भोपाल।सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश में शिशु मृत्यु दर की स्थिति में (Madhya Pradesh shows infant mortality rate is high) बहुत ज्यादा सुधार नहीं आ रहा है. यह हालात तब हैं जब सरकार हर साल प्रदेश में मातृ और शिशु मृत्यु दर में सुधार के लिए अलग-अलग योजनाओं में करीबन 2 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है. प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चैहान भी इसे प्रदेश के माथे का दाग बता चुके हैं. बावजूद इसके स्थिति सुधरती नहीं दिख रही है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में जन्म लेने वाले प्रति हजार बच्चों में से 46 बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते हैं.
क्या कहती है सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट
जनगणना निदेशालय की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में प्रदेश की आईएमआर (infant mortality rate) यानी शिशु मृत्यु दर 46 प्रति हजार है, जबकि साल 2018 में यह 48 प्रति हजार थी. इसका मतलब आज भी प्रदेश में जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से 46 बच्चे अपना पहला जन्म दिन भी नहीं मना पाते, हालांकि पिछले आंकड़ों के मुताबिक इसमें 2 अंका का सुधार हुआ है, लेकिन यह अब भी देश में सबसे ज्यादा है.
यह है प्रदेश की स्थिति
जनगणना निदेशालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में आईएमआर के मामले में मध्यप्रदेश देश में टाॅप पर है. प्रदेश की शिशु मृत्यु दर/हजार पर 46 है. जबकि इस मामले में पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम और नागालैंड की स्थिति देश के बड़े राज्यों से कई गुना बेहतर है. इन दोनों राज्यों में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे कम है. यानी यहां जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से सिर्फ 3 बच्चे ही एक साल की उम्र पूरी नहीं कर पाते.
-मध्यप्रदेश में प्रति हजार में 46, उत्तर प्रदेश में 41, छत्तीसगढ़ में 40, राजस्थान में 35, बिहार में 29, गुजरात में शिशु मृत्यु दर आईएमआर 25 है.
- मध्यप्रदेश में साल 2018 के मुताबिक 2019 में शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में 2 अंकों का सुधार हुआ है. 2018 में यह 48 थी.
- प्रदेश में त्वरित नवजात मृत्यु दर साल 2019 में 25 है, जबकि 2018 में यह 26 थी.
- प्रदेश में शिशु मृत्यु दर ही नहीं, बल्कि मातृ मृत्युदर के आंकड़ों में भी बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया है.