कुरुश्रेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में महाकालेश्वर मंदिर है. ये ऐसा मंदिर जहां शिवलिंग के साथ नंदी विराजमान नहीं है. यह अपनी तरह का दुनिया में एक इकलौता मंदिर है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में लंकापति रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने यहां शिव की तपस्या करके अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी. द्वापर में जयद्रथ ने भी इस मंदिर में तपस्या की थी.
वो शिव मंदिर जहां खुद रावण ने की थी तपस्या, देखिए रिपोर्ट यहां अकाल मृत्यु के भय से मिलती है मुक्ति
मान्यता है पूजा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और इस मंदिर में लंकापति रावण काल पर विजय की प्राप्ति के लिए यहां शिव की तपस्या की थी. रावण को वरदान देने के लिए खुद शिव प्रकट हुए थे. इस वरदान का साक्षी ना हो, इसलिए भगवान शिव का नंदी को नहीं लाए थे तभी से यहां नंदी विराजमान नहीं है.
रावण को मिला था यहां वरदान
मंदिर के पुजारी पंडित सदानंद शास्त्री ने बताया कि मान्यता है कि आकाश मार्ग से गुजरते वक्त रावण का अभिमान डगमगाने लगा. रावण यहां नीचे उतरा और यहां शिवलिंग को देख कर रुक गया. यहां रावण ने शिव की तपस्या की थी. रावण की लंबी तपस्या की खुश होकर भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने प्रार्थना की कि इस घटना का कोई साक्षी नहीं होना चाहिए. उस समय भगवान शिव नंदी को अपने से दूर किया था. तभी से यहां भगवान शिव लिंग की पूजा बगैर नंदी के की जाती है.
शिव भक्ति सागर में भी है उल्लेख
इस कहानी के बारे में शिव भक्ति सागर पुस्तक में यह लिखा गया है. कालेश्वर मंदिर शिव का सिद्ध पीठ है, जिसकी स्थापना अत्रताय देवता ने सतयुग में की थी. इस मंदिर और भगवान शिव की महिमा ओर किस्से और कथा में सुनाई देती है.
यहां पूजा करने से दूर होते हैं दोष
बताया जाता है कि जो भी श्री कालेश्वर भगवान की छत्रछाया में आता है. उसकी कुंडली से सर्प काल दोष दूर हो जाता है. इसलिए बहुत से श्रद्धालु यहां नियमित रूप से यहां शिव का तिल के तेल गन्ने के रस और पंचामृत से स्नान करने के लिए आते हैं. यह मंदिर थानेश्वर रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर है. यह मंदिर शेखचिल्ली के मकबरे से कुछ ही कदमों की दूरी पर है.