हैदराबाद :स्ट्रोक एक बेहद गंभीर तथा कई बार जानलेवा प्रभाव दिखाने वाली समस्या है. कुछ समय पहले तक माना जाता था स्ट्रोक की समस्या ज्यादातर 55 से 60 साल की आयु वाले लोगों को प्रभावित करती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में 30 से 40 वर्ष की आयु वाले लोगों में भी अलग-अलग स्वास्थ्य व जीवनशैली जनित कारणों के चलते इसके मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है.
हालांकि इसके जोखिम को बढ़ाने वाले कारकों व लक्षणों को यदि समय से समझ लिया जाय तो स्ट्रोक के होने की आशंका को कम किया जा सकता है. वहीं समय से जांच तथा शीघ्र व सही उपचार से स्ट्रोक पीड़ितों के पूरी तरह से ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन बहुत से लोग स्ट्रोक को लेकर तथा उससे जुड़ी सावधानियों को लेकर जानकारी के अभाव में सही समय पर सही कदम नहीं उठा पाते हैं , जिसका असर उनके इलाज की रफ्तार तथा उनके पूरी तरह से ठीक होने पर पड़ता है. वहीं कई बार यह लापरवाही जानलेवा प्रभाव या स्थाई विकलांगता का कारण भी बन सकती है.
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए हर साल 29 अक्टूबर को मनाए जाने वाले विश्व स्ट्रोक दिवस की प्रासंगिकता काफी ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि यह ना सिर्फ आम जन में जागरूकता बढ़ाने का अवसर देता है बल्कि स्ट्रोक की जांच व इलाज में बेहतरी से जुड़े मुद्दों पर चिकित्सकों व जानकारों को चर्चा के लिए एक मंच भी देता है.
विश्व स्ट्रोक दिवस 2023 की थीम
गौरतलब है कि हर साल विश्व स्ट्रोक दिवस कुछ नए व पुराने उद्देश्यों के साथ एक नई थीम पर मनाया जाता है. इस साल विश्व स्ट्रोक दिवस " टुगेदर वी आर #ग्रेटर देन स्ट्रोक" थीम पर मनाया जा रहा है. उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस साल इस थीम का चयन उच्च रक्तचाप, अनियमित दिल की धड़कन, धूम्रपान, आहार और व्यायाम में लापरवाही जैसे स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले कारकों की रोकथाम पर जोर देने के उद्देश्य किया गया है. चिकित्सक मानते हैं कि स्ट्रोक के लिए ये कारण काफी हद तक जिम्मेदार हो सकते हैं तथा इन कारकों को लेकर सचेत रहने तथा इनके सही समय पर सही इलाज कराने से स्ट्रोक के लगभग 90% मामलों को रोका जा सकता है.