न्यूयॉर्क : वायु प्रदूषण और फेफड़ों की बीमारी के बीच संबंध को लंबे समय से लोग स्वीकारते आए हैं. एक नए अध्ययन से एक जैविक प्रक्रिया का पता चलता है जो उस संबंध की वजह हो सकती है - एक खोज जो प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के इलाज या रोकथाम के बेहतर तरीकों पर नई रौशनी डाल सकती है. अध्ययन में पाया गया कि परिवेश में मौजूद नैनोकणों या हवा में बहुत छोटे प्रदूषकों के संपर्क में आने से ऑटोफैगी नामक एक कोशिकीय रक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है जो अन्य संभावित कुप्रभावों से लड़ने की कोशिकाओं की क्षमता को कम कर सकता है.
इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि वायु प्रदूषण कैसे किसी व्यक्ति के फेफड़ों के कैंसर, इंटरस्टिशियल पल्मोनरी फाइब्रोसिस और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज सहित फेफड़ों की कई अक्यूट और क्रॉनिक बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउदर्न कैलिफॉर्निया- USC में केक स्कूल ऑफ मेडिसिन में पैथोलॉजी के प्रोफेसर एडवर्ड क्रैन्डल ने कहा, हम जानते हैं कि बीमारियां, विशेष रूप से फेफड़ों की बीमारियां, वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप हो सकती हैं. हम नहीं जानते कि यह किस तंत्र द्वारा होता है.
पहली बार, शोधकर्ताओं ने पाया कि नैनोकणों के संपर्क में आने पर, कोशिकाओं में ऑटोफैगी गतिविधि ऊपरी सीमा तक पहुंच जाती है. क्रैन्डल ने कहा, इन अध्ययनों का निहितार्थ यह है कि ऑटोफैगी एक रक्षा तंत्र है जिसकी ऊपरी सीमा होती है, जिसके आगे यह सेल की रक्षा नहीं कर सकता है. जर्नल ऑटोफैगी रिपोर्ट्स में प्रकाशित अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने फेफड़े के एडेनोकार्सिनोमा कोशिकाओं का उपयोग करके परीक्षणों की एक श्रंखला आयोजित की.