जबलपुर।गौरवशाली गढ़ मंडला का गोंडवाना साम्राज्य, आज भी संस्कारधानी गोंडवाना शासकों की वीरता और उनके द्वारा किए गए कार्यों से समृद्ध है, ठीक ऐसे ही दो वीर इस वंश के रहे हैं. तोप के सामने किसी को जिंदा बांधकर उसके चीथड़े उड़ा देना अंग्रेजों के लिए नई बात नहीं थी, लेकिन मौत के सामने भी अपनी कविताओं के जरिए लोगों में क्रांति की भावना भरना संभवतः इन्हीं के लिए संभव था. गोंड वंश के राजा शंकरशाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह ने उस दौरान अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था, जब कई बड़े-बड़े रियासतें अंग्रेजों के सामने कमजोर साबित हो रही थी. ऐसे ही जब जबलपुर में अंग्रेजों की पकड़ लगातार बढ़ती जा रही थी, अंग्रेज चाहते थे कि जबलपुर से पूरे महाकौशल में कंपनी का वर्चस्व फैल जाएं, लेकिन राजा शंकर शाह को यह मंजूर नहीं था. 165th sacrifice day of Gondwana King
ऐसे सुलगाई विद्रोह की आग:1857 ई0 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजिमेण्ट का कमाण्डर क्लार्क बहुत क्रूर था, वह छोटे राजाओं, जमीदारों एवं जनता को बहुत परेशान करता था. यह देखकर गोंडवाना जो वर्तमान जबलपुर के नाम से जाना जाता है, राजा शंकरशाह ने उसके अत्याचारों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. राजा और राजकुमार दोनों अच्छे कवि थे, उन्होंने कविताओं द्वारा विद्रोह की आग पूरे राज्य में सुलगा दी, लेकिन यह बात अंग्रेजों को नागवार गुजरी और उन्होंने राजा शंकर शाह और उनके बेटे को घेरने की योजना बनाई. अंग्रेजों ने अपनी गुप्तचर के जरिए यह जानने की कोशिश की कि शंकर शाह अंग्रेजों के खिलाफ कौन सी रणनीति बना रहे हैं और उसके बाद अंग्रेजों ने 14 सितंबर की रात को शंकर शाह के महल को चारों ओर से घेर लिया. राजा की तैयारी अभी अधूरी थी, अतः धोखे के चलते राजा शंकरशाह और उनके 32 वर्षीय पुत्र रघुनाथ शाह बन्दी बना लिए गए. जबलपुर शहर में अब भी वह स्थान है जहां पिता-पुत्र को मृत्यु से पूर्व बंदी बनाकर रखा गया था.