आज की प्रेरणा - हनुमान भजन
जो पुरुष अपने कर्मफल के प्रति अनासक्त है और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है, वही संन्यासी और असली योगी है. वह नहीं, जो न तो अग्नि जलाता है और न कर्म करता है. जब कोई पुरुष समस्त भौतिक इच्छाओं का त्याग करके न तो इन्द्रिय तृप्ति के लिए कार्य करता है और न सकाम कर्म में प्रवृत्त होता है तो वह योगारूढ़ कहलाता है. मनुष्य को चाहिए कि अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करे और अपने को नीचे न गिरने दे. यह मन बद्धजीव का मित्र भी है और शत्रु भी. जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है, किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा. जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है. ऐसे पुरुष के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं. जो योगी ज्ञान और विज्ञान से तृप्त है, जो विकार रहित और जितेन्द्रिय है, जिसके लिए मिट्टी, स्वर्ण और पाषाण समान है, वह परमात्मा से युक्त कहलाता है.