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साल 2019 में देवभूमि पर लगे कई दाग, कहीं आस्था के नाम पर अत्याचार तो कहीं जातिवाद की दीवार

2019 अलविदा कहने को है. लेकिन इससे पहले हम आपको सालभर में हुई अप्रिय घटनाओं के बारे में बताएंगे जिसने देवभूमि पर कई दाग लगा दिए.

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Published : Dec 27, 2019, 11:08 AM IST

social issues in 2019
हिमाचल में हुई अप्रिय घटनाएं

शिमला:हिमाचल प्रदेश देश के खूबसूरत राज्यों में से एक माना जाता है, लेकिन बीते कुछ समय से प्रदेशभर में हो रही अप्रिय घटनाओं ने देवभूमि पर कई दाग लगा दिए हैं. प्रकृति की गोद में बसे इस पहाड़ी राज्य में पहले लोग खुद को सुरक्षित समझते थे, लेकिन आए दिन सूबे में अपराध की कोई न कोई बड़ी घटना सामने आ ही जाती है.

दलित उत्पीड़न से हुई 2019 की शुरुआत
ऊंची साक्षरता दर और प्रति व्यक्ति आय में देश के टॉप राज्यों में शुमार हिमाचल प्रदेश में 2019 की शुरुआत ही दलित उत्पीड़न के साथ हुई. जहां देव परंपरा के नाम पर लोगों ने अंधविश्वास में आकर दलित युवक की पिटाई कर दी थी.

देव परंपरा के नाम पर लोगों ने अंधविश्वास में आकर दलित युवक की पिटाई कर दी

मामला कुल्लू के बंजार इलाके का था, जहां देवता से जुड़े धार्मिक आयोजन में एक परंपरा के अनुसार नरगिस के फूलों का गुच्छा फैंका जाता है. देव आयोजन में ये फूल एक दलित युवक की गोद में जा गिरा. बस, फिर क्या था, भीड़ ने न केवल उस युवक को पीटा, बल्कि उसके पांच साथियों की भी पिटाई कर दी. जब मामला मीडिया में उछला तो जिला प्रशासन हरकत में आया और लोगों ने दलित युवक के साथ सुलाह की.

बुजुर्ग महिला के साथ हैवानियत
वहीं, इस साल देवभूमि हिमाचल को शर्मसार करने वाली एक और खबर सामने आई. जहां एक वृद्ध महिला के साथ सरेआम हैवानियत की सभी हदों को पार कर दिया गया. महिला को डायन बताकर उसके मुंह पर कालिख पोती गई और गले में जूतों की माला पहनाकर उसे सरेआम घुमाया गया.

गांव में मौजूद समाज और धर्म के कुछ ठेकेदारों ने 81 वर्षीय राजदेई पर लोगों पर जादूटोना करने का आरोप लगा दिया. कुछ लोग देवता और भगवान के नाम पर बुजुर्ग महिला के सिर के बाल काटे, फिर उसका मुहं काला किया और उसके बाद उसे जूतों की माला पहनाकर देवरथ के आगे पूरे गांव में घसीटा.

बुजुर्ग महिला के साथ हैवानियत

बुजुर्ग महिला कई बार उसे छोड़ देने की गुहार लगाती रही, लेकिन धर्म के ठेकेदारों ने उसकी एक न सुनी. खुद गांव वालों ने ही इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो भी बनाया जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ.
प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है, लेकिन 2019 में ऐसे एक नहीं बल्कि दो मामलों ने प्रदेश के साथ-साथ देश भर को हिला कर रख दिया. 85% साक्षरता दर के साथ हिमाचल देश में चौथे स्थान पर है.

वीडियो रिपोर्ट.
इस गांव में भी हर व्यक्ति पढ़ा लिखा है. डॉक्टर-इंजीनियर इस गांव में हैं. इसके बावजूद इस तरह की घटना को अंजाम देना बड़ा सवाल है क्योंकि इस तरह की घटनाएं अक्सर कम पढ़े लिखे व पिछड़े इलाकों व राज्यों में ही सुनने में आती है.

अंतिम संस्कार करने पहुंचे दलित परिवार को श्मशान घाट जाने से रोका
मनाली विधानसभा क्षेत्र के तहत बीते शुक्रवार को एक अनुसूचित जाति की बुजुर्ग महिला के शव को सार्वजनिक श्मशान घाट में दाह संस्कार रोकने का मामला सामने आया था. मामले से जुड़ा एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. इस मामले में सवर्ण जाति के कुछ लोगों ने अनुसूचित जाति की बुजुर्ग महिला के शव का दाह संस्कार सार्वजनिक श्मशान घाट में नहीं करने दिया. जिसके चलते मृतका के परिजनों को खुले नाले में ही शव का दाह संस्कार करना पड़ा.

अंतिम संस्कार करने पहुंचे दलित परिवार को श्मशान घाट जाने से रोका

मामले से जुड़ी वायरल वीडियो में जानकारी देते हुए मृतक महिला का पोता बताता है कि वो ग्रामीणों के साथ शव का अंतिम संस्कार करने शमशान घाट आया था. जहां पर सवर्ण जाति के लोगों ने उसे वहां पर अंतिम संस्कार करने से रोका. व्यक्ति का कहना है कि जमींदार लोग ये दलील दे रहे थे कि उसकी दादी का अंतिम संस्कार अगर श्मशान घाट में किया गया तो देवता नाराज हो जाएंगे और अगर देवता नाराज होता है तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना होगा. जिसके चलते उन्हें अपनी दादी के शव का संस्कार खुले नाले में करना पड़ा.

शिमला के ढली में दबंगों ने दलित परिवार से की मारपीट
वहीं, राजधानी शिमला के ढली में एक दलित परिवार के साथ मारपीट का मामला भी सामने आया था. जहां एक परिवार के दो सदस्यों की बेहरहमी से पिटाई कर दी गई.

शिमला के ढली में दबंगों ने दलित परिवार से की मारपीट

शिक्षा के मंदिर में बच्चों के साथ जातिगत भेदभाव
आधुनिकता के इस दौर में भी लोग छुआछुत की दिवारों को नहीं मिटा पा रहा है. सरकारी स्कूलों में हर वर्ग हर जाति से संबंधित बच्चा समानता के आधार पर शिक्षा ग्रहण करता है, लेकिन दुख की बात है कि शिक्षा के मंदिर में आज भी बच्चों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है. 2019 में भी सरकारी स्कूल आए दिन जातिगत भेदभावों के कारण चर्चा में रहा है.

मंडी जिले के बालीचौकी क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल नौणा में मिड-डे मील परोसते समय जाति के आधार पर भेदभाव करने का मामला सामने आया था. अनुसूचित जाति के बच्चों को अलग बिठाकर मिड-डे मील परोसा जा रहा था. इसकी शिकायत एक छात्र के पिता ने वीडियो सहित पुलिस को सौंपी थी. आरोप था कि स्वर्ण जाति के अभिभावकों ने स्कूल के अध्यापकों पर दबाव बनाया कि उनके बच्चों को अनुसूचित जाति के बच्चों के साथ रोल नंबर वाइज न बैठाया जाए.

शिक्षा के मंदिर में बच्चों के साथ जातिगत भेदभाव

इन सब घटनाओं के पिछे कोई शिक्षकों को दोषी मानता है तो कोई व्यवस्था को , कुल मिलाकर देखा जाए तो इसमें दोषी व्यवस्था या अकेले शिक्षक नहीं मुख्य दोषी है हमारे समाज के वे लोग जो अभी भी छुआछुत की गुलामी से घिरे हुए है. वहीं शिक्षा के घर में ऐसी घटनाएं सभ्य समाज के लिए घातक के साथ शर्मनाक है. विद्दा मंदिरों में हम बच्चों को समानता का पाठ पढ़ाते है, लोकिन इस तरह के वाक्य को रोक नहीं पा रहे है.

एसएस-एसटी अधिनियम के तहत बीते 10 सालों में दर्ज हुए सरकारी आंकड़ों और तथ्यों पर नजर डाले तो वर्ष 2009 में 61 मामले, वर्ष 2010 में 74, वर्ष 2011 में 87, वर्ष 2012 में 86, वर्ष 2013 में 85, वर्ष 2014 में 97, वर्ष 2015 में 80, वर्ष 2016 में 102, वर्ष 2017 में 92, वर्ष 2018 में 92, वर्ष 2019 में 144 मामले दर्ज किए गए है.

प्रदेशभर में अनुसूचित जाति के उत्पीड़न के मामलों की संख्या में हर वर्ष बढ़ोतरी हो रही है. आंकड़ों के मुताबिक 10 वर्षों में साल 2019 में दलित उत्पीड़न के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018 के मुताबिक 2019 में दलितों के खिलाफ अपराध के 52 मामलों में बढ़ोतरी हुई है.

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