जबलपुर। मोदी सरकार उज्ज्वला योजना के नाम पर वाहवाही तो लूट रही है, लेकिन सरकारी आंकड़ों में यह योजना घाटे का सौदा साबित हुई है. जबलपुर में भी लगभग 1 लाख 50 हजार लोगों को उज्ज्वला योजना के कनेक्शन दिए गए हैं, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार महज 2% लोग ही उज्ज्वला योजना के जरिए मिले सिलेंडरों की रीफिलिंग करवा रहे हैं.
उज्ज्वला योजना से हो रहा गैस कंपनियों को भारी नुकसान, मात्र 2 फीसदी लोगों ने कराई गैस रीफिलिंग
सरकारी आंकड़ों में उज्ज्वला योजना घाटे का सौदा साबित हुई है. जबलपुर में भी लगभग 1 लाख 50 हजार लोगों को उज्ज्वला योजना के कनेक्शन दिए गए हैं, लेकिन महज 2% लोग ही उज्ज्वला योजना के जरिए मिले सिलेंडरों की रीफिलिंग करवा रहे हैं.
योजना के तहत गरीब और अति गरीब परिवारों को गैस सिलेंडर और रेगुलेटर मुफ्त दिया जा रहा था. सरकार का कहना था कि जिन परिवारों को यह सिलेंडर दिया जा रहा है उनको गैस की सब्सिडी नहीं दी जाएगी. सब्सिडी का पैसा गैस कंपनियों को दिया जाएगा, जिससे और गैस सिलेंडर का दाम निकालेंगे. इस तरीके से गैस कंपनियां घाटे में भी नहीं रहेंगी. लेकिन सरकार की ये तरकीब उल्टी साबित होती नजर आ रही है, क्योंकि महज 2 प्रतिशत परिवार ही दोबारा सिलेंडर रीफिलिंग के लिए जा रहे हैं.
जबलपुर रसोई गैस एजेंसी संघ की अध्यक्ष तरविंदर कौर गुजराल का कहना है कि उज्ज्वला योजना का पैसा गैस कंपनियों ने दिया है. उज्ज्वला योजना के तहत हर गांव में एक जागरूकता शिविर लगाया जा रहा है, जिसमें लगभग 11,000 का खर्च होता है. यह काम एक एनजीओ के जरिए करवाया जाता है. इस पैसे का खर्च भी गैस कंपनियों को उठाना पड़ रहा है. रायपुर में लगभग 70 लाख का एक कार्यक्रम हुआ था, इसका पूरा खर्च भारत गैस ने उठाया था. इसके अलावा भी उज्ज्वला गैस के जितने भी कार्यक्रम भारतीय जनता पार्टी ने करवाए हैं, उनका खर्च भी गैस कंपनियों को उठाना पड़ा.