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सांसे रोकने वाला वो विधानसभा चुनाव रिजल्ट याद है ना, 2018 में अजब, 2019 में गजब और अब ट्वेंटी-ट्वेंटी

साल 2019 मध्यप्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम अपने चरम पर रहा, बीजेपी और कांग्रेस दोनों में सरकार बनाने और बचाने को लेकर खूब संघर्ष होता रहा. कभी कमलनाथ सरकार अपनों से घिरती रही तो कभी बीजेपी सरकार घिराने की कोशिश करती रही.

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2019 में मध्य प्रदेश की राजनीति

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Published : Dec 31, 2019, 12:00 AM IST

भोपाल- साल 2019 का पहला दिन कांग्रेस के लिए खुशियों से भरा था, वजह साफ थी कि 2018 के जाते-जाते मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनीं थी. सरकार तो बन गई. लेकिन कांग्रेस बहुमत के जादुई आंकड़े 116 से महज 2 सीटें कम यानि 114 पर थम गई. लेकिन अजब प्रदेश की ये गजब की राजनीति साल 2019 में खूब हिचकोले खाती रही. साल 2019 में शुरू से आखिरी तक सत्ता के लिए संघर्ष देखने को मिला. कांग्रेस जहां सरकार बचाने के लिए मशक्कत करती रही तो बीजेपी इस उम्मीद की तलाश में रही कि कैसे कमलनाथ सरकार को अस्थिर किया जाए.

2019 में मध्य प्रदेश की राजनीति
कमलनाथ के लिए मुसीबत बने निर्दलीय और सहयोगी दल
कमलनाथ सरकार के लिए विपक्ष से सरकार गिराने की धमकी मिलना स्वाभाविक बात थी. लेकिन कमलनाथ के लिए चिंता का विषय वो लोग ज्यादा थे। जिन्होंने सरकार बनाने में कांग्रेस को समर्थन दिया था। कभी निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा मंत्री नहीं बनाए जाने पर नाराजगी जताते रहे. तो कभी बसपा की विधायक रामबाई अपने तीखे तेवरों से कमलनाथ को धमकाती नजर आई.






जब अपनों ने कर दिया नाक में दम
गैर तो गैर अपनों ने भी किया कमलनाथ सरकार की नाक में दम कर दिया था. मप्र में कमलनाथ ने कांग्रेस की सरकार में वापसी तो करा दी, लेकिन संगठन की एकजुटता बनाने में वो नाकाम रहे। खासकर सिंधिया गुट के विधायकों ने तो मुख्यमंत्री कमलनाथ की नाक में दम कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने तो कभी प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की मांग लगातार उठती रही ।

शह और मात के बीच कमलनाथ का मास्टर स्ट्रोक

जैसे-जैसे साल 2019 बीतता गया, वैसे-वैसे कमलनाथ मजबूत होते गए दरअसल मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बसपा के विधायक से मत विभाजन की मांग कराई और तय रणनीति के तहत भाजपा के दो विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कौल ने विधानसभा में सरकार के पक्ष में समर्थन किया. ये कमलनाथ का ऐसा मास्टर स्ट्रोक रहा कि विपक्ष की धमकियां तो कमजोर पड़ ही गई. दूसरी तरफ सहयोगी और निर्दलीय भी चुप्पी साध गए.जो यह समझते थे कि यह सरकार हमारे दम पर चल रही है.

अपने-अपने खतरे, अपने-अपने राग
साल 2019 की राजनीति को लेकर जहां बीजेपी प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुटों में जो अंतर संघर्ष है. वो हर पखवाड़े किसी ना किसी बहाने सामने आ जाता है. इस सरकार को जनता से कुछ लेना देना नहीं है. वहीं कांग्रेस प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा मानते हैं कि बीजेपी का पूरा खेल खत्म हो गया है और कांग्रेस अपने काम में सफल हो रही है.

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