हैदराबाद :जिस तरह गाड़ी को चलने के लिए पेट्रोल की जरूरत होती है, वैसे ही हमारे शरीर को कार्य करने के लिए आहार की जरूरत होती है. लेकिन शरीर स्वस्थ व निरोगी रहे, हर आयु में उसका विकास सतत रहे तथा शरीर के सभी तंत्र व प्रणालियां सही तरह से कार्य करें, इसके लिए बहुत जरूरी है शरीर को जरूरी मात्रा में पोषण मिलता रहे. शरीर के लिए पोषण की अहमियत के बारें में सभी जानते हैं लेकिन अलग-अलग कारणों से बहुत बड़ी संख्या में लोग विशेषकर बच्चे जरूरी मात्रा में पोषण ग्रहण नहीं कर पाते हैं और कुपोषण का शिकार हो जाते हैं.
हर व्यक्ति विशेषकर बच्चों के सही शारीरिक व मानसिक विकास के लिए स्वस्थ पोषण सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है. ऐसे में लोगों को संतुलित व पौष्टिक आहार के लाभ व जरूरत के बारें में जागरूक करने तथा उन्हे स्वस्थ व निरोगी बने रहने के लिए पौष्टिक व संतुलित आहार को अपनाने के लिए जागरूक करने तथा आम जन को इससे जुड़ी सरकारी नीतियों व योजनाओं के बारें में अवगत करने के उद्देश्य से हर वर्ष भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा सितंबर के पहले सप्ताह यानी 1 से 7 सितंबर तक एक विशेष थीम के साथ राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (Rashtriya Poshan Maah 2023) मनाया जाता है. इस वर्ष राष्ट्रीय पोषण सप्ताह 2023' सभी के लिए स्वस्थ किफायती आहार' (Healthy Affordable Diet for All) थीम पर मनाया जा रहा है.
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का इतिहास
भारत में आम जन विशेषकर बच्चों में कुपोषण की दर को कम करने तथा उन्हे पोषण के महत्व के बारे में शिक्षित व जागरूक करने के उद्देश्य से भारत सरकार के खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा वर्ष 1982 में सितंबर महीने के पहले सप्ताह में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाए जाने की शुरुआत की गई थी.
दरअसल भारत से पहले कुछ अन्य देशों में पहले से ही पोषण की जरूरत को लेकर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस तरह के आयोजन किए जा रहे थे. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखे तो सबसे पहले राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का आयोजन अमेरिकन डायटेटिक एसोसिएशन या जिसे वर्तमान में एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स के नाम से जाना जाता है द्वारा मार्च 1975 में किया गया था. शरीर के लिए पोषण की जरूरत के बारे में लोगों को अवगत कराने के साथ आहार विशेषज्ञों के पेशे को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित इस साप्ताहिक आयोजन को सिर्फ स्थानीय लोगों से ही सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली बल्कि वैश्विक पटल पर भी इस प्रयास को काफी सराहा गया था. इसके बाद वर्ष 1980 में इस आयोजन को एक सप्ताह की बजाय एक महीने तक मनाया जाने लगा.