अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान गठबंधन (आई.आर.ए.ए.डी.डी) द्वारा प्रस्तुत एक अध्धयन में बहु-प्रतिरोधी रोगजनकों (एन्टिमाइक्रोबियल एजेंट्स) के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए दूरंदेशी रणनीतियों को प्रस्तुत किया गया है। इस अध्धयन में जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च (डीजेआईएफ) के वैज्ञानिकों की भूमिका प्रमुख रही है।
शोध में हेल्महोल्ट्ज़ इंस्टीट्यूट फॉर फार्मास्युटिकल रिसर्च सारलैंड के निदेशक (एचआईपीएस), हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर इंफेक्शन रिसर्च की एक साइट, और डीजेडआईएफ के समन्वयक प्रोफेसर रॉल्फ मुलर बताते हैं की कई दवाओं के लिए प्रतिरोधी माने जाने वाले बैक्टीरिया का उपयोग, यदि सावधानियों के बिना और उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले अन्य प्रभावों को जाने बिना किया जाय तो वह कोरोना महामारी के समकक्ष खतरनाक हो सकते हैं। गौरतलब है की रॉल्फ मुलर अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान गठबंधन के समन्वयक होने के साथ ही लगभग 40 अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं में से एक हैं जो संयुक्त रूप से एन्टिमाइक्रोबियल के चलते भविष्य में उत्पन्न हो सकने वाले आसन्न खतरे को रोकने के लिये प्रयास कर रहे हैं।
वे बताते हैं की इस अध्धयन में उन्होंने तथा उनके सहयोगी शोधकर्ताओं ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध को लेकर ऐसी अवधारणाएँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिनका उद्देश्य अनुसंधान और औद्योगिक कार्यान्वयन के लिये एक ऐसी पाइपलाइन बनाना है जो भविष्य के लिए प्रभावी एंटीबायोटिक्स बनाने की संभावना उत्पन्न करती है।
वे बताते हैं की दवा, पशुपालन और कृषि के क्षेत्र में एंटीबायोटिक के अनावश्यक और जरूरत से ज्यादा उपयोग के कारण रोगजनकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में कम से कम 7,00,000 लोग मल्टी रेजिसटेंट पैथोजीन्स (बहु-प्रतिरोधी रोगजनकों) के कारण होने वाले संक्रमण का शिकार हैं, जान गंवा रहे हैं, क्योंकि एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग के कारण उन पर दवाएं ज्यादा असर नहीं दिखा रहीं हैं।