भोपाल- साल 2019 का पहला दिन कांग्रेस के लिए खुशियों से भरा था, वजह साफ थी कि 2018 के जाते-जाते मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनीं थी. सरकार तो बन गई. लेकिन कांग्रेस बहुमत के जादुई आंकड़े 116 से महज 2 सीटें कम यानि 114 पर थम गई. लेकिन अजब प्रदेश की ये गजब की राजनीति साल 2019 में खूब हिचकोले खाती रही. साल 2019 में शुरू से आखिरी तक सत्ता के लिए संघर्ष देखने को मिला. कांग्रेस जहां सरकार बचाने के लिए मशक्कत करती रही तो बीजेपी इस उम्मीद की तलाश में रही कि कैसे कमलनाथ सरकार को अस्थिर किया जाए.
जब अपनों ने कर दिया नाक में दम
गैर तो गैर अपनों ने भी किया कमलनाथ सरकार की नाक में दम कर दिया था. मप्र में कमलनाथ ने कांग्रेस की सरकार में वापसी तो करा दी, लेकिन संगठन की एकजुटता बनाने में वो नाकाम रहे। खासकर सिंधिया गुट के विधायकों ने तो मुख्यमंत्री कमलनाथ की नाक में दम कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने तो कभी प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की मांग लगातार उठती रही ।
शह और मात के बीच कमलनाथ का मास्टर स्ट्रोक
जैसे-जैसे साल 2019 बीतता गया, वैसे-वैसे कमलनाथ मजबूत होते गए दरअसल मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बसपा के विधायक से मत विभाजन की मांग कराई और तय रणनीति के तहत भाजपा के दो विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कौल ने विधानसभा में सरकार के पक्ष में समर्थन किया. ये कमलनाथ का ऐसा मास्टर स्ट्रोक रहा कि विपक्ष की धमकियां तो कमजोर पड़ ही गई. दूसरी तरफ सहयोगी और निर्दलीय भी चुप्पी साध गए.जो यह समझते थे कि यह सरकार हमारे दम पर चल रही है.
अपने-अपने खतरे, अपने-अपने राग
साल 2019 की राजनीति को लेकर जहां बीजेपी प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुटों में जो अंतर संघर्ष है. वो हर पखवाड़े किसी ना किसी बहाने सामने आ जाता है. इस सरकार को जनता से कुछ लेना देना नहीं है. वहीं कांग्रेस प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा मानते हैं कि बीजेपी का पूरा खेल खत्म हो गया है और कांग्रेस अपने काम में सफल हो रही है.