मंडी: साल 1932 में पुरातन सुकेत रियासत के अंतिम महाराजा लक्ष्मण सेन द्वारा बनाया गया महामाया मंदिर जिला मंडी सहित प्रदेश के मुख्य मंदिरों में शामिल है. ये मंदिर सुंदरनगर शहर के देहरी में एक छोर पर पहाड़ी पर मौजूद है.
मान्याताओं के अनुसार विवाह के कई सालों तक लक्ष्मण सेन की कोई संतान नहीं हुई तो महाराजा लक्ष्मण सेन अपने वंश की समाप्ति को लेकर परेशान रहने लगे. एक दिन सपने में महामाया देवी ने राजा को दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारे पूर्वज शुरू से ही मेरे उपासक रहे हैं. सुकेत राज्य की प्राचीन राजधानी पांगणा में मेरी विधिवत पूजा होती रही है. अब इस पूजन में नियम का पालन नहीं हो रहा है. महामाया मां ने राजा लक्ष्मण सेन को उनकी नियम के अनुसार पूजा की व्यवस्था करने पर जल्द ही इसके परिणामस्वरूप पुत्र रत्न की प्राप्ति होने का आशीर्वाद दिया.
सपने में महामाया मां का आशीर्वाद पाने के बाद बनाया माता का मंदिर
सपने में महामाया मां का आशीर्वाद पाने के बाद महाराजा लक्ष्मण सेन ने अपने महल के पास देहरी में महामाया देवी का आधुनिक स्वरूप में भव्य मन्दिर बनवाया. इसमें आधुनिक नवीनता के साथ-साथ मुगल कालीन शैली का प्रभाव भी झलकता है. महामाया मां के इस मन्दिर में 5 मन्दिर बनाए गए, जिसके बीच महामाया का स्वरूप महिषासुर मर्दिनी दुर्गा भगवती की भव्य संगमरमर मूर्ति, दाईं और शिव गौरा के साथ ही सरसों के तेल से जलने वाली महामाई की अखंड ज्योति का (कमरा) कक्ष है.
दूसरे भाग में महामाया का शयनकक्ष (सोने का कमरा) है, जिसमें देवी की शय्या (बिस्तर) है. यहां महामाया रात को (सोती) शयन करती हैं. महामाया मन्दिर के दायीं ओर शेषशायी विष्णु भगवान के चरण दबाते हुए मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है. भगवान विष्णु के मन्दिर के साथ बायीं ओर सिखों का धार्मिक ग्रंथ गुरूग्रंथ साहिब का कक्ष (कमरा) है. यहां सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रंथ का हर रोज रोशनी होती है. महामाया के मुख्य द्वार के पास केसरी नंदन हनुमान का मन्दिर है. मुख्य मन्दिर के पिछले भाग में भगवान दत्तात्रेय का मन्दिर है. इस तरह से महामाया का ये मन्दिर आराधना करने का देव संस्कृति का एक आदर्श पवित्र स्थल है.
मन्दिर के आंगन में चंपा और मौलसरी के पेड़
मन्दिर के आंगन में चंपा और मौलसरी के पेड़ हैं जो सदा हरे-भरे रहते हैं और इन पेड़ों के फूलों से चलने वाली सुगंध वातावरण को शुद्ध बनाए रखती है. किंवदन्तियों के अनुसार राजा ने जब महामाया मन्दिर निर्माण का संकल्प लिया, इसके कुछ ही समय बाद राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. प्रथम पुत्र के रूप में महाराज ललित सेन पैदा हुए. इस तरह महाराज लक्ष्मण सेन के 5 पुत्र और 2 पुत्रियों ने जन्म लिया. इससे महामाया की प्रधानता में राजा लक्ष्मण सेन ने सर्व धर्म समभाव की भावना को आलोकित करने वाले इस मन्दिर का निर्माण करवाया.