इंदौर। कहते हैं अपने माता-पिता के अंतिम संस्कार से बड़ा फर्ज बच्चों के लिए कुछ नहीं होता. लेकिन कोरोना काल के खौफ ने माता-पिता के शव की अंत्येष्टि और अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी पर भी संक्रमण की लक्ष्मण रेखा खींच दी. जहां अपने ही अपनों को खोने का दर्द, आंसू और मृत व्यक्ति से जुड़ी यादें सब कुछ भुलाकर उन्हें एक नजर देखने से भी बच रहे हैं.
अपनों को छूने से भी बच रहे अपने
बेटा मां-बाप की अर्थी को कांधा नहीं दे रहा, तो अपनों की अस्थि संचय करने भी उनके परिजन शमशान घाट नहीं पहुंच रहें. देश के कोरोना हॉटस्पॉट इंदौर शहर में ही अब तक 60 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए. जहां कोरोना संक्रमण से मृतक के परिजनों और सगे संबंधियों ने उसकी अंत्येष्टि के दौरान अर्थी को कांधा देने से तक मना कर दिया. जिसके बाद शमशान घाट के कर्मचारियों ने ही इन मृतकों का अंतिम संस्कार किया. यहां कई लोग ऐसे भी आए जिन्होंने अपने माता पिता के अंतिम संस्कार के लिए दिहाड़ी मजदूरों को चुना. मजदूरों की मदद से ही किसी तरह बॉडी मुक्तिधाम तक लाए. शमशान घाट के कर्मचारी ने बताया कि ऐसा पहली बार हो रहा है, कि अपने ही अपनों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर रहे.
इंदौर के रामबाग स्थित मुक्तिधाम में पिछले दो महीनों से हर दिन कोरोना से मृत लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. यहां श्मशान घाट में काम करने वाले कर्मचारी बताते है कि जब लोग अपनों का अंतिम संस्कार नहीं करते तो वह खुद ही उनकी अंतयेष्टी करते हैं. उन्होंने बताया कि श्मशान में सामान्य मृत्यु वाले शवों को शव यात्रा और एंबुलेंस के जरिए लाया जाता है. लेकिन यदि कोई शव कोरोना संक्रमित है तो एंबुलेंस वाले भी संक्रमित शवों को एंबुलेंस में नहीं लाते. लिहाजा इंदौर के कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए निर्धारित रेड श्रेणी के एमआर टीवी हॉस्पिटल, चोइथराम अस्पताल, अरविंदो अस्पताल और इंडेक्स अस्पताल से शवों को किसी तरह लोडिंग रिक्शा में लाया जाता है.
बेटे ने नहीं दिया मां की अर्थी को कांधा