इंदौर: पहले सीधी और अब ग्वालियर बस हादसे के बाद प्रशासन एक बार फिर बस संचालकों पर सख्त होता दिखाई दे रहा है. लेकिन हादसा हो जाने की बाद ही ऐसी सख्ती क्यों दिखाई दिखाई जाती है यह बड़ा सवाल है. ग्वालियर बस हादसे में कोरोना कर्फ्यू के के दौरान तंगहाली के चलते पलायन कर अपने गांवों को जाने वाले लोगों से ज्यादा किराया वसूले जाने की बात भी सामने आई थी. इस हादसे में 3 मजदूरों की मौत हो गई थी जबकि 24 लोग घायल हुए थे. ईटीवी भारत ने प्रदेश के दूसरे शहरों में भी पलायन की स्थिति और मजदूरों की परेशानी को लेकर ग्राउंड पर जाकर सच्चाई जानी..देखिए रिपोर्ट
हादसों का इंतजार करता है प्रशासन ?
सीधी बस हादसे के बाद प्रदेश में बसों में लोगों को बैठाने, उनकी फिटनेस चेक किए जाने और बसों के संचालन को लेकर प्रशासन ने कई तरह के सख्त निर्देश जारी किए थे. लेकिन ग्वालियर में मंगलवार को हुए बस हादसे ने प्रशासन की सख्ती की पोल खोल दी. यहां ग्वालियर से टीकमगढ़ जा रही बस में न सिर्फ क्षमता से ज्यादा लोगों को बैठाया गया था बल्कि बस की छत के ऊपर भी लोग सवार थे. मजदूरों से कई गुना ज्यादा किराया भी वसूला गया था. इतना ही नहीं बस का ड्राइवर भी शराब पीकर गाड़ी चला रहा था. ऐसे में सवाल उठता है कि कोरोना काल में शहर के हर चौराहे पर नजर आने वाली पुलिस के बेरिकेटिंग में इसे रोका क्यों नहीं गया ? पूछताछ क्यों नहीं हुई?. क्या किसी भी जिम्मेदार पुलिस अफसर की नजर हादसे का शिकार हुई इस बस पर पहले क्यों नहीं गई?
'हादसे का पलायन': ओवर लोडिग और शराब की वजह से तीन मजदूरों की मौत