ग्वालियर। राजा मिहिर भोज की जाति को लेकर गुर्जर समाज और क्षत्रिय समाज एक बार फिर आमने सामने आ गए हैं. मंगलवार को राजा मिहिर भोज की जयंती है. जिसे लेकर इस मौके पर गुर्जर समाज के किसी व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर भव्य चल समारोह निकालने की शेयर पोस्ट की. इसके बाद क्षत्रिय समाज भी सामने आ गया और चल समारोह निकालने के लिए प्रशासन से अनुमति लेने के लिए पहुंच गए. दोनों समुदायों में एक बार फिर राजा मिहिर भोज को लेकर बढ़ते विवाद को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने तत्काल दोनों समाज के प्रबुद्ध लोगों की बुलाकर उनसे बातचीत की है. emperor mihirbhoj, Tention Over Mihirbhoj
हाईकोर्ट ने दिए हैं सख्त निर्देश: प्रशासन के आला अधिकारियों ने दोनों समाज के प्रमुख लोगों को बुलाकर उन्हें होईकोर्ट की गाइडलाइन की जानकारी दी. उन्होंने कहा है कि राजा मिहिर भोज का मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित है. इस संबध में हाईकोर्ट के सख्त निर्देश हैं कि कोई भी इनको लेकर न तो सोशल मीडिया पर पोस्ट करेगा और न हीं किसी भी तरह का कोई आयोजन किया जाएगा.अगर किसी भी समुदाय के द्वारा माननीय हाईकोर्ट के निर्देश का पालन नहीं किया तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
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क्षत्रिय समाज ने जताई आपत्ति: प्रशासन की बैठक में आए क्षत्रिय समाज के लोगों का कहना है कि जब हाईकोर्ट के सख्त निर्देश है कि राजा मिहिर भोज को लेकर कोई भी सोशल मीडिया पर पोस्ट और किसी तरह आयोजन नही होगा, इसके बावजूद एक समुदाय के लोग चल समारोह निकालने की पोस्ट डाल कर इसका ऐलान कर रहे हैं.इस मामले में अपर कलेक्टर इक्क्षित गढ़पाले का कहना है कि 'दोनों समाजों के लोगों को निर्देश दे दिए गए हैं. जो भी माननीय उच्च न्यायालय का आदेश का पालन नहीं करेगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी'.
2021 में हो चुका है टकराव:
साल 2021 में ग्वालियर में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा स्थापित किए जाने को लेकर गुर्जर समाज और क्षत्रिय समाज के बीच टकराव देखने को मिला था. दोनों ही समाज राजा मिहिर भोज को अपनी जाति का बताते हैं. ग्वालियर में गुर्जर समाज के द्वारा उनकी मूर्ति लगाने के बाद राजा मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद गहरा गया था. जिसके बाद से यह मामला हाईकोर्ट में है. हाईकोर्ट के निर्देश पर ही मूर्ति और शिलालेख को ढंक दिया गया है. जिसके बाद से यथास्थिति बनी हुई है. ताजा मामला सामने आने के बाद यह विवाद फिर गहरा गया है.
जानें कौन थे सम्राट मिहिर भोज:इस संबंध में भिंड के पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने ईटीवी भारत को बताया कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर प्रतिहार वंश के एक प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालात और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा कायम की जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.
जाति पर गुर्जर-क्षत्रिय के अपने-अपने दावे:सम्राट मिहिर भोज को लेकर विवाद ये है कि इनकी जाति गुर्जर है या क्षत्रिय. क्षत्रिय इनके राजपूत होने का दावा करते हैं. दूसरी तरफ गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे. राजपूत समुदाय का दावा है कि महिर भोज राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरा देश के एक क्षेत्र के नाम के चलते प्रयोग किया जाता है. इन दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण भी मिलता है. सम्राट मिहिर भोज की जाति गुर्जर या राजपूत होने का यही मुद्दा दोनों समुदायों के बीच कटुता और संघर्ष का कारण बन गया है.
इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद:साल 2021 में ग्वालियर के एक चौहारे परसम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा स्थापित की जा रही थी. प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर उनकी जाति को लेकर 'गुर्जर' शब्द लिखा गया था. यही विवाद की वजह बना और यहीं से सारा विवाद शुरू हुआ. गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर राजपूत समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत भी की थीं. इस मामले पर राजपूत करणी सेना ने सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर एतिहासिक तथ्यों को सामने लाने के लिए गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास एलवाई से मिलकर इतिहासकारों की कमेटी गाठित करने की मांग भी की थी.
'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी:सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया, उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है. इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे, इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की छवि अंकित मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे, इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ग्वालियर किले में स्थित तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां सम्राट मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था, ऐसा माना जाता है.
ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख:ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है. चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.
सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत:सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है, मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात नहीं होनी चाहिए.