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इंदौर में भी दिख रहा बैंकों की हड़ताल का असर, करीब एक लाख 17 करोड़ रुपए का नुकसान

बैंकों के निजीकरण और विलीनीकरण के विरोध में देशभर में बैंकिंग सेक्टर से जुड़े कर्मचारियों और अधिकारियों ने हड़ताल की है. इस हड़ताल का असर इंदौर में भी देखा जा रहा है. हड़ताल की वजह से इंदौर में लगभग एक लाख 17 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया गया है.

Indore news
बैंक हड़ताल

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Published : Jan 8, 2020, 1:34 PM IST

इंदौर। देशभर में आज बैंकों के निजीकरण और विलीनीकरण के विरोध में बैंकिंग सेक्टर से जुड़े प्रतिनिधियों ने आज हड़ताल की है. मध्यप्रदेश में भी बैंकों की 7 हजार 548 शाखाओं में से 5 हजार शाखाएं बंद हैं. प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में भी इस हड़ताल का असर देखा जा रहा है. इस हड़ताल से इंदौर में लगभग एक लाख 17 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया गया है.

हालांकि हड़ताल के मद्देनजर आज सुबह से ही बैंकों के पांच राष्ट्रीय संगठनों के आह्वान पर बैकों की शाखाएं बंद रखी गई है. बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य ब्रांच पर विरोध-प्रदर्शन करते हुए बैंकिंग सेक्टर के अधिकारी और कर्मचारियों ने शहर के व्यावसायिक क्षेत्रों में रैली निकालकर अपना विरोध जताया.

इस दौरान बैंकिंग सेक्टर से जुड़े प्रतिनिधियों ने बताया कि आज की हड़ताल में बैंकिंग सेक्टर से जुड़े 50 से ज्यादा संगठन शामिल हैं. इस हड़ताल की सबसे बड़ी वजह यह है कि केंद्र की मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां बैंक विरोधी हैं, क्योंकि बैंकों में बीते 8 साल से नियुक्तियां बंद हैं. दूसरी तरफ बेरोजगारी का प्रतिशत 4 से बढ़कर 7 फीसदी हो चुका है. देश में 35 फीसदी पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार हैं, जबकि बैंकों में पद खाली पड़े हैं.

इंदौर में भी दिख रहा बैंकों की हड़ताल का असर

उद्योगपतियों को लोन देने से कंगाल हुए बैंक

बैंकिंग सेक्टर के अधिकारियों ने बताया मोदी सरकार ने अदानी, अंबानी जैसे उद्योगपतियों को लगातार लोन बांटा है. जिसके कारण बैंकिंग की व्यवस्थाए बिगड़ी हैं. बैंक डूबने की कगार पर आ गए हैं. अब सरकार इससे ध्यान बांटने के लिए बैंकों का विलीनीकरण कर रही है. जिससे आम लोगों को बैंकिंग सेक्टर से होने वाली सुविधाओं में भी कमी आएगी.

बैंक अधिकारियों ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के पहले जीडीपी की दर 6.8% थी जो अब घटकर 5 फ़ीसदी हो चुकी है. सरकार ने खुद इसे स्वीकार किया है. दूसरी तरफ मोदी जी देश को 5 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के दावे कर रहे हैं. लेकिन बीते 45 सालों में इतनी अधिक बेरोजगारी कभी नहीं रही.

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