जब बच्चा बड़ा हो रहा होता है तो उम्र के हर विकास के पड़ाव पर उसके माता पिता उसे कुछ न कुछ नसीहत या सीख देते रहते हैं. जैसे सुबह जल्दी उठो, हड़बड़ी कम करो, बैठ कर खाना खाओ या पानी पियो, हमेशा सिर या गर्दन ऊंची करके चलो, कुर्सी पर झुक कर या लेट कर मत बैठो, लेटकर टीवी मत देखो या सुबह की शुरुआत मुस्कुराकर करो आदि.
उस समय बच्चों को लगता है कि माता-पिता हद से ज्यादा सलाह देकर परेशान कर रहे हैं, लेकिन दरअसल यही आदतें आजीवन उनकी जीवन शैली को बेहतर तथा उनके स्वास्थ्य को दुरुस्त बनाए रखने में मदद करती हैं. बड़ों की इन नसीहतों का ना सिर्फ हमारे शरीर बल्कि मन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव को जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने अपने अलग-अलग विशेषज्ञों से बात की.
सुबह सबेरे जल्दी उठो
सिर्फ आयुर्वेद ही नहीं बल्कि तमाम चिकित्सा शास्त्रों में माना जाता है कि नींद से जुड़ी आदतें हमारे स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं. यदि कोई व्यक्ति समय से सोता नहीं है, समय से जागता नहीं है, समय से कम सोता है या समय से ज्यादा सोता है, तो उसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर साफ दिखने में आता है.
रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना और रात में कम से कम 7 से 9 घंटे की नींद लेना व्यक्ति के शरीर की मशीनरी यानी उसके शरीर के सभी तंत्रों को स्वस्थ और दुरुस्त रखता है. उत्तराखंड की आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ वंदना बताती हैं हमारी पूरी दिनचर्या की भांति हमारे शरीर के तंत्रों का भी काम करने का तरीका और समय होता है, ऐसे में सही समय पर सोने और जागने की आदत उन सभी तंत्रों को अपना कार्य समय पर करने का मौका देती है, जिससे उन पर बोझ नहीं पड़ता है और हमारा स्वास्थ्य बना रहता है.
मुस्कुराकर करे दिन की शुरुआत
वैलनेस एक्सपर्ट तथा वैलनेस कंपनी जैविक इंडिया बैंगलुरु की फाउंडर तथा सीईओ नंदिता बताती हैं कि जब हम गुस्सा होते हैं, चिढ़ते हैं, या जरूरत से ज्यादा परेशानी लेते हैं तो हमारे शरीर में बहुत सी रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं जो न सिर्फ हमारे शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. नतीजे स्वरूप हमारे शरीर की ऊर्जा का हनन होने लगता है साथ ही कई बीमारियों को शरीर में घर करने का मौका मिलता है.
वही जब हम मुस्कुराते हैं या खुश रहते हैं तो हमारे शरीर में हैप्पी हारमोंस अपना असर दिखाने लगते हैं जिसका असर हमारे शरीर और मन दोनों पर बहुत ही सकारात्मक रूप में नजर आता है. वैसे भी यह बात वैज्ञानिकों द्वारा साबित हो चुकी है जब हम सकारात्मकता और प्रसन्नता के साथ किसी भी परिस्थिति का सामना करते हैं तू हमें परेशानियों को सहने तथा उन्हें सुलझाने की क्षमता अपेक्षाकृत ज्यादा बढ़ जाती है. इसलिए सुबह की शुरुआत मुस्कुराकर करने से न सिर्फ दिन अच्छा बीतता है बल्कि परे दिन शरीर में ऊर्जा भी बनी रहती है.
बैठकर खाए खाना या पिए पानी
छोटे बच्चे आमतौर पर स्कूल से आने के बाद या खेलने की जल्दी में भागते दौड़ते काम करना पसंद करते हैं. इस बीच चाहे भोजन करना हो या विशेषकर पानी पीना हो आमतौर पर वे जाने अनजाने खड़े ही रहते हैं.
इंदौर की पोषण विशेषज्ञ डॉक्टर संगीता मालू बताती हैं कि बैठकर खाना खाने से हमारे पाचन तंत्र की क्षमता बढ़ जाती है साथ ही आराम से प्रसन्न मन से ग्रहण किया गया आहार शरीर पर बेहतर परिणाम दिखाता है. उनका कहना है कि हमारे भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही हमेशा बैठ कर खाना खाने या बैठ कर पानी पीने की बात कही जाती है . यहां तक कि आयुर्वेद में भी माना जाता है कि बैठ कर खाने तथा पीने की व्यवस्था हमारे स्वास्थ्य पर ज्यादा बेहतर प्रभाव दिखाती है. इसलिए सिर्फ भोजन बल्कि पानी भी बैठकर ही पीना चाहिए . यही नही हर से ज्यादा गरम या जरूरत से ज्यादा ठंडा पानी पीने से भी बचना चाहिए.
सिर उठाकर चले
क्या आप जानते हैं कि हमारी कमर में दर्द तथा गर्दन में दर्द जैसी अधिकांश समस्याएं हमारे गलत पोश्चर के चलते उत्पन्न होती हैं? जब हम बचपन में लंबे समय तक कुर्सी पर बैठकर पढ़ते हैं तो माता-पिता या घर के बड़े आमतौर पर बोलते हैं कि कमर सीधी करके बैठो, गर्दन सीधी करो, इस बात का ध्यान रखो की रोशनी सीधे तौर पर कॉपी पर पड़े, जिससे आपको गर्दन झुका कर पढ़ने की जरूरत ना पड़े, लेट कर टीवी मत देखो आदि। जो हमारे पोश्चर को सही बनाने में मदद करती हैं.
गर्दन झुका के चलने या सिर नीचे की तरफ और कंधे झुकाकर चलने से आमतौर पर लोगों को गर्दन में दर्द की समस्या होने लगती है. वही जब हम का कुर्सी पर आगे की तरफ झुक कर या लगभग लेटकर पढ़ते हैं तो हमारी रीढ़ की हड्डी पर उसके घातक परिणाम नजर आने लगते हैं.
उत्तराखंड के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हेम जोशी बताते हैं यदि बचपन से ही सही पोश्चररखने की आदतों का विकास किया जाए तो कमर दर्द तथा उससे जुड़ी समस्याओं में काफी हद तक कमी आ जाएगी.
बच्चों के लिए जरूरी है इन नसीहतों का कारण जानना
इंदौर की चाइल्ड काउंसलर नियति पारीख बताती हैं कि माता-पिता को बच्चों को इन नसीहतों को देने के साथ ही इन आदतों को अपनाना क्यों जरूरी है या इनका हमारे शरीर पर किस तरह से फायदा पड़ेगा यह समझाना भी जरूरी होता है.
बचपन बच्चों के लिए उम्र का वह दौर है जब वह नई आदतों से, अच्छी बुरी बातों से तथा नए-नए भावनाओं से परिचय करते हैं. ऐसे में उन्हे अच्छी आदतों के फायदों को समझाना अच्छा होता है. लेकिन सिर्फ इन आदतों को अपनाने की बात कहना उन्हें इन्हे अपनाने के लिए मोटिवेट नहीं करता है. बहुत जरूरी है कि इन आदतों को अपनाने के लिए उन्हें अलग-अलग तरीकों से मोटिवेट भी किया जाए. नियति बताती है कि माता-पिता के प्रयासों से यदि बच्चों में यह आदतें विकसित हो जाएं तो आजीवन उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाए रखने में मदद करती हैं.
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