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पांचवे गुरू श्री गुरू अर्जुन देव जी का शहीदी गुरुपर्व, जानें शहादत की कहानी

देश भर में मनाया गया शहीदी दिवस, सिखों के पांचवे गुरु श्री अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर लोगों की अरदास, गुरुद्वारों में लगे लंगर,

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Published : Jun 8, 2019, 2:51 AM IST

भिवानी/पानीपत: गुरूद्वारों में आज पांचवी पातशाही श्री गुरू अर्जुन देव जी का शहीदी गुरूपर्व बड़ी ही श्रद्धा पूर्वक मनाया गया. शहीदी पर्व पर संगतो की ओर से मीठे पानी की छबील एंव लगंर का आयोजन किया गया. इस अवसर पर गुरूद्वारा सिंह सभा की ओर से लड़ीवार सुखमनी साहिब पाठ के भोग के बाद कीर्तन का आयोजन किया गया.

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सिख धर्म को आगे बढ़ाने में गुरु अर्जुन देव का योगदान

सिख धर्म को आगे बढ़ाने में गुरु अर्जुन देव जी का योगदान काफी अहम रहा है. सिख धर्म पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने ही सबसे पहले अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी थी. साथ ही उन्होंने गुरुद्वारों में चार दरवाजों की भी रूपरेख तय की थी. इसके पीछे का तर्क, 'मेरा विश्वास हर जाति और धर्म के शख्स में है. भले ही वे किसी भी दिशा से आए हों और कहीं भी अपना सिर झुकाते हों.'

गुरु अर्जुन देव जी ने सभी सिखों को कमाई का एक दहाई दान देने का निर्देश दिया था. गुरु अर्जुन देव जी का सबसे बड़ा योगदान ये था कि उन्होंने सभी पहले के गुरुओं की लिखी हुई बातों को एक साथ संजोया जिसे हम 'गुरु ग्रंथ साहिब' कहते हैं. गुरु ग्रंथ साहिब सिख धर्म से जुड़ा सबसे पवित्र ग्रंथ है.

गुरु अर्जुन देव जी से जुड़ी कुछ रोचक बातें

  • अर्जुन देव जी ने साल 1588 में अमृतसर तालाब के मध्य हरमिंदर साहिब नाम से गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी. इसे आज स्वर्ण मंदिर या गोल्डन टेंपल के नाम से जाना जाता है.
  • स्वर्ण मंदिर नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था.
  • अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था.
  • उनके पिता गुरू रामदास और माता बीवी भानी जी थीं.
  • गुरु अर्जुन देव जी के नाना गुरू अमरदास सिखों के तीसरे और पिता गुरू रामदास चौथे गुरू थे.
  • 1581 में अर्जुन देव जी को पांचवे गुरु के तौर पर नियुक्त किया गया था.
  • गुरु अर्जुन देव जी का विवाह 1579 में 16 साल की उम्र में जालंधर के कृष्णचंद की बेटी माता गंगा जी के साथ हुआ था.
  • इनके पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था. हरगोविंद सिंह जी आगे चलकर सिखों के छठे गुरू बने.

गुरुग्रंथ साहिब के लिए 51 मोहरें भेट

कुछ शरारती तत्वों ने गुरु ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर मुगल शासक अकबर बादशाह के खिलाफ शिकायत की. ऐसा भी कहा गया कि इस ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है. असलियत जानने पर गुरुवाणी 51 मोहरें भेट करते हुए खेद प्रकट किया.

इसके बाद सत्ता पर काबिज जहांगीर के आदेश पर 1606 में शहीद कर दिया गया. उस समय के 'यासा व सियासत' के कानून के अनुसार रक्त धरती पर गिराए बिना शहीद कर दिया जाता था.

कैसे दिया श्री गुरू अर्जुन देव ने बलिदान

गुरु अर्जुन सिंह जी को गर्म तवे पर बैठाया गया. उनके शरीर पर गर्म-गर्म रेत डाली गई. गुरु जी का शरीर जब बुरी तरह जल गया. गुरुजी को रावी नदी में ठंडे पानी में नहाने के लिए भेजा गया. गुरु जी का पवित्र शरीर रवी नदी के पास विलुप्त हो गया. यहां पर गुरुद्वारा डेरा साहिब है. यह स्थान अब पाकिस्तान में है. गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे.

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