पालमपुर: कांगड़ा जिला के पालमपुर में थुरल से 2 किलोमीटर आगे इनके प्यार की निशानी ग्वाल टीला का नाम से आज भी अमर है.
कहा जाता है कि ग्वाल टीले के पास से एक बारात डोली को लेकर गुजर रही थी. बाराती कुछ देर आराम करने के लिए टीले के नीचे पीपल के पेड़ की छाया में बैठ गए. उसी समय टीले के ऊपर एक ग्वाला गाएं-भैंसें चरा रहा था.
खूबसूरत लाल दुपट्टे का घूंघट ओढ़े बैठी दुल्हन को देख कर उस ग्वाले के मुंह से एकदम निकल गया. गवाले ने कहा कि 'आर जरारी पार जरारी, लाल घुंडे वाली मेरी लाड़ी' जिसका मतलब था कि इधर झाड़ी उधर भी झाड़ी, बीच बैठी लाल घूंघट वाली मेरी लाड़ी. पत्नी को स्थानीय भाषा में लाड़ी कहा जाता है.
बात इस तरह कही गई कि नवविवाहिता ने सुना, उस की सखियों ने भी सुना, और बात दूल्हे और बाकी बारातियों तक भी जा पहुंची. इस बात को लेकर ग्वाले और बारातियों में नोक-झोंक शुरू हो गई. इसी बीच लोगों ने कहा कि इस टीले से छलांग लगाकर दिखाओ तभी मालूम होगा कि तुम्हारा प्रेम कितना सच्चा है.
ग्वाले ने ऊंचे टीले से गहरी खड्ड में छलांग लगा दी. सभी बाराती ये घटना देख कर घबरा गए थे और वहां से भागने लगे, लेकिन दुल्हन ने वहां से जाने से इंकार कर दिया. दुल्हन कहने लगी कि ऐसे सच्चे प्रेमी को छोड़ कर वह नहीं जा सकती, वह तो उस ग्वाले के साथ ही सती हो जाएगी. लोग उसे समझाने लगे, परिवार की इज्जत का वास्ता भी दिया गया, लेकिन दुल्हन ने भी उसी टीले से कूद कर जान दे दी. इसके बाद इसे ग्वाल टीले के नाम से जाना जाने लगा.
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