भोपाल। कभी कोरोना काल (Corona) में स्कूल खोलने को लेकर, तो कभी फीस (School Fees) को लेकर प्राइवेट स्कूल और सरकार आमने सामने रहे हैं. अब प्राइवेट स्कूल संचालक शिक्षा विभाग से 5 साल की मान्यता(Recognition Of Private Schools) देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन कोरोना के चलते विभाग ने सभी स्कूलों को 1 साल की मान्यता देने के निर्देश दिए हैं. इसी बात को लेकर अब प्राइवेट स्कूल संचालक प्रदेश भर में आंदोलन(Private Schools On Path Of Movement) की राह पर हैं.
हर साल मान्यता का विरोध, आंदोलन की राह पर प्राइवेट स्कूल
निजी स्कूल संचालकों का (Recognition Of Private Schools) कहना है कि अगर पांच साल के लिए एक साथ मान्यता मिल जाती तो अच्छा रहता. अब हमें बार- बार चक्कर लगाने पड़ेंगे. निजी स्कूल संचालकों का आरोप है कि शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार (Corruption In Education Department) इस कदर हावी है कि RTE के पैसे से लेकर स्कूलों की फीस तक संचालकों को नहीं मिली है. ऐसे में मजबूरन आंदोलन करना पड़ रहा है. लेकिन मध्य प्रदेश पालक संघ विभाग के फैसले से खुश है. इनका कहना है कि स्कूल संचालकों की मांग अनुचित है. हर साल अनुमति लेने से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा. क्योंकि 5 साल में अनुमति लेने के बाद स्कूल संचालक निश्चिंत हो जाते हैं और मनमानी करते हैं .
प्रदेश में अब स्कूल पूरी तरह से खुल गए हैं . 20 सितंबर से कक्षा एक से पांचवीं के बाद अब पूरे प्रदेश में कक्षा एक से बारहवीं तक के स्कूल ओपन हैं. सरकारी स्कूलों में ठीक ठाक संख्या में बच्चे पहुंच रहे हैं , लेकिन प्राइवेट स्कूलों में अभी भी बच्चों की (Recognition Of Private Schools) संख्या ना के बराबर है. सीबीएसई स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश के प्राइवेट स्कूल संचालकों ने प्रदेश भर में आंदोलन की चेतावनी दी है. ये ताजा चेतावनी स्कूलों की अधिमान्यता को लेकर है.
'नए नियम से घूसखोरी बढ़ेगी'
अभी तक शिक्षा विभाग स्कूलों के अधिमान्यता (Recognition Of Private Schools) के लिए 5 साल का समय देता था, लेकिन करोनाकाल में सरकार ने इसकी अवधि इसी साल से घटाकर एक 1 साल कर दी है. यानि अब हर साल मान्यता लेनी होगी. मध्य प्रदेश के प्राइवेट स्कूल संचालक इसके विरोध में है. इनका आरोप है कि बार-बार रिनुअल के लिए अधिकारियों को रिश्वत के रूप में पैसा देना पड़ता है ,ऐसे में जितनी फीस रिनुअल की लगती है उतना ही पैसा संबंधित अधिकारी को देना पड़ता है. अभी तक 5 साल के ₹1लाख लगते हैं और 1 साल की फीस 20000 रखी है.