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सोनीपत में हिंदू संस्कृति से राजा नन्दी की हुई 17वीं, नैना ततारपुर के ग्रामीणों ने किया यज्ञ और ब्रह्मभोज का आयोजन

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Published : Jul 17, 2022, 4:56 PM IST

सोनीपत के गांव नैना ततारपुर में 17 दिन पहले नन्दी की मौत हो गई थी जिसका अंतिम संस्कार हिंदू रिति-रिवाज के (Nandi ritual from Hindu culture in Sonipat) अनुसार किया गया था. नन्दी की 17 वीं भी गांव वालों ने सनातन परंपरा के अनुसार की है. ग्रामीणों ने परंपरा अनुसार यज्ञ और ब्रह्मभोज का आयोजन किया.

सोनीपत में हिंदू संस्कृति से राजा नन्दी की हुई 17 वीं, नैना ततारपुर के ग्रामीणों ने किया यज्ञ और ब्रह्मभोज का आयोजन
सोनीपत में हिंदू संस्कृति से राजा नन्दी की हुई 17 वीं, नैना ततारपुर के ग्रामीणों ने किया यज्ञ और ब्रह्मभोज का आयोजन

सोनीपतःनैना ततारपुर गांव के लोगों ने नई पहल शुरु करते हुए एक नन्दी की 17 वीं की है. लंबी बीमारी के बाद मरे नन्दी की आत्मा की शांति के लिए ग्रामीणों ने सनातन परंपरा के अनुसार यज्ञ करवाया (Nandi ritual from Hindu culture in Sonipat) और ब्रह्मभोज का आयोजन करवाया. गांव वालों ने यज्ञ में आहुति डाल कर नन्दी की आत्मा की शांति के लिए भगवान से प्रार्थना की और रस्म पगड़ी का भी आयोजन किया.

नैना ततारपुर के आसपास के 20 गांव के लोगों को भी रस्म पगड़ी और ब्रह्मभोज के लिए निमंत्रण दिया गया था. बड़ी संख्या में यज्ञ में पहुंचे लोगों ने नन्दी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की. नन्दी का जन्म गांव में ही हुआ था और लगभग 30 साल तक वो गांव में रहा. गांव में छोटे बच्चों से लेकर बड़े तक इसे गांव का राजा कहते थे. नंदी ग्रामीणों के परिवार के सदस्यों की तरह था जिससे गांव के सब लोग प्यार करते थे और उसकी पूजा की जाती थी.

सोनीपत में हिंदू संस्कृति से राजा नन्दी की हुई 17 वीं, नैना ततारपुर के ग्रामीणों ने किया यज्ञ और ब्रह्मभोज का आयोजन

ग्रामीणों ने कहा की नन्दी का हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है और उसे पूजा जाता है. धीरे-धीरे लोग इन परंपराओं से दूर हो रहे हैं इसलिए ऐसे आयोजन करवा कर लोगों को फिर से सनातन संस्कृति से जोड़ने का ये प्रयास है. हिंदू संस्कृति में गाय (cow in Hindu culture) और नन्दी को पूजा (worship of Nandi in Hinduism) जाता है और भगवान शिव के मंदिर के सामने नन्दी की मूर्ति होती है.

भारतीय संस्कृति में गायें (cow in indian culture) को माता कहा जाता है और उसकी भी पूजा की जाती है. वर्तमान में लोग इन पौराणिक मान्यताओं को भूलते जा रहे हैं इसलिए ग्रामीणों ने इस तरह का आयोजन करवा कर पूरानी मान्यताओं को पूनर्जीवत करने की प्रथा शुरु की है. ऐसी प्रथाओं से लोग कितने गोसेवा के लिए प्रेरित होंगे ये तो समय ही बताएगा लेकिन ऐसी कदम लोगों को उनके सनातन मूल्यों की याद तरोताजा तो करवा ही देते हैं.

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