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कोर्ट फीस से जुड़े मामले में सुनवाई, झारखंड हाई कोर्ट ने सरकार से दो सप्ताह में मांगा जवाब

कोर्ट फीस में बढ़ोतरी मामले में दायर जनहित याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट में सरकार ने जवाब देने के लिए समय मांगा. मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी. court fee case in Jharkhand High Court

Hearing in increasing of court fee case in Jharkhand High Court
Hearing in increasing of court fee case in Jharkhand High Court

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Published : Aug 23, 2022, 4:05 PM IST

रांचीः झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश एसएन प्रसाद की अदालत में कोर्ट फीस से जुड़े मामले पर सुनवाई हुई(court fee case in Jharkhand High Court ). झारखंड स्टेट बार काउंसिल के राज्य सरकार के द्वारा कोर्ट फीस को बढ़ाए जाने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सरकार की ओर से जवाब पेश नहीं किया जा सका. महाधिवक्ता ने अदालत से जवाब के लिए समय की मांग की. अदालत ने उन्हें समय देते हुए 2 सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है मामले की अगली सुनवाई 2 सप्ताह बाद होगी.

मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने अदालत से आग्रह किया कि जब तक सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आता है, तब तक कोर्ट फीस की वृद्धि पर अंतरिम रोक लगा देनी चाहिए. अदालत ने उनके आग्रह को अस्वीकार करते हुए कहा कि पहले सरकार का जवाब देख लिया जाना चाहिए. उन्होंने आश्वस्त किया कि मामले की सुनवाई पूर्ण होने के उपरांत जो आदेश आएगा उस आदेश से कोर्ट फीस प्रभावित होगी. अधिवक्ता ने कहा कि कई बिंदुओ पर कोर्ट फीस में 10 गुना वृद्धि हुई है.

झारखंड स्टेट बार काउंसिल की ओर से दायर याचिका में कोर्ट फीस वृद्धि को हटाने की गुहार लगाई गई है. हाई कोर्ट के खंडपीठ ने पिछली सुनवाई में सरकार के अपर महाधिवक्ता को निर्देश दिया था कि वह कोर्ट फीस की वृद्धि पर सरकार से मंतव्य लेकर कोर्ट को अवगत कराएं. झारखंड स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्ण(Jharkhand State Bar Council President Rajendra Krishna) ने मामले में पैरवी करते हुए कहा था कि कोर्ट फीस में बेतहाशा वृद्धि से समाज के गरीब तबके के लोग कोर्ट नहीं आ पायेंगे और वकीलों को भी अतिरिक्त वित्तीय भार का वहन करना पड़ेगा. काउंसिल ने यह भी कहा है कि कोर्ट फीस की वृद्धि से लोगों को सहज व सुलभ न्याय दिलाना संभव नहीं है. राज्य सरकार का कोर्ट फीस एक्ट गलत है. यह संविधान के खिलाफ है. साथ ही यह सेंट्रल कोर्ट फीस एक्ट के भी विरुद्ध है.

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