. (sagar collection Bundeli words started from 1996)
लुहार और सुनारों से की मुलाकातः प्रो. सरोज गुप्ता बताती हैं कि नामवर सिंह की अनौपचारिक स्वीकृति के बाद औपचारिक स्वीकृति भी मिल गई. इसके बाद मैं 3 साल तक बुंदेलखंड के गांव-गांव घूमी. साहित्यकारों, गांव के लोगों के साथ चबूतरे पर बैठकर बातचीत की. ग्रामीणों से मिली, मजदूरों से मुलाकात की. बढ़ई, लोहार और सुनार के व्यवसाय में कौन से शब्दों प्रयोग किए जाते हैं,उनके बारे में जाना. यहां तक कि मैं शब्दकोश के लिए जेल भी गई. डॉ. आरडी मिश्र से मिली, तो उन्होंने कई पुस्तकों के बारे में बताया. जिसमें मुझे बुंदेली के नए शब्द मिले, उनका भी मैंने संकलन किया. बुंदेली शब्दकोश में 50,000 से ज्यादा शब्द हैं. परिशिष्ट में सवा सौ से ज्यादा पेज है. हमारे पर्व, त्योहार, लोक देवी देवता सब कुछ जानकारी है. डॉ. सरोज गुप्ता बताती है कि शब्द संकलन के काम में परिवार का भी भरपूर साथ मिला. (dr saroj had to wait 10 years for publication) (sagar meeting with blacksmiths and goldsmiths)
प्रकाशन के लिए करना पड़ा 10 साल इंतजारः शब्दों का संकलन पूरा होने के बाद प्रकाशन के लिए डॉ. सरोज गुप्ता को काफी परेशान होना पड़ा. उनका शब्दकोश करीब एक साल भोपाल में साहित्यकार और आदिवासी लोक कला परिषद के पूर्व सचिव कपिल तिवारी के पास रखा रहा,लेकिन बात नहीं बनी. छतरपुर में भी प्रकाशन के प्रयास किए, लेकिन कोशिश नाकाम रही. नेशनल बुक ट्रस्ट भी प्रकाशन के लिए भेजा, लेकिन निराशा हाथ लगी. इसके बाद उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान में आवेदन किया. तब बृजेश श्रीवास्तव वहां के निदेशक थे और उन्होंने प्रकाशन की सहमति दी. 2016 में बुंदेली शब्दकोश का प्रकाशन हुआ. (dr saroj had to wait 10 years for publication)