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Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि पर सिर्फ 1 दिन होंगे बिजली महादेव के दर्शन, जानें क्यों गिरती है यहां बिजली

महाशिवरात्रि का त्योहार 18 फरवरी को देश भर में धूमधाम से मनाया जाएगा. हिमाचल के कल्लू में बिजली महादेव के कपाट सिर्फ एक दिन महाशिवरात्रि पर खोले जाएंगे. बिजली महादेव पर क्यों गिरती है बिजली और भगवान शिव क्यों हो गए थे चिंतित. पढ़ें

Mahashivratri 2023
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Published : Feb 10, 2023, 7:33 AM IST

कुल्लू:देश भर में महाशिवरात्रि को लेकर जहां शिवालयों में तैयारियां चल रही हैं. वहीं ,हिमाचल प्रदेश के विभिन्न शिवालयों में भी महाशिवरात्रि पर्व पर भव्य आयोजन होंगे. जिला कुल्लू की खराहल घाटी के शीर्ष पर स्थित भगवान बिजली महादेव के दर्शन फरवरी माह में मात्र 1 दिन के लिए होंगे. महाशिवरात्रि का त्योहार इस बार 18 फरवरी को धूमधाम से मनाया जाएगा.

महाशिवरात्रि पर खुलेगा महादेव का कपाट: महाशिवरात्रि को 1 दिन के लिए भगवान बिजली महादेव का कपाट खुलेगा और उसके बाद फिर से कपाट बंद हो जाएगा. भगवान बिजली महादेव के कपाट वैशाख माह को भक्तों के लिए खुल जाएंगे. भगवान बिजली महादेव इन दिनों स्वर्गवास पर हैं, जिसके चलते पौष माह से लेकर वैशाख माह तक मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है. ऐसे में महाशिवरात्रि पर्व के लिए ही बिजली महादेव मंदिर के कपाट खुलेंगे. इस दौरान बड़ी संख्या में शिव भक्त बिजली महादेव के दर्शन करेंगे. बिजली महादेव के कारदार विजेंद्र जंबाल ने बताया क महाशिवरात्रि पर 1 दिन मंदिर के कपाट खोले जाएंगे.

पिंडी पर गिरती बिजली:कुल्लू से करीब 20 किलोमीटर दूर समुंद्र तल से 7874 फीट की ऊंचाई पर मथान स्थित बिजली महादेव मंदिर के अंदर पिंडी पर हर 12 साल के अंतराल पर बिजली गिरती है, जिसके बाद पिंडी पर लगाया मक्खन का लेप खंडित हो जाता है. हैरानी की बात यह है कि हर 12 साल में गिरने वाली बिजली का कोई समय निर्धारित नहीं होता. यह कभी भी किसी भी समय पिंडी पर गिरती है, जिसके बाद स्वयं भोलेनाथ मंदिर के पुजारी को स्वप्न देकर पिंडी के ऊपर लगे मक्खन के लेप के खंडित होने की बात बताते हैं.

शिवलिंग हो जाता ठोस रूप में परिवर्तित:पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है. इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था. जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर 12 साल में भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है. बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है. यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं. कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाते हैं.

भगवान शिव हो गए थे चिंतित:घाटी के लोग बताते हैं कि बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था. दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल स्पीति से मथाण गांव आ गया. दैत्य रूपी अजगर कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था. इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे. भगवान शिव कुलांत के इस विचार से से चिंतित हो गए. बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर को अपने विश्वास में लिया. शिव ने उसके कान में कहा कि तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है. इतना सुनते ही जैसे ही कुलांत पीछे मुड़ा तभी शिव ने कुलांत के सिर पर त्रिशूल वार कर दिया.

पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया:त्रिशूल के प्रहार से कुलांत मारा गया. कुलांत के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया. उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया. कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है.

कुलांत से कुल्लू तक की कहानी:कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है. कुलांत दैत्य के मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे बारह साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें. हर बारहवें साल में यहां आकाशीय बिजली गिरती है. इस बिजली से शिवलिंग खंडित हो जाता है. शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके शिवजी का पुजारी मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है. कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है.

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