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किन्नौर में साजो पर्व से हुआ नए साल का आगाज, देवी-देवताओं ने स्वर्ग लोक की ओर किया प्रस्थान

किन्नौर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में माघ माह में मनाया जाने वाला साजो पर्व बड़ी ही आस्था के साथ मनाया गया. मान्यता के अनुसार साजो पर्व के बाद किन्नौर में नववर्ष शुरू होता है. माघ के पहले दिन किन्नौर के देवी-देवता स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं और करीब 15 दिन बाद पृथ्वी लोक का आगमन होता है. (Sajo fair in Kinnaur)

Sajo fair celebrated in Kinnaur
किन्नौर में साजो पर्व

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Published : Jan 14, 2023, 5:12 PM IST

किन्नौर में साजो पर्व से हुआ नए साल का आगाज

किन्नौर:किन्नौर जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में बर्फबारी के बीच साजो मेला मनाया गया. कल्पा गांव के मंदिर में देवी देवताओं को ढोल-नगाड़ों के साथ लाया गया. जहां पर गांव के सभी ग्रामीण एकत्रित होकर किन्नौरी पारंपरिक वेशभूषा में देवी-देवता के चारों ओर पौराणिक गीत गाते हुए वाद्यंयत्रों के साथ नाटी पर झूमे. बता दें कि साजो पर्व को किन्नौरी नववर्ष के नाम से भी जाना जाता है. जिले में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है. (Sajo fair in Kinnaur)

साजो हर वर्षो 14 जनवरी को मनाया जाता है. जिला के कल्पा स्थित ब्रम्हा विष्णु नारेनस मंदिर में आज साज़ों मेले के अवसर पर ग्रामीणों ने पारम्परिक वेशभूषा पहनकर साज़ों मेले में भाग लिया और किन्नौरी नृत्य कर स्थानीय देता ब्रम्हा विष्णु नारेनस के बड़े खेत के मध्य जाकर आशीर्वाद भी प्राप्त किया है.(Sajo fair celebrated in Kinnaur) मान्यता के अनुसार साजो पर्व के बाद किन्नौर में नववर्ष शुरू होता है. इस दिन घर में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर पूजा-पाठ किया जाता है.

माघ के पहले दिन किन्नौर के देवी-देवता स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं और करीब 15 दिन बाद पृथ्वी लोक का आगमन होता है. साथ ही देवी-देवता वर्षभर का राशिफल भी बताते हैं और भविष्यवाणी करते हैं. वहीं, जब तक देवी देवता वापस धरती लोक लौट नहीं आते तब तक गांव में शोर शराबा करने पर मनाही होती है. इस दिन घर में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर पूजा-पाठ किया जाता है. यहां के नियमानुसार जब तक देवी देवता धरती लोक वापस नहीं आ जाते तब तक गांव में हर प्रकार के कार्यक्रमों पर प्रतिबंध रहता है.

मान्यता अनुसार (history of sajo festival) सतयुग में देवी चंडिका का कल्पा में राजपाठ चलता था और इस सेरिग जगह पर राक्षस रहते थे. दोनों के मध्य अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए लड़ाई होती रहती थी और दोनों में कोई पराजित नहीं होता था. अंत में देवी की मदद के लिए तेक (शिव का स्वरूप) सेरिग में प्रकट हुए जो आज भी धरांक (पत्थर की शिला) सेरिग खेत में मौजूद हैं. दोनों ने मिलकर राक्षसों का सामना किया और आज भी इसी परंपरा को निभाते हुए देवी तेक यानी बड़े गुप्त देवता से मिलने सेरिग में आते हैं.

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