चंडीगढ़: कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रदेश में किसानों की नरमे की खराब हुई फसल की स्पेशल गिरदावरी करवाकर मुआवजा देने की मांग की है. सुरजेवाला ने कहा कि दुख का विषय है कि खट्टर-चौटाला सरकार ने अभी तक किसानों का पिछले साल का मुआवजा भी नहीं दिया है. ऐसे में किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ रहा है.
रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि अगर सरकार ने किसानों की नरमा की फसल की तुरंत स्पेशल गिरदावरी करवाकर मुआवजा नहीं दिया तो कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता किसानों के समर्थन में सड़कों पर उतर बड़ा आंदोलन करने के लिए पूरी तरह तत्पर हैं. सुरजेवाला ने कहा कि इस साल सफेद मक्खी, उखेड़ा बीमारी, प्राकृतिक आपदा और टिड्डी दल के आक्रमणों ने प्रदेश के नरमा और कपास उत्पादक किसानों को तोड़कर रख दिया है.
आज किसान बर्बादी के कागार पर है- सुरजेवाला
उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश में बहुसंख्यक नरमा-कपास किसानों की 70 से 90 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है. किसानों को एक एकड़ से करीब 60 हजार रुपये की फसल होनी थी और वह फसल लागत का 10 हजार खर्च भी कर चुका है. ऐसे में किसानों को 40 से 50 हजार रुपये का नुकसान हुआ है, लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार ने किसानों की इस दुर्दशा की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही. विभिन्न बीमारियों को लेकर सरकार ने समय रहते किसानों का उचित मार्गदर्शन नहीं किया, जिस कारण उखेड़ा (पैराविल्ट), सफेद मक्खी जैसी बीमारियों ने नरमा और कपास को घेर लिया, और किसान वर्ग आज बर्बादी के कगार पर है.
सुरजेवाला ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार प्रदेश के 14 जिलों में 18 लाख 18 हजार एकड़ भूमि पर नरमा व कपास की फसल होती है. सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, जींद, भिवानी, महेन्द्रगढ़ जैसे जिलों में सर्वाधिक कपास व नरमा की फसल की खेती होती है, लेकिन इन प्रमुख जिलों में ही कपास को सफेद मक्खी, उखेड़ा और स्थानीय भाषा की बीमारी 'सुटा मार गया' ने पूरी तरह से तबाह कर दिया है. इसके बावजूद अपने आप को किसान हितैषी बताने वाली भाजपा-जजपा सरकार की ओर से अभी तक गिरदावरी के आदेश भी जारी नहीं किए गए हैं. सुरजेवाला ने कहा कि निरंतर बढ़ती महंगाई और कोविड-19 महामारी के कारण किसान वैसे ही काफी परेशान था. प्रदेश की सरकार की गलत नीतियों की वजह से इस साल किसानों को अपनी गेहूं की फसल बेचने में इधर-उधर घूमना पड़ा, इस दौरान उनका समय तो खराब हुआ ही साथ ही संसाधनों खर्च हुए और फिर किसानों को उनकी गेहूं की फसल का पैसा देने में सरकार ने काफी देरी की.