हमारे देश में कहा जाता है कि जहर ही जहर को काटता है। दरअसल वैक्सीन भी इसी सिद्धांत के आधार पर बनाई जाती है। जिसमें किसी रोग के जीवाणु या विषाणु की मदद से वैक्सीन का निर्माण किया जाता है। यह वैक्सीन दवाई के रूप में जब व्यक्ति के शरीर में पहुंचती है, तो संबंधित रोग या संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करती है।
होम्योपैथी में नोसोड्स का इस्तेमाल भी इसी उद्देश्य के साथ किया जाता है। तथ्यों की माने तो वैक्सीन तथा नोसोड्स के स्वरूप तथा उनके कार्यों में काफी समानताएं है। हाल ही में कोरोना से बचाव में होम्योपैथिक कोविड-19 नोसोड्स की सकारात्मक भूमिका को लेकर काफी चर्चाएं सामने आई हैं। इसी के चलते ETV भारत सुखीभवा की टीम ने लाइफ फोर्स होम्योपैथी तथा बायो सिमिलिया, मुंबई के होम्योपैथिक चिकित्सक शोधकर्ता, शिक्षाविद तथा नोसोड्स के निर्माण के क्षेत्र में पिछले 20 वर्षों से कार्य कर रहें डॉ. राजेश शाह से जानकारी ली।
इस संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए कोविड-19 नोसोड्स का निर्माण करने वाले डॉ. शाह ने बताया की कोविड-19 से बचाव के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों की मदद से कोविड-19 नोसोड्स का निर्माण किया है। जिसके प्रीक्लिनिकल तथा क्लीनिकल ट्रायल सफलतापूर्वक पूरे किए जा चुके हैं।
वैक्सीन और होम्योपैथिक नोसोड्स में समानता
डॉक्टर शाह बताते हैं कि वैक्सीन और होम्योपैथी के बीच में काफी समानताएं हैं। सबसे पहले होम्योपैथी तथा वैक्सीन दोनों की ही शुरुआत वर्ष 1796 में हुई थी। होम्योपैथी की खोज एक जर्मन नागरिक डॉक्टर सैमुअल हैनमैन ने की थी, वहीं वैक्सीन की खोज इंग्लैंड में डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने की थी। यह दोनों ही पद्धतियां 'विषस्य विषमौधम' सिद्धांत यानी विष से ही दवाई की खोज पर आधारित है।
डॉक्टर शाह बताते हैं कि होम्योपैथी में इस प्रकार की 50 से अधिक दवाइयां जीवाणु (ट्यूबरक्लोसिस, गोनोरिया, सिफलिस, स्ट्रेप्टोकोकस, स्टैफीलोकोक्क्स), विषाणु (स्मॉलपॉक्स, मीजल्स तथा रेबीज), तथा पैरासाइट (स्केबीज, फंगस तथा मलेरिया) आदि की मदद से तैयार की जाती हैं, जिन्हें नोसोड्स कहा जाता है।
नोसोड्स तथा वैक्सीन एक ही सिद्धांत पर तैयार किए जाते हैं, लेकिन दोनों को तैयार करने का तरीका बिलकुल अलग होता है। वैक्सीन का निर्माण जहां जीवाणु और विषाणु के क्षीणन यानी उनके उनको कमजोर कर होता है, वहीं नोसोड्स में वायरस या बैक्टीरिया को वैज्ञानिक तरीके से रोग से लड़ने के लिए समर्थ बनाया जाता है। इन दोनों विधियों का मुख्य उद्देश्य संक्रमण के प्रति शरीर को मजबूत बनाना तथा शरीर में संक्रमण को ठीक करने के लिए जरूरी रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करना है। इसीलिए अगर नोसोड्स तथा वैक्सीन को जुड़वा होने की संज्ञा दी जाये, तो वह गलत नहीं होगा।
एक से ज्यादा संक्रमणों से बचाव करता है एक नोसोड्स
डॉ. शाह बताते हैं की होम्योपैथी में एक नोसोड्स के इस्तेमाल को किसी एक संक्रमण से बचाव के लिए सीमित नहीं किया जाता है, बल्कि एक प्रकार के नोसोड्स का इस्तेमाल बहुत से रोगों तथा संक्रमण से बचाव के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए टीबी तथा मीजल्स से बनने वाले नोसोड्स का इस्तेमाल माइग्रेन, कोलाइटिस तथा अर्थराइटिस जैसी समस्याओं में भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त गोनोरिया विषाणु से बनने वाले नोसोड्स का इस्तेमाल अस्थमा, कमर दर्द तथा अन्य रोगों के लिए भी किया जाता है। इसलिए नोसोड्स का इस्तेमाल वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा बृहद माना जाता है। डब्ल्यूएचओ की माने तो लगभग 25 वैक्सीन को सामान्य श्रेणी में रखा जाता है। वहीं होम्योपैथी की पुस्तकों में लगभग 50 नोसोड्स को मान्यता मिली हुई है।
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वैक्सीन और नोसोड्स से जुड़े रोचक तथ्य
यहां एक रोचक तथ्य यह भी है कि 'टीबी' से जुड़े नोसोड्स, जिसे ट्यूबरक्युलिनम कहा जाता है, को डॉक्टर सैमुअल स्वान द्वारा 1775 में बनाया गया था, जबकि टीबी बैक्टीरिया की खोज इस समय के लगभग सात वर्ष के उपरांत रॉबर्ट कोच द्वारा मानी जाती है। ऐसे ही रेबीज नोसोड्स का निर्माण 1834 में डॉक्टर कांटेस्टाइन हैरिंग द्वारा किया गया था। जिसके लगभग 50 वर्ष के उपरांत रेबीज के लिए वैक्सीन का निर्माण किया गया था। जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि होम्योपैथी 19वीं शताब्दी में जीव विज्ञान से जुड़ी सामग्रियों की मदद से दवाइयों के निर्माण में अन्य चिकित्सा पद्धतियों से आगे थी।
हालांकि माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के क्षेत्र में वैक्सीन एक बहुत ही आधुनिक तथा समर्थ चिकित्सा शैली है, जिसे निरंतर शोध के उपरांत लोगों के इस्तेमाल के लिए प्रभावी तथा सुरक्षित बनाया जाता है। लेकिन नोसोडस को लेकर होम्योपैथिक में जरूरी शोध नहीं किए गए, जिसके चलते पिछली शताब्दियों में नोसोड्स, रोग निरोधी दवाओं के रूप में अपना स्थान नहीं बना पायी।
डॉक्टर शाह बताते हैं कि इसका एक कारण यह भी है कि होम्योपैथिक समुदाय में दवाइयों के निर्माण और उन्हें देने का आधार वैज्ञानिक कम और विश्लेषणात्मक ज्यादा है। हालांकि अब पिछले कुछ सालों से नोसोड्स शोध के क्षेत्र में बड़ी संख्या में वैज्ञानिक, यूरोलॉजिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, इम्यूनोलॉजिस्ट तथा फार्मोकोलॉजिस्ट मिलकर कार्य कर रहे हैं। जिसके चलते उम्मीद हैं की सिर्फ कोविड-19 ही नहीं बल्कि अन्य गंभीर संक्रमण और लोगों की दिशा में भी नोसोड्स के रूप में होम्योपैथी बचाव और उपचार के क्षेत्र में विज्ञान आधारित चिकित्सा के रूप में योगदान देगा।
इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए info@lifeforce.in पर संपर्क किया जा सकता है।