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MP Nikay Chunav: मध्य प्रदेश के छोटे चुनाव में बड़ों की साख दांव पर, उम्मीदवारों को जिताने की गारंटी लेने वाले नेताओं का भविष्य होगा तय - mp panchayat election

मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय के चुनाव को सियासी तौर पर इसलिए भी राजनीतिक दल अहम मान रहे हैं, क्योंकि इन चुनावों के लगभग एक साल बाद ही विधानसभा चुनाव का शोर जोर पकड़ लेगा. कुल मिलाकर नगरीय निकाय चुनाव की हार-जीत का विधानसभा चुनाव पर असर होने की संभावनाओं को कोई नहीं नकार रहा है.

credibility of big leaders was at stake in the MP local body elections
एमपी नगरीय निकाय चुनाव में बड़े नेताओं की साख दांव पर लगी

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Published : Jun 17, 2022, 8:14 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव का रंग धीरे-धीरे गहराने लगा है. नामांकन भरने का दौर अंतिम चरण में है. यह चुनाव छोटे जरूर हैं, मगर बड़ों की साख दांव पर लगी हुई है. इसके साथ ही इन चुनावों के नतीजों से ही प्रदेश की आगे की सियासी राह तय होने वाली है. प्रदेश में वैसे तो नगरीय निकायों के साथ पंचायत के चुनाव भी हो रहे हैं, मगर पंचायत चुनाव गैर दलीय आधार पर हैं. इसका आशय है कि उम्मीदवार दलीय चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. नगरीय निकाय के चुनाव दलीय आधार पर हो रहे हैं, इनमें नगर निगम के महापौर का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाएगा. जबकि नगर पालिका और नगर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव पार्षद करेंगे.

सीएम शिवराज ने कांग्रेस पर कसा तंज: प्रदेश में 16 नगर निगम है, इन सभी पर भाजपा का कब्जा रहा है. भाजपा फिर इसे दोहराना चाहती है, भाजपा ने सभी नगर निगमों के महापौर पद के लिए उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. वहीं कांग्रेस अब तक 15 नगर निगम के महापौर के उम्मीदवारी तय कर पाई है, रतलाम का मामला उलझा हुआ है. दोनों ही दल के बड़े नेता महापौर पद के उम्मीदवारों के नामांकन कराने के अभियान में जुटे हुए हैं. भाजपा की ओर से लगातार सभी 16 नगर निगम में महापौर पद पर जीत के दावे किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो यहां तक तंज कसा है कि, कांग्रेस के पास तो कार्यकर्ता तक नहीं हैं.

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नेताओं ने ली उम्मीदवारों को जिताने की गारंटी: कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष अब्बास हफीज का कहना है कि, भाजपा के नेता चाहे जितने गाल बजा लें, जनता के सामने हकीकत है. समस्याओं का अंबार है, इसलिए नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ेगी. प्रदेश में महापौर उम्मीदवारों के चयन की चली प्रक्रिया को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाएं जोर पकड़ती रही हैं और यहां तक कहा जा रहा है कि कई उम्मीदवारों को जिताने की गारंटी भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने ली है. चर्चा इस बात की भी है कि जिन नेताओं ने उम्मीदवारों की जीत की गारंटी ली है, अगर वह हार जाते हैं तो गारंटी लेने वाले नेताओं का भविष्य क्या होगा.

बीजेपी ने लगाया नए चेहरों पर दांव: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रदेश में नगरीय निकाय के चुनाव भले ही विधानसभा और लोकसभा की तुलना में छोटे माने जा रहे हो. मगर इन चुनावों के नतीजे सियासी तौर पर मायने रखने वाले होंगे. इसकी वजह भी है, क्योंकि कई बड़े नेता महापौर पद के उम्मीदवारों के पीछे खड़े नजर आ रहे हैं. पार्टी का संगठन तो अपना काम करेगा ही, उन नेताओं की साख दाव पर लगी है, जिन्होंने महापौर पद के उम्मीदवार तय कराने में बड़ी भूमिका निभाई है. कांग्रेस ने महापौर पद के लिए जिन 15 उम्मीदवारों के नाम तय किए हैं, उनमें चार वर्तमान विधायक हैं. वहीं दूसरी ओर भाजपा ने किसी भी बड़े नेता को मैदान में नहीं उतारा, बल्कि नए चेहरों पर दांव लगाया है. वहीं परिवारवाद और वंशवाद को महत्व भी नहीं दिया है.

इनपुट - आईएएनएस

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