शिमला: सांस्कृतिक धरोहरें देश और उससे जुड़े हुए लोगों की पहचान होती हैं. यह धरोहरें लोगों को बीते जमाने की याद दिलाने के साथ-साथ उस देश की पहचान भी बन जाती है. ताजमहल आज हमारे देश की पहचान होने के साथ-साथ हमे शाहजहां के शासनकाल की याद भी दिलाती हैं.
कुछ ऐसी ही धरोहरें हिमाचल के बिलासपुर में थीं. 8वीं से 15वीं सदी तक दक्षिण शिखर शैली में बने मंदिर, बिलासपुर राजा का महल बिलासपुर की पहचान थी, लेकिन आज इन मंदिरों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. इसके पीछे का कारण इतिहास के पन्नों में दर्ज है.
1961 में भाखड़ा बांध में पानी छोड़ने के बाद बिलासपुर में गोबिंद सागर झील बनी. इसी झील में पुराने बिलासपुर ने जलसमाधि ले ली. इसके साथ 8वीं से 15वीं सदी के बीच बने ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर भी जलमग्न हो गए. 9 अगस्त 1961 में भाखड़ा बांध सतलुज नदी के पानी के साथ-साथ बिलासपुरियों के आंसुओं से भी भरा था, क्योंकि वहां के बाशिंदों के खेत-खलिहान,घर सब आंखों के सामने पानी में तिनकों की तरह तैर रहे थे.
अब इन मंदिरों को पानी से अपलिफ्ट कर रिलोकेट करने को लेकर प्रदेश भाषा,कला एवं संस्कृति विभाग ने एक्सपर्ट टीम को बुलावा भेजा है. झील के पानी में डूबे इन मंदिरों को किस तरह से अपलिफ्ट कर दूसरी जगह पर स्थापित किया जा सकता है इसे जांचने के लिए 28 जून को इंडियन नेशनल रूरल हेरिटेज ट्रस्ट की टीम जिला बिलासपुर पहुंचकर इन मंदिरों का निरीक्षण करेगी. टीम मंदिरों का निरीक्षण कर इस बात को तय करेगी कि किस तकनीक से इन प्राचीन मंदिरों को पानी से निकाल कर किसी दूसरी जगह पर रिलोकेट किया जा सकता है, लेकिन अब शायद बहुत देर हो चुकी है, क्योंकि कई मंदिर, महल क्षतिग्रस्त हो चुके हैं.
जब बिलासपुर पर संकट मंडरा रहा था ठीक उसी समय 1960 में इजिप्ट में स्थित ऐतिहासिक धरोहर अबु सिंबल नाम के मंदिर पर भी डूबने का खतरा पैदा हो गया था. 1960 में जब अबु सिंबल पर संकट के बादल मंडराने लगे थे, तब कई देशों ने एकजुट होकर इसे बचाने का प्रयास किया था. इस एक मंदिर ने सारे विश्व को एकजुट कर दिया था.
अबू सिंबल मंदिर को बचाने के लिए क्यों पूरा विश्व एकजुट हुआ?
आखिर क्यों इजिप्ट (मिस्र) के अबू सिंबल मंदिर को बचाने के लिए पूरा विश्व एकजुट हो गया. ये जानने से पहले हमें मिस्र की संस्कृति के बारे में जान लेना चाहिए. इजिप्ट में बने पिरामिड, ममी पूरी दुनिया में मशहूर है. 5 हजार साल पुरानी मिस्र की सभ्यता के इतिहास में ढेरों राज छिपे हैं. ये राज वैज्ञानिकों के लिए आज भी शोध का विषय हैं. वैज्ञानिक इन अनसुलझे पहलुओं पर शोध भी कर रहे हैं. इन्हीं में से एक है अबु और सिंबल मंदिर. ये इजिप्ट के दो प्राचीन मंदिर हैं. इन्हे 1300 ईसवी में फैरो रामेसेस द्वितीय ने नील नदी के किनारे बनाया था.
चट्टानों को काटकर इस मंदिर और मूर्तियों को बारीकी से बनाया गया था. ये मंदिर मिस्र की वास्तुकला का अद्भुत नमूना है. इस मंदिर के अंदर रामेसेस द्वितीय और तीन देवताओं की मूर्तियां हैं. इसका सामने का हिस्सा बहुत ही भव्य और सुंदर है. इस भाग में बैठे हुए फैरो( मिस्र के शासक) की 4 मूर्तियां बनीं हुई हैं. इन मंदिरों की ऊंचाई लगभग 20 मीटर है.
दूसरा मंदिर रामेसेस ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया
दूसरा मंदिर रामेसेस ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया जहां उसने अपनी पत्नी की मूर्ति बनवाई हुई है. इस बड़े मंदिर की खासियत है कि यहां साल में केवल दो बार ही सूरज की रोशनी अंदर तक जाती है. एक 21 फरवरी और दूसरा 21 अक्टूबर. यह दोनों दिन सूरज की रोशनी मंदिर के अंदर तक जाती है और सीधे जाके रामेसेस की मूर्ती पर पड़ती है. रामेसेस ने इसे इतने खास ढंग से बनवाया है कि और किसी भी दिन रोशनी मूर्ति तक नहीं पहुंचती. माना जाता है कि यह दोनों दिन में से एक रामेसेस के जन्म का दिन है और दूसरा उसके राजा बनने का.
हजारों सालों तक रेत में दबा रहा मंदिर
ये अद्भुत मंदिर लगभग हजारों सालों तक रेत में दबा रहा. किसी को मालूम नहीं था रेगिस्तान की कई फीट मोटी परत के नीचे ऐसा अदभुत मंदिर बना है. 1813 में इसे स्विस एक्सप्लोरर(स्विस नागरिक) ने अबु सिंबल नाम के बच्चे की मदद से इस मंदिर को खोज निकाला. अबू सिंबल नाम का बच्चा ही पहली बार स्विस एक्सप्लोरर को मंदिर की जगह ले गया था. अबु-सिंबल और स्विस को पहले रेत की मोटी परत के नीचे बस इसका ऊपरी हिस्सा ही दिखाई दे रहा था. इसके बाद स्विस एक्सपोरर ने दूसरे लोगों को भी इसकी जानकारी दी. बात आग की तरह दूर-दूर तक फैल गई. इसके बाद से मंदिर को रेत हटाकर बाहर निकाला गया.
ऐसा पड़ा मंदिर का नाम अबु-सिंबल
मंदिर को खोजने वाले बच्चे अबु सिंबल के नाम पर ही मंदिर का नाम अबु सिंबल पड़ा. 1950 तक ये मंदिर और इसके भीतर और बाहर बनी प्रतिमाएं रेत के थपेड़े सहते हुए शान से खड़ी रहीं, लेकिन 1960 में जब नील नदी पर अस्वान बांध बनने की योजना तैयार हुई और मंदिर पर खतरे के बादल मंडराने लगे. यह बांध अबु सिंबल मंदिर से 280 किलोमीटर दूर था. भाखड़ा बांध की तरह ये अस्वान बांध भी विकास के साथ सांस्कृतिक विनाश लाया था. क्योंकि नदी का जलस्तर बढ़ने और बाढ़ का खतरा बढ़ने पर मंदिर को सबसे ज्यादा खतरा था.