चंडीगढ़: कोरोना का नया स्ट्रेन लोगों के लिए ज्यादा घातक साबित हो रहा है, क्योंकि ये स्ट्रेन लोगों के फेफड़ों पर सबसे ज्यादा असर कर रहा है. बहुत से मामलों में लोगों को पता ही नहीं चल रहा कि उनके फेफड़ों में कोरोना संक्रमण पहुंच गया है और जबतक उन्हें ये पता चलता है तबतक वायरस फेफड़ों में फैल चुका होता है. ऐसे में लोगों को कई तरह के एहतियात बरतने की जरूरत है. लोग कैसे पता लगा सकते हैं कि कोरोना उनके फेफड़ों तक जा पहुंचा है? इस बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत ने चंडीगढ़ पीजीआई के पल्मोनरी विभाग के पूर्व एचओडी डॉ. एसके जिंदल से बातचीत की-
डॉ. जिंदल ने कहा कि ऐसा नहीं है कि ये वायरस ज्यादा संख्या में लोगों की जान ले रहा है. ये वायरस ज्यादा तेजी से फैलता है और पहले के मुकाबले ज्यादा लोगों को संक्रमित कर रहा है. इस वजह से मौत के आंकड़े भी बढ़ गए हैं. ये वायरस 24 से 48 घंटों में फेफड़ों को संक्रमित कर देता है. अगर संक्रमण कम होता है तो वो जल्दी ठीक हो जाता है, लेकिन अगर संक्रमण ज्यादा हो तो ये मरीज को गंभीर रूप से बीमार कर देता है.
उन्होंने बताया कि अगर पॉजिटिव होने के बाद अगले 1 हफ्ते तक बुखार उतर जाता है और सांस लेने में दिक्कत नहीं आती तब संक्रमण ज्यादा नहीं होता, लेकिन अगर 1 हफ्ते के बाद भी बुखार नहीं उतरता है तो संक्रमण गंभीर हो सकता है.
डॉक्टर के मुताबिक अगर ये लक्षण दिखने शुरू हो जाएं तो समझ लेना चाहिए कि संक्रमण फेफड़ों में फैलना शुरू हो गया है. ऐसे वक्त में इसका जल्द से जल्द इलाज शुरू कर देना चाहिए. संक्रमण फैलने के बाद शरीर की एंटीबॉडी तुरंत एक्टिव हो जाती है और संक्रमण को रोकने की कोशिश करती है. अगर संक्रमण कम हो तो एंटीबॉडी शरीर को संक्रमित होने से बचा लेती है, लेकिन अगर संक्रमण ज्यादा हो तब एंटीबॉडी उसे रोक नहीं पाती और मरीज गंभीर तौर पर बीमार हो जाता है.
संक्रमित फेफड़ों में क्यों भर जाता है पानी?
डॉक्टर जिंदल ने बताया कि कोरोना संक्रमण की चपेट में आने पर फेफड़े सूज जाते हैं और निमोनिया हो जाता है. जिस वजह से उनमें पानी भर जाता है. ऐसे में तुरंत मरीज को ऑक्सीजन और बाकी इलाज देने की जरूरत पड़ती है.
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फेफड़ों पर बरकरार रहता है खतरा
डॉक्टर जिंदल ने कहा कि ऐसा नहीं है कि संक्रमण ठीक हो जाने के बाद मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है. अगर संक्रमण कम हो तो उसके फेफड़े उसे रिकवर कर लेते हैं, लेकिन अगर संक्रमण ज्यादा हो तो फेफड़े रिकवर नहीं कर पाते. कई बार फेफड़े सिकुड़ जाते हैं और मरीज पूरी उम्र सामान्य नहीं हो पाता. वो ठीक से सांस नहीं ले पाता और थोड़ा बहुत काम करने पर ही उसे थकावट हो जाती है.
नेगेटिव रिपोर्ट आने पर भी नहीं बरते लापरवाही