हैदराबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के मंत्रिमंडल विस्तार (cabinet expansion) में सिंधिया राज घराने के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को जगह मिल गई है. उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है. ये घटना सामान्य नहीं है, क्योंकि आज़ाद भारत के इतिहास में ये पहला मौका होगा जब इस प्रतिष्ठित राज घराने से कोई पुरुष किसी गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल में शामिल हुआ है. हालांकि, इससे पहले 1984 में भारतीय राजनीति में पदार्पण करने वाली सिंधिया राज घराने (Scindia royal family) की बेटी वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) अटल बिहार वाजपेयी की सरकार (Vajpayee government) में साल 1998 में विदेश मंत्री रह चुकी हैं, लेकिन वे राजस्थान में राजनीति करतीं है. वे राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं और उनकी ससुराल धौलपुर राजघराने में है.
आज़ाद भारत में सिंधिया राजघराने की पारी
हिंदुस्तान के आजाद होने के बाद सिंधिया राजपरिवार ने अपनी नई सियासी पारी की शुरुआत कांग्रेस के साथ ही की. 1947 में ग्वालियर रियासत को मध्य भारत के नाम से जाना जाता था. उस समय के तत्कालीन महाराज जीवाजी राव सिंधिया (Jivajirao scindia) को इंग्लैंड के अनुसार राजप्रमुख का दर्जा दिया गया. उन्होंने ही मध्य भारत के पहले मंत्रिमंडल को शपथ दिलाई. इसके बाद 28 मई 1948 को जीवाजी राव का निधन हो गया. उनकी महारानी विजयाराजे सिंधिया तब तक कांग्रेस में शामिल हो चुकी थीं.
देव श्रीमाली, वरिष्ठ पत्रकार विजयाराजे को रास नहीं आई कांग्रेस
राजमाता विजयाराजे सिंधिया (Vijaya Raje Scindia) ग्वालियर- चम्बल अंचल से विधायक रहीं और 1956 में मध्य भारत की जगह मध्य प्रदेश का गठन हो गया उसके बाद भी इस अंचल में कांग्रेस में उनका दब-दबा कायम रहा. 1957 में भी सिंधिया परिवार ने गुना में धमाकेदार जीत दर्ज की थी. वहीं 1967 में राजमाता विजयाराजे का कांग्रेस से मोहभंग हो गया, जिसकी वजह तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्र से तना-तनी थी. 1967 के विधानसभा चुनाव में वे स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में खड़ी हुईं और इस बार भी जीत उन्हीं की हुई.
डीपी मिश्र से हुई खटपट और चुनाव में मिली जीत ने उन्हें बगी बना दिया और उन्होंने अपने समर्थक दो दर्जन से ज्यादा विधायकों को साथ लेकर बगावत करते हुए कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. राजमाता की मदद से मध्य प्रदेश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ. इसके के मुखिया बने सतना के गोविंद नारायण सिंह. हालांकि, यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चली. बाद में राजमाता जनसंघ में शामिल हो गईं और फिर जब कर जीवित रहीं इसी विचारधारा के साथ रहीं.
ज्योतिरादित्य को मिला नागरिक उड्डयन मंत्रालय, कभी पिता माधव राव ने भी संभाली थी जिम्मेदारी
माधवराव की राजमाता से बगावत !
1971 में 26 साल की उम्र में माधवराव सिंधिया (Madhav Rao Sindhiya) ने जनसंघ के टिकट पर गुना से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. जनसंघ से माधवराव का ज्यादा दिनों तक साथ नहीं रहा. वे 1977 के आम चुनाव में ग्वालियर सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे और फिर जीते.
1979 में केन्द्र में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई और जनवरी 1980 में आम चुनाव की घोषणा हो गई. जनता पार्टी ने राजमाता विजयाराजे को रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में उतारा. ये वो वक्त था जब माधवराव सिंधिया के संजय गांधी के साथ रिश्ते प्रगाढ़ हो रहे थे. माधवराव ने अपनी मां विजयाराजे को इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव ना लड़ने को कहा, लेकिन राजमाता नहीं मानीं. यहीं से मां-बेटे के राजनीति में रास्ते अलग- अलग हो गये.
माधवराव सिंधिया ने 1984 में ग्वालियर सीट से भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भारी मतों से हराकर पूरी दुनिया का ध्यान खींचा. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में जगह दी. माधवराव रेल, संचार ,नागरिक उड्डयन और मानव संसाधन और पर्यटन मंत्रालयों के मंत्री रहे. रेल मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल आज भी याद किया जाता है.
ज्योतिरादित्य की एंट्री
30 सितंबर 2001 को कानपुर के पास हुए एक विमान हादसे में ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की मौत हो गई. इसके बाद 2002 में हुए उप चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी साढ़े चार लाख मतों के अंतर से जीत हासिल की. 2004 में 14वीं लोकसभा में वे फिर से गुना से संसद चुने गये. सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए सांसद ज्योतिरादित्य 6 अप्रैल, 2008 को पहली बार यूपीए की मनमोहन सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री बने. यूपीए-2 यानी 2009 में सिंधिया को राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया गया. सिंधिया सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बेहद करीबियों में गिने जाते रहे.
ज्योतिरादित्य का कांग्रेस से मोहभंग
ज्योतिरादित्य 2002 के बाद से गुना लोकसभा से लगातार जीतते रहे. 2018 के मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. ज्योतिरादित्य का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चा में आया. हालांकि, पार्टी ने कमलनाथ के अनुभव को सिंधिया के युवा जोश पर ज्यादा तरजीह दी. ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश के सीएम नहीं बन पाए. इसके आलावा 2019 में कृष्ण पाल सिंह यादव से वे गुना लोकसभा सीट से चुनाव भी हार गये.
आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गिरा दी कांग्रेस सरकार
राजनीतिक जीवन के 18 साल कांग्रेस के साथ बिताने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 10 मार्च 2020 को कांग्रेस छोड़ दी. कांग्रेस से बगावत कर 11 मार्च को सिंधिया अपने 20 से ज्यादा समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. इससे कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आए गई. 20 मार्च 2020 को कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
दादा का सपना करना है पूरा- यशोधरा राजे
बुधवार 7 जुलाई, 2021 को हुए कैबिनेट विस्तार में ज्योतिरादित्य सिंधिया को नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. दिलचस्प यह है कि इसी मंत्रालय की जिम्मेदारी कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया के पास भी थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे (Yashodhara Raje Scindia) जो शिवारज सरकार में खेल एवं युवा मामलों की मंत्री हैं उन्होंने अपने भतीजे को दादा (माधवराव सिंधिया) का सपना पूरा करने को कहा है.