भोपाल। मध्य प्रदेश को भले ही देश में सबसे ज्यादा बाघ होने के लिए टाइगर स्टेट का दर्जा मिल गया हो. लेकिन टाइगर स्टेट में बाघों की मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं रुक रहा है. प्रदेश के बाघ संरक्षित क्षेत्रों और उसके बाहर के जंगलों में बाघों की लगातार मौत हो रही है. पिछले करीब 11 महीने के दौरान 26 बाघों की मौत हो चुकी है.
खतरें में है एमपी का 'टाइगर स्टेट' का दर्जा देशभर में सबसे ज्यादा 526 बाघ मध्य प्रदेश में हैं. सरकार इसको लेकर उत्साहित है जिसके जरिए पर्यटकों को लुभाने की कोशिश में जुटी है. लेकिन बाघों की लगातार हो रही मौतें चिंता का विषय बनी हुई है. पिछले सात सालों में प्रदेश में 141 बाघों की मौत हुई है और यह सिलसिला इस साल भी जारी है. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक 2012 से 2018 के बीच मध्यप्रदेश में 141 बाघों की मौत हुई, जबकि देशभर में यह आंकड़ा 655 हैं.
प्रदेश में 141 बाघों की मौत में से 80 बाघों की मौत प्राकृतिक कारणों की वजह से हुई है, जबकि 31 का शिकार किया गया. जबकि 30 बाघों की मौत आपसी लड़ाई और जहर खुरानी जैसे ही घटनाओं की वजह से हुई. इस साल 15 नवंबर तक नेशनल टाइगर रिजर्व के भीतर और आसपास 26 बाघों की विभिन्न कारणों से मौत हो चुकी है.
सबसे ज्यादा कान्हा टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत
पिछले 11 महीनों के दौरान बाघों की सबसे ज्यादा मौत कान्हा टाइगर रिजर्व में हुई है. यहां 8 बाघ मारे गए. वही बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 6. पेंच टाइगर रिजर्व में तीन और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में 1-1 बाघ की मौत हुई है. मध्य प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में नो टाइगर की मौत हुई है. सीमित क्षेत्र की वजह से बाघों के बीच टेरिटोरियल संघर्ष की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं. 2018 में 24 बाघों की मौत हुई थी जबकि 2017 में 28 बाघ मारे गए थे.
बढ़ती आबादी और सिकुड़तें जंगल भी बाघों की मौतों का बड़ा कारण है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा बढ़ी मुश्किल से मिला था. लेकिन जिस स्पीड से बाघों की मौत हो रही है. उससे टाइगर स्टेट का तमगा एमपी से छिन सकता है. ऐसे में जरुरत है बाघों के सरक्षण की. ताकि मध्य प्रदेश के जगलों में बाघ आबाद रहे और मध्य प्रदेश के पास टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार रहे.