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बेहद संघर्ष भरा रहा रानी रामपाल का सफर, कोचिंग और किट के लिए भी नहीं थे पैसे

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Published : Jan 26, 2020, 9:38 PM IST

Updated : Mar 4, 2020, 7:22 AM IST

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल हरियाणा के शाहबाद मारकंडा की रहने वाली हैं. उनका जन्म 4 दिसंबर 1994 को बेहद गरीब परिवार में हुआ था. घर चलाने के लिए, उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे, लेकिन पांच लोगों के परिवार के लिए ये बहुत कम था.

Padma Shri Award for Rani Rampal
Padma Shri Award for Rani Rampal

कुरुक्षेत्र: भारतीय हॉकी टीम की कप्तान, पद्मश्री से सम्मानित और वर्ल्ड गेम्स ऐथलीट ऑफ द ईयर. ये वो सम्मान हैं या फिर यू कहें कि वो मीठा फल है जो रानी रामपाल को अथक कोशिशों और संघर्ष के बाद हासिल हुआ है, लेकिन ये मुकाम पाना रानी रामपाल के लिए आसान नहीं था, क्योंकि इस सफलता से बड़ा था उनका वो संघर्ष जो यहां तक पहुंचने में रानी रामपाल ने किया.

ताने देते थे रानी के पड़ोसी

आस पड़ोस के लोग ताने देते थे. रानी रामपाल की मां को ना जाने कितनी तरह की बातें सुनाते थे, लेकिन मानों रानी के सिर पर हॉकी का जुनून सवार था. रानी ने लोगों की एक ना सुनी. जिसका नतीजा ये हुआ कि आज रानी रामपाल महिला हॉकी का चमकता सितारा बन गई हैं.

बेहद संघर्ष भरा रहा रानी रामपाल का सफर

बता दें कि भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल हरियाणा के शाहबाद मारकंडा की रहने वाली हैं. उनका जन्म 4 दिसंबर 1994 को बेहद गरीब परिवार में हुआ था. घर चलाने के लिए, उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे, लेकिन पांच लोगों के परिवार के लिए ये बहुत कम था. पिता दिन के मुश्किल से 100 रुपये कमा पाते थे. कच्चा मकान था जो बारिश के वक्त घर के अंदर पानी टपकता था.

रानी के पिता बताते हैं कि तेज बारिश के दिनों में उनके कच्चे घर में पानी भर जाता था और रानी अपने दोनों भाइयों के साथ मिल कर, बारिश के रुकने की प्रार्थना करती थीं. रानी के लिए बचपन में स्कूल जाना भी मुश्किल था. किसी तरह घरवालों ने स्कूल में दाखिला करवाया था.

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...जब रानी की जिद्द के आगे नहीं चली घरवालों की

वो जब 6-7 साल की थीं, तब स्कूल से आते-जाते खेल के मैदान को देखती थीं. लड़के वहां हॉकी खेलते थे और उन्हें वो खेल अच्छा लगता था. एक दिन घर आकर रानी अपने पिता से बोलीं कि वो भी हॉकी खेलना चाहती है. घरवालों ने पहले तो मना किया, लेकिन रानी ने तो ठान लिया था कि हॉकी खेलनी है तो खेलनी है. रानी की इस जिद के आगे उनके पिता की भी एक ना चली. आखिरकार माता पिता मान गए, हालांकि रिश्तेदारों और समाज वालों ने भी घरवालों के फैसले का विरोध किया, लेकिन फिर भी पैरेंट्स ने बेटी का साथ देने का फैसला किया.

द्रोणाचार्य अवार्डी कोच बलदेव सिंह ने सिखाई हॉकी

इसके बाद रानी ने शाहबाद हॉकी एकेडमी में दाखिला लिया. उस वक्त उनके कोच थे द्रोणाचार्य अवॉर्ड पाने वाले बलदेव सिंह. उन्होंने पहले तो एडमिशन देने से मना कर दिया, लेकिन जब रानी का खेल देखा तो खुश हो गए और दाखिला दे दिया.

कोचिंग और किट के लिए नहीं थे पैसे

इसके बाद दिने बीतते गए और रानी प्रैक्टिस करती गई. परिवार गरीब था राह में मुश्किलें आना भी लाजमी था. कई बार उन्होंने हॉकी छोड़ने के बारे में सोचा, क्योंकि उनके परिवार के पास उनकी कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे. लेकिन कोच बलदेव सिंह ने और सीनियर खिलाड़ियों ने उनका साथ दिया. उन्हें ट्रेनिंग के लिए हॉकी की पुरानी किट मुहैया कराई.

पहली बार 2009 में भारतीय टीम में शामिल हुई रानी

इसके बाद रानी ने जी तोड़ मेहनत की. जब वो 15 साल की थीं, तभी भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का मौका मिल गया. जून, 2009 में उन्होंने रूस में आयोजित चैम्पियन्स चैलेंज टूर्नामेंट खेला. फाइनल मुकाबले में चार गोल किए और इंडिया को जीत दिलाई. उन्हें ‘द टॉप गोल स्कोरर’ और ‘द यंगेस्ट प्लेयर’ घोषित किया गया.

200 से ज्यादा इंटरनेशनल मैच खेल चुकी हैं रानी

नवंबर 2009 में एशिया कप में टीम इंडिया ने सिल्वर मेडल जीता था. इस टूर्नामेंट में भी रानी ने शानदार प्रदर्शन किया था. तब से लेकर अब तक उन्होंने 200 से ज्यादा इंटरनैशनल मैच खेल लिए हैं. कई सारे रिकॉर्ड्स तोड़े हैं, कई रिकॉर्ड्स बनाए हैं.

कई पदक और सम्मान है रानी की झोली में

उन्होंने साल 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लिया, जहां वे एफआईएच के ‘यंग वुमन प्लेयर ऑफ़ द इयर’ अवॉर्ड के लिए भी नामांकित हुई. फिर ग्वांगझोउ में हुए 2010 के एशियाई खेलों में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के चलते, उन्हें ‘एशियाई हॉकी महासंघ’ की ‘ऑल स्टार टीम’ का हिस्सा बनाया गया. अर्जेंटीना में आयोजित महिला हॉकी विश्व कप में, उन्होंने सात गोल किए और भारत को विश्व महिला हॉकी रैंकिंग में सांतवे पायदान पर ला खड़ा किया. साल 2013 के जूनियर विश्व कप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और पहली बार, भारत कांस्य पदक जीता. यहां भी उन्हें ‘प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ का खिताब मिला.

टोक्यो ओलंपिक पर है अब रानी की नजर

2018 में एशियन गेम्स के पहले रानी टीम की कप्तान बनी थीं. उनकी कप्तानी में टीम ने सिल्वर मेडल जीता था और इसी के साथ, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत चौथे पायदान पर और लंदन विश्व कप में आठवें स्थान पर रहा.उन्होंने इसी साल जनवरी में वर्ल्‍ड गेम्स एथलीट ऑफ द इयर का अवार्ड जीता है. पहली बार दुनिया के किसी हॉकी प्लेयर ने स्पोर्ट्स की फील्ड का ये बड़ा अवॉर्ड जीता है. इसी साल जनवरी में उनको पदमश्री अवार्ड से भी नवाजा गया है. रानी रामपाल की कप्तानी में भारतीय महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी किया हुआ है और अब सबकी नजरें इसी साल होने वाले टोक्यो ओलिंपिक खेलों पर हैं.

Last Updated : Mar 4, 2020, 7:22 AM IST

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