ग्वालियर। बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई के भांजे अनूप मिश्रा का टिकट काट दिया है. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी अब अटल और आडवाणी से जुड़े लोगों को साइड लाइन करने में जुटी हुई है, अनुप मिश्रा भी उन्हीं में से एक हैं. कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि बीजेपी एक पार्टी नहीं बल्कि प्राईवेट लिमिटेड बन चुकी है, जिसके सीएमडी नरेंद्र मोदी हैं तो एमडी अमित शाह हैं.
क्या बीजेपी कर रही है वरिष्ठों को साइड लाइन? वहीं अनूप मिश्रा का टिकट काटे जाने पर बीजेपी का कहना है कि कल तक वो चुनाव जीतते थे अब वह चुनाव जिताएंगे.
सियासी गलियारों में चर्चा है कि अनूप मिश्रा का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग गया है. एक जमाने में प्रदेश के कद्दावर नेताओं में शुमार अनूप मिश्रा ने ग्वालियर से अपनी दावेदारी भले ही पेश की हो लेकिन उन्हें टिकट मिलने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो उनकी यह स्थिति बार-बार सीट बदलने से हुई है.
सन् 1990 में अनुप मिश्रा ने पहली बार भितरबार यानी गिर विधानसभा से चुनाव जीता था. लेकिन 1993 में उन्हें इस सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा. 1998 में उन्होंने अपनी सीट बदल ली और वह लश्कर ग्वालियर यानी ग्वालियर दक्षिण सीट से मैदान में उतरे और चुनाव में फतेह हासिल की. लेकिन, 2003 में उन्होंने दक्षिण विधानसभा यानी ग्वालियर पूर्व का रुख किया. इस सीट से उन्होंने 2003 और 2008 के चुनावों में जीत दर्ज की.
2013 में वो फिर भितरवार का रुख कर गए. लेकिन, इस बार जनता ने उन्हें नकार दिया. विधानसभा चुनाव में मिली हार के बावजूद पार्टी ने साल 2014 में उन्हें मुरैना से लोकसभा प्रत्याशी बनाया. एक बार फिर अनुप मिश्रा की किस्मत ने उनका साथ दिया और वह एक लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए.
उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉक्टर गोविंद सिंह को हराया. लेकिन, यहां उनका मन नहीं लगा और वह फिर से भितरवार से चुनावी मैदान में उतर गये. लेकिन यहां उनका जादू नहीं चल सका. पार्टी ने भी लोकसभा में उनकी जगह मुरैना से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस चुनाव के साथ अनूप मिश्रा का चुनावी सफर खत्म हो जाएगा?