करनाल: कुल्लू की ट्रेडिशनल शॉल (Traditional Pasmina Shawl of Kullu) अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव-2022 में पर्यटकों को खूब पसंद आ रही है. इस शॉल को कुल्लू के शिल्पकार हीरालाल विशेष तौर पर तैयार करके लाए हैं. इस शॉल को शिल्प मेले के स्टॉल पर सजाया गया है. इसकी कीमत 2 लाख रुपए तक है. यही कारण है कि वे इस शॉल को केवल ऑर्डर पर ही बनाते हैं. वे पिछले 18 वर्षों से गीता महोत्सव से जुड़े हुए हैं.
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव (International Geeta festival 2022) में हर वर्ष की तरह इस बार भी शिल्पी हीरालाल ने स्टॉल लगाई है. वे मशहूर पश्मीना शॉल (Kullu traditional shawl) के साथ यहां पहुंचे हैं. जिनकी कीमत 2 लाख रुपए तक है. हीरालाल का कहना है कि कुल्लू के शिल्पकारों की 180 ग्राम वजन वाली शॉल महज आधे इंच की अंगूठी से निकल जाती है. जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ जमा हो जाती है.
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव: पर्यटकों को पसंद आ रही कुल्लू की पसमीना शॉल, 2 लाख रुपये तक है कीमत इस शॉल का पूरा काम हाथ से किया जाता है. पश्मीना शॉल के साथ ही किन्नौरी और अंगूरी शॉल भी पर्यटकों को खूब पसंद आ रही है. अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कुल्लू के बने हुए शॉल (Traditional Pasmina Shawl of Kullu) को बेहद पसंद किया जाता है. कुल्लू में अंगोरा रेबिट फर्म के नाम से बनी शॉल व अन्य सामान बहुत खरीदी जा रही है. शिल्पकार हीरालाल के साथ ही कुल्लू से कई शिल्पकार यहां पहुंचे हैं.
शॉल पर डिजाइन जितना ज्यादा होगा. उसी कीमत उतनी ही ज्यादा होगी. हीरालाल ने बताया कि पश्मीना शॉल का कम से कम वजन 120 ग्राम का तक हो सकता है. इस बार वे पश्मीना की 10 हजार रुपए से 30 हजार रुपए तक की शॉल और लोई खास ऑर्डर पर लेकर आए हैं. वे पिछले 2 दशकों से गीता महोत्सव में कुल्लू शॉल, जैकेट लेकर आ रहे हैं. कुल्लू के शिल्पकार हीरालाल ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि इस शॉल को स्नो गोट की ऊन से बनाया जाता है. स्नो गोट से साल में सिर्फ एक बार ही ऊन मिलती है.
सिर्फ शॉल ही नहीं लोगों को इस स्टॉल पर जैकेज भी पसंद आ रही है. दूसरी खास बात ये है कि इस शॉल को हाथ के जरिए बनाया जाता है. इसमें मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इसलिए ये शॉल काफी महंगी मिलती है. शिल्पकार हीरालाल ने दावा किया है कि उनकी बनाई गई शॉल की कीमत देश ही नहीं दुनिया में सबसे ज्यादा है. क्राफ्ट मेले में इस बार महिलाओं के लिए अंगूरी स्वेटर और कोट लेकर आए हैं.
शॉल को कुल्लू के शिल्पकार हीरालाल विशेष तौर पर तैयार करके गीता महोत्सव में लाए हैं. पढ़ें:करनाल में बुजुर्ग के शव को चूहों ने कुतरा, 10 साल से मकान में रह रहा था अकेला
उन्होंने बताया कि कुल्लू में पश्मीना, अंगूरी और किन्नौरी शॉल को तैयार करने के लिए खड्डियां लगाई हुई हैं. एक किनौरी शॉल को बनाने के लिए 45 दिन का समय लगता है. वहीं पसमीना शॉल को 10 से 12 दिनों में तैयार कर लिया जाता है. उन्होंने बताया कि कुरुक्षेत्र के अलावा दिल्ली में कुल्लू की शॉल को लोग ज्यादा पसंद करते हैं. हीरालाल अपने इस शॉल को लेकर देशभर के सरस व क्राफ्ट मेले में जाते रहते हैं. पसमीना शॉल पर्यटकों को खूब लुभाती है.